भोपाल, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सियासत में सफलता की कुंजी है अपने ही दल के विरोधियों को संतुष्ट करना और संतुलन बनाए रखना। इस समय यही सबसे बड़ी चुनौती है मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने, क्योंकि वह जल्द ही निगम-मंडलों के अध्यक्षों की नियुक्ति के साथ मंत्रिमंडल का विस्तार करने जा रहे हैं।
राज्य में हाल फिलहाल किसी भी तरह का चुनाव नहीं होने वाला है, लिहाजा दावेदारों को ओहदे देने की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी है, क्योंकि अब तक सत्ता और संगठन चुनाव की बात कहकर निगम-मंडलों के अध्यक्षों की नियुक्ति के साथ मंत्रिमंडल का विस्तार न कर पाने का बहाना करता रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज स्वयं इस बात का ऐलान कर चुके हैं कि वह जल्द ही निगम-मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति और मंत्रिमंडल का विस्तार करने वाले हैं।
शिवराज ने मुख्यमंत्री के तौर पर दिसंबर, 2013 में तीसरी बार सत्ता संभाली थी, मंत्रिपरिषद का गठन हुआ। उसके बाद से ही लगातार मंत्रिमंडल विस्तार के कयास लगाए जाते रहे हैं। वहीं दावेदार मुख्यमंत्री व संगठन पर दवाब बनाते रहे हैं, जिस पर उन्हें भरोसा दिलाया जाता रहा कि इस चुनाव के बाद होने वाले विस्तार में उन्हें अहम जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। ऐसा करते-करते लगभग दो वर्ष निकल गए हैं, क्योंकि चुनाव-दर-चुनाव का सिलसिला चलता रहा। अभी हाल ही में हुए 10 नगरीय निकाय के चुनाव में भाजपा ने आठ स्थानों पर जीत दर्ज की है।
मुख्यमंत्री शिवराज और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान भी पिछले दिनों में कई बार कह चुके हैं कि निगम-मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति के अलावा मंत्रिमंडल का भी जल्दी विस्तार किया जाने वाला है।
सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री की राष्ट्रीय नेताओं से भी इस मसले को लेकर चर्चा हो चुकी है। संभावना भी इस बात की है कि इसी माह के अंत तक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा।
राजनीति के जानकार कहते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज के लिए नियुक्तियां और मंत्रिमंडल का विस्तार किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि एक तरफ वे लोग हैं जो मौके-बेमौके पर शिवराज के पक्ष में गोलबंदी करते रहते हैं, तो दूसरी तरफ उन नेताओं का जमावड़ा है, जो पर्दे के पीछे रहकर सिर्फ टांग खिंचाई में भरोसा करते हैं।
भाजपा की सियासत में केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, उमा भारती, नरेंद्र सिंह तोमर, लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन, विक्रम वर्मा, सांसद प्रभात झा के करीबियों की चाहत किसी से छुपी नहीं है। कोई अपने समर्थक को निगम-मंडल का अध्यक्ष बनवाना चाहता है, तो किसी की नजर मंत्री पद पर है।
वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी कहते हैं, “भाजपा नेताओं में पद पाने की जिज्ञासा है, लगभग दो वर्षो से अब और तब चल रहा है, इसीलिए मुख्यमंत्री को सभी को संतुष्ट करने के साथ संतुलन बनाए रखना बड़ी चुनौती बन गया है, दूसरी ओर कई मंत्री ऐसे है जिनके पास एक से ज्यादा विभाग है तो कई ऐसे है जिनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है।”
राज्य में विधानसभा के सदस्यों की संख्या के अनुपात में 11 सदस्यों को मंत्रिपरिषद में और जगह दी जा सकती है, अब देखना होगा कि शिवराज कितनी चतुराई से इस चुनौती का सामना करते हैं।