भोपाल, 20 अगस्त (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश सरकार सरकार द्वारा मानसून सत्र में पारित किए गए ‘मप्र तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015’ को राष्ट्रीय सेक्युलर मंच ने काला कानून करार दिया है और कहा है कि राज्य सरकार ने व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले की व्यापक जांच के चलते यह कानून बनाने की कवायद की है, ताकि कोई भी व्यक्ति सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ न्यायालय में जनहित याचिकाएं दायर न कर सके।
राजधानी भोपाल में मंच के संयोजक एल.एस. हरदेनिया ने अन्य सदस्यों की मौजूदगी में गुरुवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने जो विधेयक पारित किया है, उसमें किए गए प्रावधानों के मुताबिक, महाधिवक्ता की सहमति पर ही उच्च न्यायालय किसी जनहित याचिका पर सुनवाई कर सकेगा।
उन्होंने आगे कहा कि यह कानून व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है। जब सरकार व प्रशासन बात नहीं सुनता है, तभी भी पीड़ित न्यायालय की शरण में जाता है, मगर राज्य सरकार ने इस विधेयक के जरिए न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है। इस विधेयक पर अभी राज्यपाल के हस्ताक्षर हालांकि नहीं हुए हैं, मंच राज्यपाल से अनुरोध करेगा कि वह इस विधेयक पर हस्ताक्षर न करें।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस कानून में इस बात का भी प्रावधान है कि अगर महाधिवक्ता संबंधित व्यक्ति को परेशान करने वाला करार दे देता है तो न्यायालय उस पर याचिका दायर करने से प्रतिबंधित भी कर सकता है।
हरदेनिया ने आगे कहा कि इस समय सरकार की व्यापमं घोटाले को लेकर किरकिरी हो रही है और कई याचिकाएं उच्च न्यायालय में दायर है, जिन पर सुनवाई चल रही है, इन याचिकाओं के चलते कुछ लोगों के प्रभावित होने की आशंका है, लिहाजा सरकार ने इस कानून के जरिए अपने लिए सुरक्षा कवच खोजने की कोशिश की है। मंच इसका हर स्तर पर विरोध करेगा।
मंच के अन्य सदस्यों- पूर्णेदु शुक्ल, शैलेंद्र शैली, पी.सी. शर्मा व जे.पी. धनौपिया ने कहा कि यह कानून भ्रष्टाचार करने वालों और गैर कानूनी क्रियाकलाप में लिप्त लोगों को बचाने के मकसद से बनाया जा रहा है।
ज्ञात हो कि मानसून सत्र में 22 जुलाई को सरकार ने कांग्रेस के भारी हंगामे के बीच कुल छह विधेयक पारित किए थे, जिनमें से एक ‘तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक-2015’ भी था। इस पर राज्यपाल के हस्ताक्षर होने अभी बाकी हैं।