उत्तर प्रदेश में सत्ता के यादवीकरण व सपा के यादवी व परिवारीकरण से गैर यादव अतिपिछड़ी व अत्यंत पिछड़ी जातियां काफी उपेक्षित महसूस कर रही हैं तथा विधानसभा चुनाव-2017 में सपा से इनके बिदकने की पूरी संभावना है, क्योंेकि गैर यादव पिछड़ा वर्ग सामाजिक व राजनीतिक उपेक्षा का पूरी तरह शिकार है।
उत्तर प्रदेश में सत्ता के यादवीकरण व सपा के यादवी व परिवारीकरण से गैर यादव अतिपिछड़ी व अत्यंत पिछड़ी जातियां काफी उपेक्षित महसूस कर रही हैं तथा विधानसभा चुनाव-2017 में सपा से इनके बिदकने की पूरी संभावना है, क्योंेकि गैर यादव पिछड़ा वर्ग सामाजिक व राजनीतिक उपेक्षा का पूरी तरह शिकार है।
उत्तर प्रदेश में 2015 के रैपिड सर्वे के अनुसार, ग्रामीण जनसंख्या में पिछड़ा वर्ग-53.33 प्रतिशत, अनुसूचित वर्ग-20.70 प्रतिशत, जनजाति वर्ग-0.57 प्रतिशत और सामान्य वर्ग की जनसंख्या-25.40 प्रतिशत है। मगर शहरी जनगणना को सम्मिलित किए जाने पर पिछड़े वर्ग व दलित वर्ग की जनसंख्या में-2-2, 3-3 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी।
सामाजिक न्याय समिति-2001 की सिफारिश के अनुसार, ग्रामीण जनसंख्या में सामान्य वर्ग की जातियां (हिंदू, मुस्लिम)-20.95 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग-24.05 प्रतिशत, अनुसूचित जातियां-24.94 प्रतिशत व अनुसूचित जनजातियां-0.06 प्रतिशत थीं।
कुल ग्रामीण जनसंख्या में यादव-19.39, निषाद, कश्यप, बिंद, धीवर-12.91 प्रतिशत, कुर्मी-7.56, लोधी, किसान-6.06 प्रतिशत, कुशवाहा, कोयरी, शाक्य, सैनी, मौर्य, काछी-8.56 प्रतिशत, पाल, बघेल, गड़ेरिया-4.43, तेली, साहू-4.43, प्रजापति-3.42, राजभर-2.44, चौहान-2.33, बढ़ई, विश्वकर्मा-2.37, लोहार-1.81, जाट-3.60, गूजर-1.71, सविता, नाई-1.01 तथा भुर्जीध्कांदू-1.43 प्रतिशत थे।
इसी तरह 24.94 प्रतिशत कुल दलितों की आबादी में चमार/जाटव/धुसिया-55.57 प्रतिशत, पासी, तड़माली-15.91 प्रतिशत, धोबी-6.51 प्रतिशत, कोरी-5.39 प्रतिशत, वाल्मीकि-2.96, खटिक-1.83, धानुक-1.57, गोड़-1.25, कोल-1.11 तथा अन्य अनुसूचित जातियां-7.78 प्रतिशत थीं।
सामाजिक न्याय समिति-2001 के मुताबिक, उप्र की कुल जनसंख्या में यादव-10.46, कुर्मी, लोधी, जाट, गूजर, सोनार, आरख, गोसाई, कलवार आदि मध्यवर्ती पिछड़ी जातियां-10.22 प्रतिशत तथा निषाद, मल्लाह, केवट, कहार, कुम्हार, राजभर, चौहान, पाल, कोयरी, कुशवाहा, शाक्य, सैनी, नाई, भुर्जी आदि जैसी अतिपिछड़ी जातियों की जनसंख्या-33.34 प्रतिशत थीं, जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में खासा महत्वपूर्ण स्थान है।
विधानसभा चुनाव 2002 में सपा को 29.42 व बसपा को 25.56 प्रतिशत, 2007 में बसपा को 29.65 व सपा को 25.75 प्रतिशत एवं विधानसभा चुनाव-2012 में सपा को 29.13 व बसपा को 25.91 प्रतिशत मत मिला था। इसे देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन 3-4 प्रतिशत के मध्य मतांतर के कारण होता रहा है और विधानसभा चुनाव 2017 में ऐसी ही तस्वीर उभर कर सामने आएगी।
उत्तर प्रदेश मंत्री मंडल में गैर यादव पिछड़े वर्ग के राममूर्ति वर्मा (कुर्मी) व राजेंद्र चौधरी (जाट), कैबिनेट मंत्री तो हैं, परंतु केवल नाम के और अत्यंत पिछड़े वर्ग में गायत्री प्रसाद प्रजापति को महत्व दिया गया, जो सपा नेतृत्व के इशारे पर माफियाओं व जाति विशेष के बालू व खनन ठेकेदारों को खासा लाभ पहुंचाने में जुटे हुए हैं।
सपा एक तरफ 17 अतिपिछड़ी जिनमें से 13 तो निषाद, मछुआ समुदाय से ही संबंधित हैं, को अनुसूचित जाति शामिल कराने के नाम पर ‘पोलिटिकल स्टंट’ किया जा रहा है, जो केवल चुनावी है।
दूसरी तरफ 1961 से विमुक्त जाति की सूची में शामिल रहीं मल्लाह, केवट, कहार, लोध, बंजारा, भर, मेवाती आदि जातियों का आरक्षण 10 जून, 2013 को खत्म कर दिया गया, जिससे ये जातियां बहुमत के साथ भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव में चली गई और विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के साथ ही ध्रुवीकृत हो सकती है।
अतिपिछड़ी जातियों व विमुक्त जातियों के आरक्षण व अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्ष करते आ रहे राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव व समाजवादी पार्टी के नेता चौधरी लौटन राम निषाद ने कहा कि उत्तर प्रदेश के चुनावी समीकरण में विमुक्त जातियों व 17 अतिपिछड़ी जातियों की अहम भूमिका रहेगी और ये जातियां गेम चेंजर की भूमिक निभाएंगी।
17 एमबीसी की जातियों की संख्या 15.30 प्रतिशत व विमुक्त जातियों की जनसंख्या-17.65 प्रतिशत है, जो राजनीतिक समीकरण को दाएं-बाएं करने के लिए काफी है।
यहीं नहीं, उत्तर प्रदेश के संगठन में निषाद जैसी अत्यंत प्रभावशाली जाति को कोई पद नहीं दिया गया है। निषाद, पाल, भुर्जी, लोधी, किसान जाति को न तो कैबिनेट में स्थान है और न ही कोई जिला व महानगर का अध्यक्ष।
दलित वर्ग में जाटव/चमार तो पूरी तरह बसपा के साथ ही लामबंद रहता रहा है तथा शेष अन्य दलित जातियां सपा, बसपा, भाजपा आदि में विभक्त हो रही है। परंतु पदोन्नति में दलितों का आरक्षण खत्म करने व उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम-1950 की धारा-157(क) में संशोधन कर किसी गैर दलित को जमीर बेचने का कानून सपा सरकार द्वारा बनाने की कवायद से दलित वर्ग सपा के विरुद्ध जा सकता है। बसपा को घर बैठे एक बड़ा मुद्दा पार्टी के साथ दलितों को जोड़ने का मिल गया है।
भाजपा मिशन-2017 पर अपनी काकदृष्टि जमा दी है और वह पिछड़ों, अतिपिछड़ों को अपने पाले में करने की हर कोशिश में सिद्दत के साथ जुटी है। भगवा पार्टी को अच्छी तरह पता है कि यूपी की सियासी लड़ाई में बिना पिछड़ों विशेषकर गैर यादव पिछड़ी जातियों के सहयोग को चुनावी नैया पार लगाना काफी कठिन है।
भाजपा जहां अपना दल के दोनों खेमों को साथ लेकर चलने का मन बनाए हुए है, वहीं रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के माध्यम से कोयरी, काछी, मौर्य, मुरांव, कुशवाहा, बिरादरी को लामबंद करने के लिए यूपी मिशन पर लगाने का खाका खींच रही है। इसकी शुरुआत 5 सितंबर को लखनऊ की रैली से होगी।
भाजपा में पिछड़ा वर्ग का प्रकोष्ठ हुआ करता था, परंतु 27 जून, 2013 को भाजपा मछुआरा प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक व अतिपिछड़ा वर्ग के तेज तर्रार नेता चौधरी लौटन राम निषाद के सुझाव पर तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह व प्रदेश प्रभारी अमित शाह ने सामाजिक न्याय मोर्चा के गठन को हरी झंडी दे दी।
लोकसभा चुनाव से पूर्व सामाजिक न्याय सम्मेलन के माध्यम से भाजपा ने पिछड़ों को काफी हद तक अपने साथ जोड़ने में सफल रही और अब तो भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ा वर्ग मोर्चा का स्वरूप तय कर प्रो. एसपीएस बघेल को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया है।
मिशन-2017 के लिए भाजपा गहन मंथन में जुटी हुई है और वह जातिगत समीकरण को चुस्त-दुरुस्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती। भाजपा के लिए एआईएमआईएम भी लाभकारी साबित होता, क्योंकि ओवैसी की पार्टी सपा, बसपा के ही वोट बैंक सेंधमारी करेगी जो भाजपा के लिए लाभ दायक साबित होगा।
सपा में सरकार की योजनाओं की प्रचार-प्रसार के लिए 5 अगस्त से 13 अगस्त तक साइकिल रैली चलाई और 17 अगस्त से दूसरे चरण की शुरुआत हो गई है।
भाजपा की साइकिल यात्रा के जवाब में पिछड़ों को लामबंद करने के लिए अक्टूबर से जगह-जगह मंडीय सामाजिक न्याय सम्मेलन के बाद पंचायत चुनाव के बाद ब्लॉक स्तरीय सम्मेलन पर सपा की अतिपिछड़ा विरोधी चेहरा उजागर करने का काम करेंगी, ऐसा पार्टी सूत्र बताते हैं।
पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल मानकर सपा व भाजपा लीटमस टेस्ट करने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में सामाजिक चिंतक लौटन राम निषाद ने कहा कि पंचायत चुनाव के आधार पर विधानसभा चुनाव की तस्वीर का आकलन नहीं किया जा सकता, क्योंकि पंचायत चुनाव स्थानीय मुद्दों व व्यक्ति के गुणदोष पर आधारित होते हैं।
पंचायत चुनाव के बाद भाजपा 17 अतिपिछड़ी व अत्यंत पिछड़ी जातियों में पैठ बढ़ाने के लिए सम्मेलनों का खाका तैयार करने में जुटेगी और विशेषकर गंगा जमुना सरयु के नगरों, महानगरों में सम्मेलन कर अत्यन्त पिछड़ों व गंगापुत्रों को सामाजिक न्याय की घुट्टी पिलाएगी।
लौटन राम ने स्पष्ट तौर पर कहा कि जो अतिपिछड़ों को सम्मान व सामाजिक न्याय के साथ राजनीतिक सम्मान देगा, विधानसभा चुनाव 2017 में अतिपिछड़े उसका साथ देंगे, अतिपिछड़ी अब तीतर-बटेर या वोटर-प्रचारक का ही काम नहीं करेंगे, बल्कि सामाजिक न्याय के लिए सजग हो निर्णायक की भूमिका निभाएंगे।
सामाजिक न्याय मोर्चा के प्रदेश महासचिव रमेशचंद्र वर्मा एडवोकेट ने कहा कि अब 17 अतिपिछड़ी जातियां सपा के बहकावे में आने वाली नहीं हैं। सपा अनुसूचित जाति में शामिल करने के नाम पर इन जातियों को बेवकूफ बनाती रही है। यदि सपा सामाजिक न्याय की पक्षधर होती तो विमुक्त जातियों का आरक्षण खत्म नहीं करती और 17 अतिपिछड़ी जातियों को जनसंख्यानुपात में विशेष आरक्षण कर देती जो राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है।
भाजपा ने जातिगत समीकरण को मजबूत करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ती दिख रही है। उसमें 35 सदस्यीय प्रदेश कमेटी में 6 अतिदलितों व 12 अतिपिछड़ों को प्रदेश पदाधिकारी बनाया है। अभी कुछ दिनों पूर्व भाजपा के प्रदेश महासचिव रहे कोरी जाति के रामनाथ कोबिद को बिहार का राज्यपाल बनाकर इस वर्ग को संदेश देने का काम किया है।
कायस्थ बिरादरी के ओम माथुर प्रदेश प्रभारी व कैलाश विजय वर्गी सह प्रभारी व प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल वैश्य समाज के हिस्सा हैं, वहीं उसने रामेश्वर चौरसिया, सत्येंद्र कुशवाहा, रमेश विधूड़ी (गूजर) व वीरेंद्र खटिक को प्रदेश क्षेत्रीय प्रभारी बनाकर अतिपिछड़ों व अतिदलितों को पार्टी से जोड़ने के लिए मिशन यूपी पर मुस्तैदी के साथ तैनात कर दिया है।
पार्टी के रणनीति का उत्तर प्रदेश में मुलायम व मायावती से चुनावी युद्ध में निपटने के लिए अतिपिछड़ों को अपने साथ लामबंद करने में जुटे हैं, ताकि मुलायम से पिछड़ा-मुस्लिम समीकरण से पार पाया जा सके।
पार्टी सूत्र बताते हैं कि भाजपा मुलायम को जवाब देने के लिए लगभग दो दर्जन यादवों के साथ 125-150 अतिपिछड़ों को विधान सभा टिकट देने की तैयारी कर रही है। पाल-बघेल के साथ उसकी दृष्टि लोधी, निषाद, कश्यप, किसान, प्रजापति राजभर, चौहार, काछी, कोयरी, मुरांव शाक्य, कुशवाहा, सविता जाति से तेज तर्रार लोगों को उभार कर सामने लाने पर मंथन चल रहा है।
अगस्त में ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है और पार्टी सूत्र बताते हैं कि उन्हें दूसरे कार्यकाल की जिम्मेदारी दिया जाना बिल्कुल असंभव है। ऐसे में पूरी संभावना है कि भाजपा सपा को जवाब देने के लिए किसी बड़े जनाधार वाले अतिपिछड़ी जाति के नेता को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देगी।
मोदी-शाह फार्मूला के तहत किसी अतिपिछड़े को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना पार्टी हित में बताया जा रहा है। वैसे भाजपा में अगले प्रदेश अध्यक्ष के लिए कई लोग दिल्ली की दौड़ लगा रहे हैं।
पार्टी सूत्र बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी हथियारे के लिए पूर्व संगठन मंत्री प्रकाश पाल, प्रदेश महामंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, केशव मौर्य, धर्म पाल सिंह लोधी का नाम चर्चा-ए-खास है। इसमें से प्रकाश पाल या धर्म पाल सिंह को यह जिम्मेदारी देने की पूरी संभावना है।
प्रदेश अध्यक्ष के लिए स्वतंत्र देव सिंह काफी सक्रिय बताए जा रहे हैं, परंतु इनकी एक सबसे बड़ी कमजोरी हैं कि ये न तो पूरे प्रदेश में प्रभावी है और न ही इनकी कोई जातिगत पहचान है। सामाजिक न्याय मोर्चा के संगठन मंत्री व पश्चिमी उप्र के क्षेत्रीय अध्यक्ष के तौर पर प्रकाश पाल सराहनीय कार्य किए, अपने व्यक्तित्व व कृतित्व के कारण अतिपिछड़े वर्ग के साथ-साथ सवर्ण समाज में भी प्रकाश पाल की अच्छी पकड़ व छवि है।
वहीं निषाद, लोधी, बिंद, कश्यप, समाज की निर्णायक स्थिति को देखते हुए धर्म पाल सिंह लोधी को भी कम नहीं आका जा सकता। वैसे जहां तक पार्टी के अंदर खाने की चर्चा है उसके अनुसार, प्रकाश पाल व धर्म पाल सिंह में से किसी को प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर सौंपी जा सकती है।
एक प्रश्न के जवाब में अतिपिछड़ी वर्ग चिंतक लौटन राम निषाद का कथन था कि 2017 में अतिपिछड़ा वर्ग ही सत्ता प्राप्ति का माध्यम बनेगा, अत्यंत पिछड़ा वर्ग की भूमिका गेम चेंजर की रहेगी, क्योंकि कुल जनसंख्या में इनकी आबादी 33-34 प्रतिशत से अधिक है, जिसे नजरअंदाज करना किसी भी राजनीति दल के लिए घातक होगा।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव-2017 में भाजपा, बसपा, सपा के मध्य ही महासंग्राम होगा।
जैसी आम चर्चा है, यदि उसके अनुसार संघर्ष हुआ तो मुख्य लड़ाई इन्हीं तीनों दलों के मध्य होगी तथा सबसे बड़े पार्टी के रूप में जहां भाजपा के उभरने की संभावना है। वहीं सपा को तीसरे स्थान पर रहने को मजबूर होना पड़ेगा।
राजनीतिक पंडित बताते हैं कि 7 अगस्त को छोटे लोहिया की जयंती के अवसर पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री से नारजगी जताते हुए कहा था कि प्रदेश मंत्रिमंडल में अधिकांश मंत्री हारेंगे। सपा प्रमुख का यह कथन बिल्कुल सत्य है, क्योंकि जनमानस मंत्रियों विधायकों व सपा नेताओं के खिलाफ है।
अखिलेश मंत्रिमंडल के 5-6 मंत्री ही चुनाव जीतने की स्थिति में दिख रहे हैं और 3-4 दर्जन से अधिक विधायक फिर से चुनाव नहीं जीत सकते। ऐसे में सपा आलाकमान 4-5 दर्जन विधायकों का टिकट काटकर नए लोगों को जातिगत समीकरण की दृष्टि से उतारने का पूरा मन बना चुका है। (आईएएनएस/आईपीएन)
(लेखक राजनीतिक समीक्षक व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)