शास्त्रों कहना है कि होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में भद्रारहित समय में करना चाहिए। लेकिन इस वर्ष पूर्णिमा के साथ ही 26 तारीख को भद्रा आरंभ हो रहा और 27 मार्च को समाप्त हो रहा है।
वहीं 27 मार्च को पूर्णिमा तिथि भी दोपहर में समाप्त हो रही है ऐसे में दुविधा की स्थिति बन गयी है कि होलिका पूजन कब किया जाएगा।
धर्मसिन्धु नामक ग्रंथ में इस समस्या का निदान बताया गया है। इसके अनुसार भद्रामुख में होलिका पूजन नहीं करना चाहिए।
भद्रापुच्छ के समय अगर होलिका पूजन किया जाता है तो भद्रा दोष नहीं लगता है। शास्त्रों के अनुसार भद्रामुख में होलिका पूजन करने से प्राकृतिक आपदा एवं कष्ट का सामना करना पड़ता है।�
पंचांग के अनुसार इस वर्ष भारतीय मानक समय के अनुसार भद्रापुच्छ का समय 26 मार्च को शाम 6 बजकर 39 मिनट से 9 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। यह समय होलिका पूजन सभी तरह से शुभ है।
रात 12 बजकर 52 मिनट से 2बजकर 45 मिनट तक का समय इस कार्य के लिए पूरी तरह से अशुभ है। इसलिए पंचांग के आधार पर इस वर्ष होलिका पूजन 26 मार्च को संपन्न होगा।���
होलिका दहन पूजन-विधि
होलिका पूजा करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
होलिका दहन के समय फल-फूल, जल, मौली, गुलाल तथा गुड़ आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए। गोबर से बनाई गई ढाल और खिलौनों की चार मालाएं भी होलिका पूजन में इस्तेमाल किए जाते हैं।
इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर-परिवार के नाम की होती है।
कच्चे सूत को होलिका के चारों और 3-7 परिक्रमा करते हुए लपेटा जाता है। फिर शुद्ध जल और अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है।
होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्त धान्य, नई फसल का कुछ भाग है।
इसी तरह अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए नवग्रहों की लकड़ी मंत्रोच्चारण कर होलिका में अर्पण करने का विधान है।
होलिका दहन के दौरान गेहूं की बाली को इसमें सेंकना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के समय बाली सेंककर घर में फैलाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है।