नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। बीच पर छुट्टियां मनाते हुए, तैराकी करते हुए और प्राकृतिक आपदाओं के समय लोग अक्सर पानी में डूब जाते हैं। आपातकाल में उनकी मदद कैसे करें आसपास के लोगों को इस बारे में जानकारी न होने की वजह से ज्यादातर की मौत हो जाती है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के महासचिव पदमश्री डॉ. के.के. अग्रवाल का कहना है, “तुरंत सीपीआर देकर डूबने से पीड़ित व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। ज्यादातर हालातों में हैंड्सओनली सीपीआर 10 तकनीक कारगर साबित हो सकती है और इसमें मुंह से मुंह को कृत्रिम सांस देने की जरूरत पड़ती है।”
डॉ. अग्रवाल ने बताया, “अगर आप के आसपास कोई पानी में डूब रहा हो तो उसे तुरंत पानी से निकालें और सख्त और सूखी सतह पर पीठ के बल लेटा दें। तब आपातकाल मेडिकल सेवा के लिए कॉल करें और यह भी जांच करें कि सांस और नब्ज चल रही है या नहीं। डूबने के मामले में छाती दबाने के साथ-साथ मुंह से मुंह में सांस देने की जरूरत होती है।”
सीपीआर दे रहे व्यक्ति को घुटनों के बल बैठ कर, दोनों हाथों की उंगलियां एक दूसरे में फंसा कर और कोहनियां सीधी रख कर पीड़ित की छाती के बीचों बीच दस गुना दस कुल सौ बार प्रति मिनट की गति से 2 इंच तक दबाते रहना चाहिए। तीस बार इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद एक बार मुंह से मुंह में सांस देनी चाहिए। पीड़ित का सिर पीछे ले जाकर, उसका नाक बंद करें और उसके मुंह से दो लंबी सांसें उसके मुंह में दें। जब तक मरीज होश में ना आ जाए या मेडिकल सुविधा ना पहुंच जाए तब तक छाती दबाने की प्रक्रिया को जारी रखें।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, दिल्ली रेड क्रास सोसायटी और दिल्ली पुलिस ने 100 प्रतिशत पीसीआर वैन कर्मियों को इस स्वतंत्रा दिवस तक जीवन रक्षक तकनीक सीपीआर 10 की टरेनिंग देने का लक्ष्य बनाया है। अब तक 6500 कर्मियों को यह प्रशिक्षण दिया जा चुका है, जिसे सीपीआर या बायस्टेंडर सीपीआर और फस्र्ट रिस्पोंडर सीपीआर भी कहा जाता है।
2010 में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार आक्समिक कार्डियक अरेस्ट के मौके पर मुंह से मुंह में सांस देने की जरूरत नहीं होती, सिर्फ डूबने के मामले में और पीड़ित छोटा बच्चा हो तो ही इसकी जरूरत होती है। अगर 20 प्रतिशत भारतीय लोग यह तकनीक सीख लें तो 50 प्रतिशत जानें बचाई जा सकती हैं।
जब दिल का इलेक्ट्रिकल कंडक्टिंग सिस्टम काम करना बंद कर देता है और धड़कन अनियमित और बहुत तेज हो जाती है तो अचानक कार्डियक अरेस्ट हो जाता है। इसके तुरंत बाद दिल धड़कना बंद हो जाता है और दिमाग की ओर खून का बहाव बंद हो जाता है। इस वजह से व्यक्ति बेहोश हो जाता है और साधारण तरीके से सांस नहीं ले पाता।
कार्डियक अरेस्ट हार्ट अटैक की तरह नहीं होता, पर यह हार्ट अटैक की वजह से हो सकता है। ज्यादातर मामलों में कार्डियक अरेस्ट पहले 10 मिनटों में ठीक किया जा सकता है। यह इसलिए संभव है कि दिमाग पहले 10 मिनट तक जिंदा रहता है जब दिल और सांस प्रणाली रुक चुकी होती है, जिसे क्लीनिकल मौत माना जाता है। इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए और अपने क्षेत्र में ट्रेनिंग कैंप लगवाने के लिए एनजीओ के हेल्पलाइन नम्बर 9958771177 पर कॉल कर सकते हैं।