न्यूयॉर्क, 26 जुलाई (आईएएनएस)। लोकप्रिय धारणा के विपरीत, सेक्सी व हिंसात्मक सामग्री के सहारे मीडिया में उत्पादों के प्रचार से बिक्री में इजाफा नहीं होता। हालिया शोध में यह बात सामने आई है।
ओहियो स्टेट युनिवर्सिटी में कम्युनिकेशन व साइकोलॉजी के प्रोफेसर व अध्ययन के सह लेखक ब्रैड बुशमन ने कहा, “लोग विज्ञापन देखते समय सेक्सी अदाओं और हिसा में इस कदर खो जाते हैं कि वे विज्ञापन के संदेश पर ध्यान ही केंद्रित नहीं कर पाते।
बुशमैन ने कहा, विज्ञापनदाताओं को यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि सेक्सी अदाएं और हिंसा ही उनके उत्पादों की बिक्नी बढ़ाएगी।”
शोधकर्ताओं ने 44 सालों के 53 विभिन्न शोधों का मूल्यांकन किया, जिसमें लगभग 8500 लोगों ने हिस्सा लिया।
परिणाम ऑनलाइन पत्रिका ‘साइकोलॉजिकल बुलेटिन’ में प्रकाशित हुआ है।
यह विश्लेषण मीडिया के विभिन्न माध्यमों जैसे प्रिंट, टेलीविजन, फिल्म और कुछ वीडियो गेम्स को ध्यान में रखकर किया गया।
उन्होंने पाया कि जिन विज्ञापनों में सेक्सी भावना व हिंसा परोसी गई, उस विज्ञापन के ब्रांड के बारे में लोगों को कुछ याद नहीं रहा।
उन्होंने पाया कि जिन विज्ञापनों में सेक्सी अदाएं या हिंसा या फिर यौन तथा हिंसा दोनों हैं, वहां ब्नांड मेमोरी और विज्ञापनों में काफी असमानताएं हैं।
शोध कहता है कि सेक्स विज्ञापन ब्रांड के प्रति नजरिए तथा उसे खरीदने की मंशा को नुकसान नहीं पहुंचाता।