Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/load.php on line 926

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826
 जीवन की उत्कृष्टता और सार्थकता | dharmpath.com

Monday , 25 November 2024

Home » धर्म-अध्यात्म » जीवन की उत्कृष्टता और सार्थकता

जीवन की उत्कृष्टता और सार्थकता

Bramhandसुख प्राप्ति की चेष्टा प्रत्येक मनुष्य करता है। वह जीवन रूपी घड़ी की सुई की तरह क्रियाशील रहता है। क्रियाशील न रहने वाला मनुष्य जीवित रहते हुए भी मृत्यु के समान है। सुख का आधार मनुष्य की मन:स्थिति पर आधारित है। भिन्न-भिन्न मन:स्थिति के मनुष्यों में भी सुख की सामग्रियां भिन्न-भिन्न होती हैं। नशा करने वाले मनुष्य के लिए नशा सुख प्रदान करता है, लेकिन जो नशे की विभीषिका से परिचित हैं वे उससे दूर रहने में ही सुख की अनुभूति करते हैं।

प्रभु ने जितनी सुख-सुविधाएं व्यक्ति को प्रदान की हैं उतनी अन्य किसी जीव को नहीं। व्यक्ति स्वविवेक से अपनी क्षमता व उपलब्धियों का प्रयोग ईश्वर की सृष्टि को सुंदर, सुखी व संपन्न बनाने में करे, इसीलिए उसे यह सब प्राप्त हुआ है। इसी आधार पर व्यक्ति व पशु में सीमा-रेखा निर्धारित है, तभी मनुष्य जीवन की उत्कृष्टता और सार्थकता सिद्ध होती है। भोग से सुख प्राप्त होता है, वह इंद्रियों को तृप्त करता है। यह क्षणिक तृप्ति अग्नि में घी डालने की भांति भुलावे में भटकाने वाली है। मनुष्य विवेकशील प्राणी है। वह अंतरात्मा की आवाज सुनता है। उसे सच्चा सुख सेवा व साधना में ही मिलता है। इससे बढ़कर कोई ऐसा कर्म नहींजो मनुष्य को अपनी गरिमा का भान कराता हो। मेरे पास पर्याप्त भोजन है, इससे मेरी क्षुधापूर्ति सुखपूर्वक हो जाती है, किंतु इससे सदा के लिए भूख नहीं मिट जाती। मुझसे भी अधिक भूखा कोई है और उसे दो रोटी यदि दे दी जाएं तो भूखे की आत्मा की तृप्ति देखकर जो आनंद प्राप्त होगा वही सच्चा सुख है।

प्रभु ने इसी कारण मनुष्य को सामर्थय प्रदान की है कि वह इतना उपार्जित कर सकता है जिसके दसवें हिस्से में उसकी शारीरिक आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। शेष भाग यदि वह उस समाज के हित में प्रयुक्त करे, तभी वह सुख पा सकता है। अगर हम समाज का ऋण उतारने के लिए कुछ प्रयास न करें तो हम सच्चे अर्थो में सुखी नहींहो सकते। हम जो उपार्जन करें उसका आधा भाग परिवार के लिए व शेष भाग लोक-मंगल हित में व्यय करें। त्याग, परोपकार व लोक-मंगल के लिए अपने स्वर्थो को छोड़कर हम किसी पर कृपा नहीं करते, बल्कि समाज के ऋण को उतारने का प्रयास करते हैं।

जीवन की उत्कृष्टता और सार्थकता Reviewed by on . सुख प्राप्ति की चेष्टा प्रत्येक मनुष्य करता है। वह जीवन रूपी घड़ी की सुई की तरह क्रियाशील रहता है। क्रियाशील न रहने वाला मनुष्य जीवित रहते हुए भी मृत्यु के समान सुख प्राप्ति की चेष्टा प्रत्येक मनुष्य करता है। वह जीवन रूपी घड़ी की सुई की तरह क्रियाशील रहता है। क्रियाशील न रहने वाला मनुष्य जीवित रहते हुए भी मृत्यु के समान Rating:
scroll to top