भगवान महावीर भिक्षा प्राप्ति के लिए एक बस्ती में जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक निश्छल व परम सत्यवादी ग्रामीण किसान ने देखा तो वह रुका तथा झुककर दोनों हाथों से उनके चरण में स्पर्श किए।
महावीर ने तुरंत ग्रामीण के चरणों में अपना मस्तक झुका दिया।
एक महान विभूति को अपने पैरों में नतमस्तक होते देखकर किसान सकपका गया।
उसने आंखों में आंसू लाते हुए हाथ जोड़कर कहा – ‘अर्हंत, आप त्याग-तपस्या तथा ज्ञान के साक्षात भंडार हैं। मैंने ऐसे महान सद्गुणों की खान आपको नमन कर अपना जीवन धन्य किया। आपने मुझ जैसे अकिंचन किसान को नमन कर मुझे संकोच में क्यों डाला?’
भगवान महावीर बोले- ‘तुम्हारी निश्छलता, तुम्हारी परम पवित्र आत्मा तथा तुम्हारी सत्यनिष्ठा मेरे तप से कम नहीं है। तुम्हारे सत्य को मैं अपने तप से महान मानता हूं, इसलिए मैंने नमन किया है।’
वहां उपस्थित लोग भगवान महावीर की महान उदारता व निरभिमानता को देखते ही रह गए।