स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक सिद्ध पुरुष थे। हिंदू धर्म में परमहंस की पदवी उसे ही दी जाती है जो सच में ही सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त सिद्ध हो जाता है।
बंगाल के हुगली जिले में स्थित कामारपुकुर नामक गांव में रामकृष्ण का जन्म हुआ था।
स्वामी रामकृष्ण का पूरा जीवन कठोर साधना और तपस्या में ही बीता।
रामकृष्ण ने पंचनामी, बाउल, सहजिया, सिक्ख, ईसाई, इस्लाम आदि सभी मतों के अनुसार साधना की।
रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद के गुरु थे। इन दोनों महापुरुषों ने सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक अंधविश्वासों को दूर करने का प्रयास किया।
रामकृष्ण परमहंस मां काली के परम भक्त थे, लेकिन इन्होंने कभी लोगों को मूर्ति पूजा के लिए प्रेरित नहीं किया।
उन्होंने जाति प्रथा, पूजा-पाठ की जगह लोगों को स्वतंत्र चिंतन की ओर उन्मुख होने की प्रेरणा दी।