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रिटायरमेंट फंड नॉर्म्स बदलने से केंद्र की बढ़ेगी मुश्किल

rbilogoनई दिल्ली: आने वाले महीनों में आरबीआई के पॉलिसी दरों में कटौती करने के बावजूद केंद्र सरकार को 2013-14 में अपने कर्ज पर अधिक इंटरेस्ट का भुगतान करना पड़ सकता है। अभी तक 5,00,000 लाख करोड़ रुपए से अधिक एसेट वाले रिटायरमेंट फंड से सरकारी बॉन्ड खरीदे जाते थे। अब ये फंड सालाना इनफ्लो का 55 फीसदी तक स्टेट गवर्नमेंट की सिक्योरिटीज में निवेश करने को आजाद होंगे। राज्य सरकार की सिक्योरिटी पर रिटायरमेंट फंड को 0.75-0.80 फीसदी अधिक रिटर्न मिल सकता है।

देश के एक बड़े प्राइवेट बैंक के सिक्योरिटीज डिपार्टमेंट के सीनियर अधिकारी ने बताया, ‘गवर्नमेंट सिक्योरिटीज मार्केट डायनामिक्स बदलेगा। सरकार को सस्ता फंड जुटाने में मुश्किल हो सकती है।’ पिछले महीने के अंत में लेबर मिनिस्ट्री ने प्रॉविडेंट फंड (पीएफ) इनवेस्टमेंट नॉर्म्स में कुछ बदलाव को स्वीकार किया था। फाइनैंस मिनिस्ट्री ने 2008 में चार साल की जद्दोजहद के बाद इसे स्वीकार किया था। 2003 में तय इनवेस्टमेंट नॉर्म्स के अनुसार, पीएफ को 25-55 फीसदी सेंट्रल गवर्नमेंट बॉन्ड और 15-45 फीसदी स्टेट गवर्नमेंट सिक्योरिटीज में जमा करना था। इन दोनों विंडो को 2008 में जोड़ दिया गया। इसके बाद पीएफ को 55 फीसदी तक फंड सेंट्रल या स्टेट गवर्नमेंट बॉन्ड, सिक्योरिटीज में जमा करने का ऑप्शन दिया गया।

केंद्र सरकार अगले साल 4,84,000 करोड़ रुपए का कर्ज लेगी। यह इस साल से सिर्फ 3.5 फीसदी अधिक है। गवर्नमेंट सिक्योरिटीज के दूसरे खरीदारों के उलट ईपीएफओ को इन बॉन्ड में ट्रेड करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें मैच्योर होने तक बॉन्ड अपने पास रखने पड़ते हैं। इस समय 4.4 लाख करोड़ रुपए की सेंट्रल गवर्नमेंट सिक्योरिटी में से करीब 1.2 लाख करोड़ रुपए के बॉन्ड ईपीएफओ के पास हैं।

इसी तरह से करीब 3,000 प्राइवेट पीएफ ट्रस्ट के पास करीब 2 लाख करोड़ की सिक्योरिटी है। इसका रेगुलेशन ईपीएफओ करता है। इनमें से 40 फीसदी रकम केंद्र सरकार के बॉन्ड्स में लगी है। हर साल करीब 60,000 करोड़ रुपए इन रिटायरमेंट फंड में आते हैं। इंडिया लाइफ कैपिटल के वाइस प्रेसिडेंट अमित गोपाल का कहना है, ‘अगले साल रिटायरमेंट फंड का बड़ा हिस्सा स्टेट गवर्नमेंट बॉन्ड में जा सकता है। इससे केंद्र सरकार के बॉरोइंग प्लान पर असर पड़ेगा। आरबीआई को इससे पैदा होने वाले जोखिम का ध्यान रखना होगा।’

एक्सपर्ट्स का मानना है कि स्टेट बॉन्ड इंटरेस्ट बढ़ने से केंद्र को पैसा जुटाने में दिक्कत आ सकती है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी के इकनॉमिस्ट एन आर भानुमूर्ति का कहना है, ‘अगर बड़े रिटायरमेंट फंड सेंट्रल गवर्नमेंट बॉन्ड नहीं खरीदेंगे, तब सरकार अपने डेफिसिट की भरपाई कैसे कर पाएगी?’ उन्होंने कहा कि सेंटर और स्टेट के बीच इनवेस्टर्स को अट्रैक्ट करने की प्रतिस्पर्धा का फायदा इकनॉमी को मिलेगा।

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