कुंभनगर। पतित पावनी गंगा-यमुना तीरे 55 दिनों तक चला विश्र्र्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम महाकुंभ 2013, महाशिवरात्रि स्नान पर्व के साथ ही रविवार को खत्म हो गया। इसके साथ ही तंबुओं की नगरी कुंभनगरी का नजारा बदल गया। तंबुओं की नगरी में रहने वाले आस्थावानों ने संगम में स्नान के बाद भोलेनाथ की कृपा के लिए विधि-विधान से पूजन -अर्चन किया।
प्रयाग क्षेत्र के दशाश्र्र्वमेध, मनकामेश्र्र्वर, पडि़ला महादेव एवं शिवकुटी स्थित मंदिरों में श्रद्धा भाव से भोलेनाथ का अभिषेक हुआ। संगम में डुबकी लगाने का सिलसिला भोर से ही आरंभ हो गया था। सूर्य निकलने के बाद स्नानार्थियों की संख्या बढ़ गई। माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के बाद भी कुंभ क्षेत्र में रुके बहुतेरे श्रद्धालुओं ने रविवार को स्नान करने के बाद शिविर में शिवलिंग बनाकर उनका अभिषेक किया। कुल देवता व पूर्वजों का पूजन कर भूल-चूक के लिए क्षमा याचना करते हुए वह गंतव्य को रवाना हो गए। संगम तीरे मकर संक्रांति शाही स्नान से महाकुंभ 2013 का आरंभ हुआ था। तीरथ राज प्रयाग की धरती अखाड़ों के महंत, हजारों संत-महात्माओं के भव्य शिविर से तकरीबन दो महीने गुलजार रही।
प्रयाग में कल्पवास का आरंभ पौष पूर्णिमा से होता है। वर्षो बाद ऐसा संयोग बना जब पौष पूर्णिमा मकर संक्त्रांति के बाद आई। तीनों शाही स्नान का साक्षी बनकर अधिक पुण्य अर्जित करने के लिए हजारों श्रद्धालु मकर संक्त्रांति से ही संगम की रेती पर डेरा जमाए थे। वसंत पंचमी पर आंधी-पानी भी श्रद्धालुओं की आस्था कम नहीं हुई। हर परेशानी को ईश्र्र्वर द्वारा ली जा रही परीक्षा समझकर वह कुंभ क्षेत्र में डटे रहे। माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के बाद अधिकतर संत व कल्पवासी यहां से लौट गए थे। तमाम संतों ने शिव की नगरी वाराणसी में डेरा डाल रखा था। वह भी महाशिवरात्रि पर स्नान के लिए संगम लौट आए थे। सेक्टर पांच, छह, सात, आठ, नौ, 10 व 12 में भी हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं व संतों का डेरा महाकुंभ की शुरुआत से ही था।