मुंबई। सरकार की चली तो निकट भविष्य में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति में न्यायाधीशों के कॉलेजियम का एकाधिकार खत्म हो जाएगा। यानी आने वाले दिनों में जज अब अपनी नियुक्ति खुद नहीं कर सकेंगे। अपने कामकाज में न्यायपालिका की आए दिन की दखलंदाजी से आजिज सरकार ने जजों को नियंत्रित करने का उपाय खोज लिया है। इसके तहत वह जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने की तैयारी में है।
कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने शनिवार को बताया कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को व्यापक करने की जरूरत पर सियासी आम राय कायम कर लिया गया है। विधि मंत्रालय ने आयोग के गठन के मद्देनजर प्रस्तावित विधेयक का मसौदा भी तैयार कर लिया है। वह पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे।
कुमार का कहना था कि प्रस्तावित विधेयक के जरिये जजों की नियुक्ति में न्यायपालिका के अलावा विधायिका की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाएगी। यानी नियुक्ति प्रक्रिया में जजों के अलावा विधायिका के भी प्रतिनिधि शामिल होंगे। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति पांच जजों का कॉलेजियम (भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित पांच सदस्यीय समिति को कॉलेजियम कहा जाता है।
यही जजों की नियुक्ति करती है।) करता है। बकौल अश्वनी कुमार, ‘जजों की नियुक्ति की मौजूदा प्रक्रिया उपयुक्त साबित नहीं हो रही है। इसमें बदलाव की जरूरत है। इस पर सियासी आम राय कायम कर लिया गया है।’ उन्होंने बताया कि नियुक्ति प्रक्रिया में खामी के चलते न्यायपालिका में बड़ी तादाद में रिक्तियां हैं। इससे न्याय मिलने में काफी देर हो रही है। कुमार के अनुसार वर्तमान में न्यायापालिका की तादाद 18 हजार के करीब है। इसे दोगुना किया जाना है। हाल-फिलहाल में 1800 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है।
भारत में करार नहीं है शादी
कानून मंत्री ने कहा कि भारत में शादी को करार या अनुबंध नहीं माना जाता है। यही कारण है कि क्रिमिनल ला (संशोधन) अध्यादेश 2013 के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया। कुमार के अनुसार सामाजिक सच्चाई को ध्यान में रखते हुए ही किसी कानून को बनाया जाता है।