नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को निर्देश दिया कि वह रक्त कैंसर से पीड़ित एक मरीज को मामले की अगली सुनवाई तक मुफ्त में आवश्यक उपचार उपलब्ध कराए। इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई में होगी।
अदालत ने माना कि मरीज की याचिका उच्च न्यायालय के लिए ‘दया याचिका’ है और रोगी की मदद करना अदालत का कर्तव्य है। मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश न्यायमूर्ति आई.एस. मेहता ने एम्स से मामले की अगली सुनवाई तक रोगी को मुफ्त में उपचार उपलब्ध कराने के आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई नौ जुलाई को होगी।
अदालत का यह आदेश याचिकाकर्ता आनंद कुमार मौर्य की याचिका पर आया है। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से एम्स को उसके भाई का मुफ्त और निरंतर उपचार करने के लिए आदेश देने की मांग की थी। आनंद का भाई रक्त कैंसर का मरीज है।
याचिकाकर्ता के वकील अशोक अग्रवाल ने न्यायालय में कहा कि 30 वर्षीय सतीश की एम्स में कीमोथेरेपी चल रही है। सतीश के उपचार पर उसका परिवार पहले ही तीन लाख रुपये खर्च कर चुका है, और इससे अधिक खर्च का वह वहन नहीं कर सकता।
अपनी याचिका में आनंद ने कहा कि उसका भाई मथुरा का निवासी है और वह एक फोटोकॉपी और लेमीनेशन की दुकान चलाता था। मार्च माह में पता चला कि वह बरकिट ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर का प्रकार) से ग्रसित है। बीमारी का पता चलने से मात्र तीन माह पहले ही उसकी शादी हुई थी।
याचिका में कहा गया है कि बीमारी के कारण दुकान बंद करनी पड़ी और उसके इलाज के खर्च का वहन करने के लिए दुकान की सारी मशीनें भी बेचनी पड़ीं।
याचिका में कहा गया है कि सतीश के पिता रेलवे में चतुर्थ श्रेणी के अधिकारी हैं और अब छह लोगों के परिवार में अकेले वही कमाने वाले बचे हैं। सतीश के पिता की मासिक आय 12,000 रुपये है।
याचिकाकर्ता ने बताया कि रोगी के पिता ने अपनी सारी बचत उसके इलाज पर खर्च कर दी और यहां तक कि उनके भविष्य निधि खाते में भी कुछ नहीं बचा है।
याचिकाकर्ता ने कहा, “उनसे (परिवार को) हाल ही में छह लाख रुपये के अतिरिक्त अनुमानित खर्च की बात कही गई है, जिसका वहन करने में वे असमर्थ हैं। याचिकाकर्ता चाहता है कि सतीश की जिंदगी बचाने के लिए उसका निरंतर और मुफ्त इलाज किया जाए।”
याचिका में कहा गया है कि परिवार इस खर्च को वहन करने की स्थिति में नहीं है और इस तरह की परिस्थिति में सतीश की कीमोथेरेपी रुक सकती है। इलाज रुकने से पूर्व में किए गए रोगी के उपचार का उल्टा प्रभाव पड़ सकता है और इससे उसका जीवन खतरे में पड़ सकता है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उपचार से सतीश के स्वास्थ्य में सुधार आ रहा है। साथ ही कहा कि उसके परिवार ने निदेशक को भी रोगी का मुफ्त में इलाज जारी रखने का आग्रह किया था, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।