नई दिल्ली, 9 जून (आईएएनएस/इंडियास्पेंड)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल इजरायल की यात्रा करने वाले हैं और वह ऐसा करने वाले प्रथम भारतीय प्रधानमंत्री होंगे। इस यात्रा से दोनों देशों के संबंधों को एक औपचारिकता मिलेगी, जो अभी खुलकर नहीं पेश किया गया था।
भारत ने जहां इजरायल को 17 सितंबर, 1950 को मान्यता दे दी थी, वहीं पूर्ण कूटनीतिक संबंध 1992 में स्थापित हो पाया। इसका एक कारण यह था कि पारंपरिक तौर पर भारत फिलिस्तीन का समर्थन करता था।
तब से अब तक दोनों देशों का संबंध मुख्यत: रक्षा खरीद तक सीमित रहा है। इसके अलावा दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे देशों की यात्रा करते रहे हैं। इजरायल से जहां करीब 38 हजार पर्यटक भारत आते हैं, वहीं 2013 में भारत से 40 हजार से अधिक पर्यटक इजरायल गए थे। इजरायल में भारतीय पर्यटकों की यह संख्या एशिया के किसी अन्य देश के मुकाबले अधिक है।
दोनों देशों के बीच कारोबारी और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भी संबंध बढ़ रहे हैं। दोनों देशों ने हाल में संयुक्त वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी गतिविधियों के लिए चार करोड़ डॉलर का एक भारत-इजरायल सहयोग कोष स्थापित किया है।
दोनों देशों के संबंधों को आज पांच क्षेत्रों में पारिभाषित किया जा सकता है :
1. रक्षा : हथियारों की खरीद के लिए इजरायल भारत का पांचवां सबसे बड़ा स्रोत है। गत एक दशक में भारत ने इजरायल से 10 अरब डॉलर से अधिक हथियार खरीदे हैं।
स्टैनफोर्ड जर्नल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस के एक आलेख के मुताबिक, 1962 के भारत-चीन युद्ध में इजरायल ने भारत की सहायता की थी। 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध में भी इजरायल ने भारत की सहायता की थी।
इसी आलेख के मुताबिक, भारत ने भी 1967 में छह दिवसीय युद्ध में विमानों के पुर्जे भेजकर इजरायल की सहायता की थी।
कारगिल युद्ध के दौरान जब गोला-बारूद की कमी पड़ गई थी, तब भी इजरायल ने भारत की सहायता की थी।
भारत ने लगभग सभी मानवरहित विमान इजरायल से खरीदे हैं।
इजरायल ने रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया मिशन में भी भारत की सहायता करने का वचन दिया है।
2. कूटनीति : मोदी से पहले भी कई उच्चस्तरीय यात्राएं इजरायल के लिए हुई हैं। 2000 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने और 2014 में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इजरायल का दौरा किया है।
1992 के बाद से कई द्विपक्षीय समझौते हुए हैं, जिसमें कृषि, शोध एवं विकास, अर्थव्यवस्था, उद्योग और सुरक्षा में सहयोग शामिल है।
3. कृषि : द्विपक्षीय संबंधों का यह एक महत्वपूर्ण पक्ष है। कृषि क्षेत्र में अनेक द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
इजरायल में पानी की कमी है और वह ड्रिप एरीगेशन पद्धति का विशेषज्ञ है।
बागवानी, खेती, बागान प्रबंधन, नर्सरी प्रबंधन, सूक्ष्म सिंचाई और सिंचाई बाद प्रबंधन क्षेत्र में इजरायली प्रौद्योगिकी से भारत को काफी लाभ मिला है। इसका हरियाणा और महाराष्ट्र में काफी उपयोग किया गया है।
भारत-इजरायल सहयोग के तहत आठ राज्यों में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया जाएगा, जिसमें सब्जियों, फूलों और फलों के उत्पादन में प्रौद्योगिकी के प्रयोग को प्रदर्शित किया जाएगा।
अब तक 10 ऐसे केंद्र स्थापित हो चुके हैं, जिसे बढ़ाकर 30 किया जाना है।
प्रौद्योगिकी के जरिए विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र की कृषि समस्या दूर करने के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हाल में इजरायल की यात्रा की थी।
4. जल प्रबंधन : इजरायल पानी की कम उपलब्धता के बीच जल प्रबंधन में पारंगत बन गया है।
वह अवजल प्रसंस्करण और खारे जल को मीठा बनाने की पद्धति में विशेषज्ञ बन चुका है। साल में दो बार होने वाले जल प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण नियंत्रण प्रदर्शनी एवं सम्मेलन में भारतीय दल हमेशा शिरकत करते हैं।
इजरायल की कंपनी आईडीई ने भारत में खारे जल को मीठा बनाने के अनेक संयंत्र स्थापित किए हैं।
5. व्यापार : 2013-14 में द्विपक्षीय व्यापार 6.06 अरब डॉलर था, जो 2009-10 से 57 फीसदी से अधिक था। 2013-14 में यह भारत के पक्ष में 1.44 अरब डॉलर झुका हुआ था।
भारत इजरायल को मुख्यत: खनिज ईंधन, तेल, मोती और रत्न का निर्यात करता है
इजरायल से भारत मुख्यत: प्राकृतिक एवं कृत्रिम मोती और रत्न का आयात करता है।
दोनों देश 2010 से वस्तु एवं सेवा क्षेत्र में मुक्त व्यापार समझौते के लिए भी वार्ता कर रहे हैं।
(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारित मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। ये लेखक के निजी विचार हैं)