वाशिंगटन, 7 जून (आईएएनएस)। पिछले 50 सालों में यद्यपि मधुमेह पीड़ितों द्वारा शर्करा की मात्रा की जांच के तरीकों में एक प्रभावशाली परिवर्तन हुआ है, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी और भी लंबा सफर तय करना है।
पूर्व में मधुमेह नियंत्रण का आकंलन करने के लिए रोगी के मूत्र में मौजूद शर्करा की जांच का पता लगाया जाता था। लेकिन आज के समय में रक्त शर्करा स्तर की जांच के कहीं अधिक और सटीक तरीके मौजूद हैं।
इन तरीकों में नॉन-इनवैसिव ए1सी विधि भी शामिल है, जो हर तीन महीने की अवधि में औसत रक्त शर्करा के स्तर को मापता है।
डेट्रॉयट में हेनरी फोर्ड हेल्थ सिस्टम में एमेरिटस विभाग के प्रमुख फ्रेड व्हाइटहाउस ने कहा, “यह तरीका हमें इसका एक बेहतर संकेत देता है कि पीड़ित व्यक्ति सही राह पर है अथवा नहीं।”
उन्होंने कहा, “बहुत परिवर्तन हुए हैं, जिनमें से ज्यादातर परिवर्तन बेहतरी के लिए हैं। लेकिन लोगों को इलाज चाहिए जो कि हमारे पास अभी तक नहीं है।”
अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के मुख्य वैज्ञानिक और चिकित्सा अधिकारी रॉबर्ट रैटनर ने कहा, “मधुमेह और इसकी जटिलताओं के बारे में हमारी समझ में काफी वृद्धि हुई है, बावजूद इसके हम केवल रोग का उपचार करने में सक्षम हुए हैं।”
जटिलताओं के कारण मधुमेह गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है।
अलबर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडिसिन्स डायबिटीज रिसर्च सेंटर के माइकल ब्राउनली ने कहा, “अगर जटिलताएं न हों तो मधुमेह हाइपोथाराइडिज्म और किसी अन्य आसानी से नियंत्रण पाने वाली बीमारी की तरह होती। आपको हार्मोन को प्रतिस्थापित करने के लिए केवल एक गोली की जरूरत है और सब कुछ ठीक हो जाएगा।”
नया उपचार हाइपोग्लाइसीमिया के खतरे के बिना अनुकूलतम ग्लूकोज और चयापचय नियंत्रण उपलब्ध कराएगा और मधुमेह की जटिलताएं इतिहास बन जाएंगी।
अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के 75वें वैज्ञानिक सत्र के दौरान हाल ही में आयोजित एक विशेष परिचर्चा में शोधकर्ताओं ने कहा, “अगले 50 सालों में उस प्रक्रिया के बारे में स्पष्ट हो जाना चाहिए, जिससे टाइप-1 और टाइप-2 का मधुमेह होता है। इसके साथ ही उन महत्वपूर्ण कदमों के बारे में भी पता चल जाना चाहिए, जिनमें हस्तक्षेप कर हम बीमारी को रोक सकें।”