कोलकाता, 6 जून (आईएएनएस)। पिछले 13 सालों में पहली बार मोहन बागान को आई-लीग के खिताब तक पहुंचाने वाले टीम के कोच संजय सेन का मानना है कि स्थानीय स्तर पर भी कई प्रतिभाशाली कोच मौजूद हैं जो भारतीय फुटबाल टीम को आगे ले जाने का कार्य कर सकते हैं।
कोलकाता, 6 जून (आईएएनएस)। पिछले 13 सालों में पहली बार मोहन बागान को आई-लीग के खिताब तक पहुंचाने वाले टीम के कोच संजय सेन का मानना है कि स्थानीय स्तर पर भी कई प्रतिभाशाली कोच मौजूद हैं जो भारतीय फुटबाल टीम को आगे ले जाने का कार्य कर सकते हैं।
सेन के अनुसार, “मैं विदेशी कोचों का विरोधी नहीं हूं। आप लेकिन बताएं कि कितने विदेशी कोचों ने राष्ट्रीय टीम या क्लब टीमों को खिताब दिलाए हैं। यहां हमेशा भारतीय कोच ही कामयाब रहे हैं।”
आईएएनएस से साक्षात्कार में सेन ने कहा, “सामान्य स्तर से नीचे के विदेशी कोचों को लेने का कोई मतलब नहीं है। आपके पास अच्छे कोच होने चाहिए जो भारतीय फुटबाल को आगे ले जा सकें।”
सेन ने इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) की भी तारीफ की और कहा कि इससे भारतीय खिलाड़ियों को अपना स्तर सुधारने में मदद मिली है। सेन ने हालांकि साथ ही कहा है कि यह अभी देखना बाकी है कि आईएसएल भविष्य में भारतीय फुटबाल के लिए कितना फायदेमंद साबित होता है।
सेन पिछले साल दिसंबर में 125 साल पुराने मोहन बागान क्लब के कोच बने। उन्होंने सुभाष भौमिक का स्थान लिया जिनके पास आई-लीग टीमों की कोचिंग के लिए एशियन फुटबाल परिसंघ (एएफसी) द्वारा जारी किया जाने वाला जरूरी लाइसेंस नहीं था।
सेन ने कहा कि पहली बार मोहन बागान द्वारा आई-लीग जीतना अब भले ही किसी परी-कथा के समान लग रहा हो लेकिन उन्हें इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी।
सेन के मुताबिक, “मैंने जब टीम के साथ अभ्यास शुरू किया तो खिलाड़ियों के अलावा हमारे साथ कोई नहीं था। धीरे-धीरे हमने जीतना शुरू किया और फिर क्लब अधिकारियों के साथ-साथ प्रशंसक भी हमसे पहले की तरह जुड़ते चले गए।”
सेन ने कहा कि मोहन बागान के साथ आई-लीग जीतने के लम्हे को वह शब्दों में बयान नहीं कर सकते और यह उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्घि है।
उल्लेखनीय है कि सेन जब मोहन बागान से जुड़े तब क्लब आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। सेन ने बताया कि उस समय खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना बेहद मुश्किल कार्य था लेकिन सभी ने उनकी बातों का अनुसरण किया।
सेन के अनुसार, “उस समय टीम को संभालना मुश्किल था। मैंने क्लब को टीम को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास किया और खिलाड़ियों से कहा कि उन्हें एक या दो महीने तक पैसों के भुगतान के बगैर खेलना होगा। मैंने खिलाड़ियों से कहा कि उन्हें अपने परिवार, व्यक्तिगत लक्ष्य और प्रशंसकों के लिए खेलना होगा और उन्होंने मेरी बात पर गौर किया।”