काशी भगवान शिव की सर्व प्रिय नगरी है, क्योंकि यह क्षेत्र ऋषियों द्वारा पूजित है, यहां मरने वाले पापियों की भी एक ही जन्म में मुक्ति हो जाती है। यहां सिद्ध गंधर्वो से सेवित पुण्य नदी गंगा प्रवाहित होती है। जन मान्यता है कि साक्षात शिव यहां निवास करते हैं। काशी की सृष्टि स्वयं देवाधिदेव महादेव ने की और वे इस नगरी के अधिष्ठाता देवता हैं। काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजमान हैं। जब प्रलय होता है तब भी काशी का नाश नहीं होता। प्रलयकाल में शिवजी इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं इसलिए यह अविनाशी हैं। मान्यता है कि काशी दर्शन के बिना सम्पूर्ण भारत की यात्रा अपूर्ण है। इन दिनों प्रयाग के महाकुंभ में आए लाखों तीर्थ यात्रियों का यहां गंगा स्नान व काशी विश्र्र्वनाथ के दर्शन करने आना इसका स्पष्ट प्रमाण है।
वाराणसी विश्र्र्व का एक महत्वपूर्ण नगर है। यह अनेक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और रमणीक स्थलों की आकाशगंगा है। विश्र्र्व का सबसे बड़ा विद्या और ज्ञान का केंद्र है और तीर्थो का ऐसा संगम है जहां पल- प्रतिपल अलग अलग धर्म, जाति और सम्प्रदाय के लोगों का कुंभ लगता है। वाराणसी का अवलोकन जीवन का उत्सव है। जहां हर कोई बार-बार आना चाहता है, देखना चाहता है, उसके बहुसंख्यक चेहरे, उसके भीतर की आत्मा, उसके अध्यात्म और दर्शन से रूबरू होना चाहता है।
इस नगरी का अपना एक और वैशिष्ट्य है, सात वार नौ त्योहार। काशी के लिए एक प्रसिद्ध कहावत है और इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि यहां सभी धमरें व सम्प्रदायों के लोग रहते हैं और सभी के अपने अपने पर्व, उत्सव, त्योहार हैं। सभी महत्वपूर्ण है लेकिन शिव की नगरी में महाशिवरात्रि विशेष महत्व रखता है। महाशिवरात्रि को शिव पार्वती के महामिलन के साथ ही ज्यार्तिलिंगों के प्राकट्य का दिन भी माना जाता है लेकिन काशी के लोग इसे शिव विवाह के रूप में मनाते हैं। शिवरात्रि पर होने वाले शिव विवाह पर तो पूरी काशी नगरी का उल्लास और उमंग देखते ही बनता है। इस दिन पूरी काशी शिवमय हो जाती है। काशी के कोने कोने से धूम-धाम से निकलने वाली अपने आराध्य की बरातों में सभी काशीवासी चाहे वह किसी धर्म, सम्प्रदाय व मत का हो, केवल बराती के रूप में शामिल ही नहीं होता, अपितु अपने आराध्य के प्रति आस्था व समर्पण का भाव भी प्रदर्शित करता है। सभी भोले की वर यात्रा में बराती होने का सौभाग्य प्राप्त करना चाहते हैं। ऐसा प्रतीत होता है, मानो भोले के विवाह में सभी देव, ऋषि-मुनि, भूत-प्रेत, पिशाच, किन्नर, गंधर्व, मेघ, समुद्र, सूर्य, तारे प्रसन्नता से युक्त होकर शामिल हैं। प्रत्येक काशीवासी इस शिव विवाह में इस मनोभाव से सम्मिलित होता है जैसे उसके अपने घर का कोई उत्सव हो। काशी के अधिष्ठाता के साथ यह उत्सव जुड़ा होने के कारण यहां के नागरिकों के लिए इस पर्व से बड़ा कोई पर्व नहीं है। सभी ठंढई व भंग के तरंग में मगन होकर झूमते-नाचते नजर आते हैं। महाशिवरात्रि पर काशी विश्र्र्वनाथ सहित नगर के सभी शिव मंदिरों में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ता है। मंदिरों के इर्द गिर्द शिवभक्तों का मेला रहता है। चारों ओर हर हर महादेव एवं ऊं नम: शिवाय की अनुगूंज कानों में गूंजती रहती है। मेला शब्द का अर्थ ही है मिलना और बनारस के लोगों में एक दूसरे से मिलने की उत्कंठा हमेशा प्रबल रही है। बनारस अपने आप में कभी सीमित नहीं रह सकता, इसलिए दूसरे नगरों की तुलना में यहां मेले, त्योहारों, पवरें व उत्सवों का महत्व अधिक रहा है।
इस नगरी के लोग अधिकांश शिवभक्त हैं। शिव के बताए नियमों का ही पालन करने की कोशिश करते हैं। अक्खड़पन और फक्कड़पन यहां के जन जीवन का रस है। किसी ने लिखा है-चना चबैना, गंग जल जो पुरवे करतार, काशी कबहुं न छोडि़ए विश्र्र्वनाथ दरबार। देश विदेश से यहां जो भी आया उसे काशी ने सदाशयता से अपनाया और वह भी इस नगरी का हो गया। संतोषम् परमं सुखम् की भावना रखकर जीवन यापन करना काशी वासियों की नियति है। वे बहुत झंझावात व जंजाल में पड़ना नहीं जानते। पुराणों के अनुसार अपने विवाह के पश्चात महाकांति सम्पन्न भगवान शिव अपने गणों, नंदी तथा माता पार्वती इसी दिव्य पुरी वाराणसी में आए और निवास किया इसलिए वाराणसी में महाशिवरात्रि विशेष महत्व रखता है।
जय बाबा विश्र्र्वनाथ हर हर गंगे ।