नई दिल्ली, – (आईएएनएस/इंडियास्पेंड)। ग्रीनपीस के भारतीय कार्यालय को बंद करने के सरकार के इरादे का मुख्य कारण क्या है, इस पर अधिक चर्चा नहीं हो रही है। इसका प्रमुख कारण कोयला हो सकता है, जो देश का औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने की नरेंद्र मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के केंद्र में है।
विश्व संसाधन संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक, इस वक्त दुनिया भर में 14 लाख मेगावाट से अधिक क्षमता के कुल 1,199 नए कोयला आधारित ताप बिजली संयंत्र प्रस्तावित हैं। इनमें से 455 संयंत्र अकेले भारत में प्रस्तावित हैं।
भारत लगभग पूरी तरह से कोयला, तेल एवं गैस जैसे जीवाश्म ईंधन पर आश्रित है, जो देश की कुल जरूरत के तीन-चौथाई हिस्से की पूर्ति करता है। मोदी सरकार हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दे रही है।
जीवाश्म ईंधन में भी तेल और गैस सिर्फ 30 फीसदी के करीब बिजली जरूरत की ही पूर्ति करते हैं। गौर करने वाली बात यह भी है कि भारत के पास कोयले का विशाल भंडार मौजूद है, जो दुनिया में चौथा सबसे बड़ा कोयला भंडार है।
कोयला देश की कुल बिजली जरूरत के 54.5 फीसदी हिस्से की पूर्ति करता है और देश की कुल स्थापित क्षमता में 61.5 फीसदी योगदान करता है। यह इस्पात तथा सीमेंट उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक देश में 2035 तक कोयले की खपत बढ़कर दोगुना हो जाएगी और 2020 तक यह सबसे बड़ा कोयला आयातक बन जाएगा।
कोयला यद्यपि सस्ता है, लेकिन इससे सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन होता है। कोयला आधारित ताप बिजली संयंत्र जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े कारण हैं।
ग्रीनपीस दुनिया भर में कोयला खनन और ईंधन रूप में कोयला के उपयोग के विरुद्ध आंदोलन चला रहा है। इसकी भारतीय इकाई ने भी कोयला आधारित ताप बिजली संयंत्रों और जंगलों में कोयला खनन के विरोध में सशक्त अभियान चलाया है।
कोल इंडिया और अडाणी निशाने पर :
सरकार के लिए परेशानी की बात यह भी है कि ग्रीनपीस कोल इंडिया और अडाणी को निशाना बना रहा है। कोल इंडिया देश की पांचवीं सर्वाधिक बाजार मूल्य (35.9 अरब डॉलर) वाली कंपनी है और गुजरात के अडाणी समूह के प्रमोटर गौतम अडाणी की मोदी से काफी निकटता है।
ग्रीनपीस ने दोनों ही कंपनियों के विरुद्ध अभियान चलाया है। ग्रीनपीस की आस्ट्रेलिया शाखा ने दुनिया के सबसे बड़े कोयला भंडार (क्वींसलैंड का कारमिकेल खदान, जिसका अधिग्रहण अडाणी ने 16.5 अरब डॉलर में किया है) विकसित करने की अडाणी की योजना का विरोध किया है।
चीन की तर्ज पर औद्योगीकरण :
मोदी सरकार भारत के लिए ‘दुनिया का कारखाना’ की चीन की पहचान पर कब्जा जमाना चाहती है, जिसमें कोल इंडिया और अडाणी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
चीन की तर्ज पर भारत के औद्योगीकरण की सरकार की इच्छा का संकेत पहली बार तब मिला, जब सरकार ने मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत कई विशालकाय परियोजनाओं की घोषणा की।
इन परियोजनाओं की राह में पहली बड़ी बाधा भूमि अधिग्रहण की थी, जिसका निदान कानून में संशोधन के जरिए किया जा रहा है। दूसरी प्रमुख बाधा बिजली की है, जिसमें कोयला बड़ी भूमिका निभा सकता है। यही ग्रीनपीस जैसे संस्थानों के प्रति खुन्नस का प्रमुख कारण हो सकता है।
कोयला और जलवायु परिवर्तन : अस्तित्व के लिए बड़ी चुनौती
कोयला, तेल और गैस जलाए जाने से विशाल मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन होता है। चूंकि वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर काफी ऊंचा है, इसलिए जीवाश्म ईंधन के एक सूक्ष्म हिस्से का उपयोग किया जाए, तभी वातावरण सुरक्षित रह सकता है। इसीलिए ग्रीनपीस जैसी संस्थाएं कोयला जैसे जीवाश्म ईंधनों के उपयोग की विरोधी हैं।
लेकिन मोदी सरकार और देश के बुर्जुआ वर्ग के लिए यह उनकी पसंदीदा संपत्ति को उनके हाथ से छीनने के जैसा है। यही कारण है कि ग्रीनपीस सरकार के निशाने पर आ गया, जो इस कड़ी में पहला ही है।
(एक गैर लाभकारी, जनहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड डॉट ऑर्ग के साथ एक व्यवस्था के तहत। सजय जोस बेंगलुरू के स्वतंत्र मीडिया पेशेवर हैं। यह उनका निजी विचार है।)