चेन्नई, 4 मई (आईएएनएस)। एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की याचिका पर प्रतिभूति अपीली न्यायाधिकरण (एसएटी) मंगलवार को सुनवाई कर सकता है। इस पर बीमा कंपनियों की निगाह टिकी रहेगी।
एसबीआई लाइफ ने याचिका में आईआरडीएआई के आदेश को चुनौती दी है, जिसने एसबीआई लाइफ को पॉलिसी धारकों को करीब 275 करोड़ रुपये वापस करने का आदेश दिया है।
एसएटी यदि याचिका को स्वीकार करता है, तो संभव है आईआरडीएआई उस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे।
एसएटी मंगलवार को याचिका पर सुनवाई कर सकता है कि इसे स्वीकार करें या खारिज करें। इस बारे में जरूरी नोटिस आईआरडीएआई को भी भेज दिया गया है।
एसबीआई लाइफ में भारतीय स्टेट बैंक की 74 फीसदी और फ्रांस की बीएनपी पारिबा कार्डिफ की 26 फीसदी हिस्सेदारी है।
याचिका स्वीकार किए जाने की राह में दो बड़ी बाधाएं हैं। पहला, एसएटी का अधिकार क्षेत्र और दूसरा, सुनवाई में बीमा क्षेत्र का अनुभव रखने वाले सदस्य की मौजूदगी नहीं होना।
बीमा कानून (संशोधन) अधिनियम-2015 23 मार्च, 2015 को अधिसूचित हुआ है, लेकिन यह 26 दिसंबर, 2014 की तिथि से प्रभावी होगा, क्योंकि इस तिथि को अध्यादेश के रूप में लागू हुआ था।
बीमा, कंपनी, प्रतिस्पर्धा कानून की विशेषज्ञता रखने वाले सर्वोच्च न्यायालय के वकील डी. वरदराजन ने आईएएनएस से कहा, “मेरे विचार से एसएटी याचिका स्वीकार नहीं करेगा, क्योंकि उस पर जुर्माना अध्यादेश लागू होने से पहले लगाया गया है। इसके अनुरूप ही यह एसएटी के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।”
अध्यादेश लागू होने से पहले मौजूद कानून में एसएटी को बीमा नियामक के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करने का अधिकार नहीं था।
मार्च 2014 को आईआरडीएआई ने एसबीआई लाइफ को आदेश दिया था कि धनरक्षा-प्लस लिमिटेड प्रीमियम पेइंग टर्म पॉलिसी धारकों से अतिरिक्त वसूली गई 275.29 करोड़ रुपये राशि उन्हें वापस की जाए।
आईआरडीएआई के पूर्व सदस्य के.के. श्रीनिवासन ने आईएएनएस से कहा, “आईआरडीएआई को आखिरी पत्र फरवरी 2015 को जारी किया गया, जो अध्यादेश लागू होने के बाद की तिथि है। इसलिए यह तर्क रखा जा सकता है कि आईआरडीएआई का आखिरी आदेश कानून के अनुरूप नहीं है।”
आईआरडीएआई के फरवरी 2015 को जारी किए गए पत्र को संशोधित अधिनियम-2015 के लागू होने के बाद जारी किया गया आदेश नहीं माना जा सकता है।
यदि एसएटी याचिका को स्वीकार करता है, तो आईआरडीएआई के पास एक मात्र विकल्प सर्वोच्च न्यायालय में जाने का रह जाता है।