खंडवा, 1 मई (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर बढ़ाए जाने के विरोध में चल रहा जल सत्याग्रह शुक्रवार को 21वें दिन भी जारी रहा। सरकार के प्रतिनिधि तहसीलदार के प्रस्ताव को सत्याग्रहियों ने ठुकरा दिया है। साथ ही कहा है कि हक लेंगे या जल समाधि दे देंगे।
बांध का जलस्तर 189 मीटर से 191 मीटर किए जाने के विरोध में घोगलगांव में 11 अप्रैल से जल सत्याग्रह चल रहा है। सत्याग्रहियों के समर्थन में गूरुवार को 44 लोग और पानी में उतर चुके हैं। आंदोलनकारियों की तबियत बिगड़ रही है मगर उनका जोश बरकरार है।
पुनासा तहसीलदार मुकेश काशिव ने शुक्रवार को सत्याग्रहियों से मिल कर उनके समक्ष सरकार की बात रखी। उन्होंने बताया कि विस्थापित सरकार के पास उपलब्ध लैंड बैंक की जमीन ले लें और उनके लिए प्लाट की व्यवस्था भी की जाएगी।
वहीं प्रभावितों द्वारा स्पष्ट रूप से कहा गया कि वह लैंड बैंक की जमीनों को पहले भी कई बार देख चुके हैं, यह सभी जमीनें बंजर एवं अतिक्रमित हैं। अनेक स्थान पर पुराने अतिक्रमणकारियों ने उन्हें भगा दिया था। प्रभावितों ने यह भी बताया कि जो लैंड बैंक की जमीन है वह बंजर है। राज्य सरकार के राजस्व विभाग के पत्र 28 मई 2001 में साफ कहा गया है कि नर्मदा घाटी मंत्रालय द्वारा पुनर्वास के लिए अरक्षित की गई लैंड बैंक की जमीनें अनउपजाऊ है। इन दोनों प्रस्तावों से विस्थापितों का पुनर्वास नीति और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश अनुसार पुनर्वास संभव नहीं है।
विस्थापितों की मांग है कि सरकार या तो जमीन खरीद कर दे या वर्तमान बाजार भाव पर पात्रता अनुसार न्यूनतम पांच एकड़ जमीन खरीदने के लिया अनुदान दे ताकि विस्थापितों का उचित पुनर्वास हो सके।
वहीं डूब प्रभावितों ने यह भी स्पष्ट किया की वह सरकार से बातचीत के लिए हमेशा तैयार हैं ताकि विस्थापितों के पुनर्वास का हल निकला जा सके। उनके द्वारा नर्मदा घाटी मंत्री लाल सिंह आर्य, मुख्य सचिव एवं प्रमुख नर्मदा घाटी मंत्रालय को विस्थापितों के पुनर्वास संबंधित सभी मुद्दों से अवगत कराया जा चुका है। अब सिर्फ सरकार को निर्णय लेना है।
सत्याग्रहियों के पैरों में सूजन, शरीर दर्द, खुजली और बुखार की शिकायतें बढ़ रही है। वहीं धूप भी परेशान कर देने वाली है। प्रभावितों का कहना है कि अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनती तो यहीं उनकी जल समाधि हो जाएगी। शुक्रवार को फिर डॉक्टर की टीम ने जल सत्याग्रहियों के पैरों की जांच की और सत्याग्रहियों को इलाज की सलाह दी मगर उन्होंने उपचार लेने से मना कर दिया।