छात्रवृत्ति से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि शोध और विकास (आरएंडडी) क्षेत्र में भारत विकसित और कई विकासशील देशों से पीछे है।
छात्रवृत्ति से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि शोध और विकास (आरएंडडी) क्षेत्र में भारत विकसित और कई विकासशील देशों से पीछे है।
इंडियास्पेंड द्वारा यूनेस्को के आंकड़ों का किए गए एक विश्लेषणात्मक अध्ययन के मुताबिक, भारत में प्रति 10 लाख की आबादी पर 366 शोध पेशेवर हैं। यह संख्या ब्राजील में 1,366, चीन में 2,358 और जर्मनी में 6,995 है। आईसलैंड में यह संख्या सर्वाधिक 10,073 है।
गैरलाभकारी आरएंडडी संगठन बेटेले की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2013 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ 0.85 फीसदी हिस्सा आरएंडडी पर खर्च हुआ। 2014 में यह खर्च बढ़कर 0.9 फीसदी होने का अनुमान है। दुनियाभर में औसतन 1.8 फीसदी हिस्सा आरएंडडी पर खर्च होता है। अमेरिका के लिए जीडीपी की तुलना में यह अनुपात 2.8 फीसदी, चीन के लिए 2 फीसदी और रूस के लिए 1.5 फीसदी है।
भारतीय शोधार्थियों को औसतन सालाना 2.5 लाख रुपये वेतन मिलता है। यह प्रमुख आईटी और इंजीनियरिंग कंपनियों द्वारा नए स्नातकों को दी जाने वाली न्यूनतम औसत वेतनमान 3.2-5 लाख रुपये सालाना से काफी कम है।
देश के शोधार्थी शोधवृत्ति बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल में जब बेंगलुरू के भारतीय विज्ञान संस्थान गए थे, तब वहां के शोधार्थियों ने बाजू पर पट्टी बांध कर शोधवृत्ति बढ़ाए जाने की मांग की थी।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने अक्टूबर 2014 में शोधवृत्ति बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इसके तहत कनिष्ठ शोध फेलो की शोधवृत्ति 55 फीसदी बढ़ाकर 16 हजार रुपये से 25 हजार रुपये कर दी गई थी और शोध सहायक के लिए यह 66 फीसदी बढ़ाकर 24 हजार रुपये से 40 हजार रुपये कर दी गई थी।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी 15 फेलोशिप योजनाओं में 55 फीसदी वृद्धि करने की घोषणा की है। शोधार्थियों को हालांकि अब तक शोधवृत्ति की बढ़ी हुई राशि नहीं मिली है।
शोध को नजरंदाज करने से देश का भावी विकास प्रभावित हो सकता है और नवाचार में पिछड़ सकता है। आरएंडडी पर कम खर्च किए जाने के कारण भारत नवाचार और वैज्ञानिक विकास में समान क्षमता की अर्थव्यवस्था से पिछड़ रहा है। 2012 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस बात पर निराशा जताई थी कि देश में शोध और विकास पर खर्च काफी कम हो रहा है।
देश में शोधार्थियों की संख्या 4.4 लाख है। यह संख्या चीन में 32 लाख, जापान में 8.6 लाख, रूस में 8.3 लाख है। पेटेंट दाखिल करने के मामले में भी भारत पीछे है। दुनिया भर में दाखिल किए गए पेटेंट में 2012 में भारत की हिस्सेदारी 1.8 फीसदी थी।
विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, देश के अंदर दाखिल पेटेंट आवेदन में भी भारतीयों की संख्या 2005 से 2012 के बीच विदेशी आवेदकों से काफी कम रही। यह रुझान हालांकि ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में भी देखा गया है।
देश में महिला शोधार्थियों की संख्या भी काफी कम 15 फीसदी है। फ्रांस में यह 29 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में यह 41.4 फीसदी, जर्मनी में यह 27.3 फीसदी है और बुल्गारिया में यह सर्वाधिक 53.3 फीसदी है।
(देवानिक साहा ‘द पोलिटिकल इंडियन’ में डाटा संपादक हैं। इंडियास्पेंड डॉट ऑर्ग के साथ हुए समझौते के तहत। यह एक गैर लाभकारी पत्रकारिता मंच है, जो जनहित में काम करता है)