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नौकरी मिली तो छूटा तीर-कमान

रायपुर/कोरबा, 24 मार्च (आईएएनएस)। सरकार से नौकरी मिलने के बाद जिंदगी जीने की शैली बदल गई और जंगलों में तीर कमान लेकर घास-फूस की झोपड़ियों रहने वाले पहाड़ी कोरवा का ठाठ-बाट बदल गया।

सामान्य जीवन शैली से दूर अति पिछड़ी जनजाति अंतर्गत आने वाले पहाड़ी कोरवा युवक रोशु राम के पारंपरिक जीवन शैली में बदलाव ने अन्य कई कोरवा युवकों का ध्यान आकर्षित किया है। नौकरी के बाद नंगे पांव जंगल में घूमने-फिरने वाला कोरवा युवक रोशुराम के पास अब खुद की मोटर साइकिल है। उसके पहाड़ी इलाके में भले ही मोबाइल कंपनी का पूरा नेटवर्क नहीं है, लेकिन वह स्मार्टफोन रखता है और डायरेक्ट टू होम से जुड़कर समाचार देखने के अलावा मनोरंजन का लाभ भी लेता है।

कोरबा से लगभग 70 किलोमीटर दूर लबेद पंचायत अंतर्गत आने वाले कोरवाओं की एक छोटी सी बस्ती बलीपुर रनई नदी के तट पर है। लगभग 15 झोपड़ी वाली बस्ती की एक झोपड़ी में पहाड़ी कोरवा युवक रोशु अपने परिवार के साथ रहता है।

लगभग 10 वर्ष पहले रोशुराम को राज्य शासन की सहायता से स्कूल में चतुर्थ पद पर सरकारी नौकरी प्रदान की गई थी। रोशुराम ने बताया कि उसके पूर्वज और माता-पिता रनई के जंगल और पास के पहाड़ों में घास-फूस का घर बनाकर रहते थे। पूरा दिन अन्य दोस्तों के साथ जंगल में गुलेल और तीर कमान लेकर घूमने में गुजर जाता था।

स्कूल जाने की उसकी शुरू से ही इच्छा थी। इसलिए कुछ पढ़ाई करने की ठानी और कई किलोमीटर दूर श्यांग पंचायत के आश्रित में रहकर आठवीं तक पढ़ाई भी पूरी की। आठवीं पढ़ने पर उसे सरकार द्वारा चतुर्थ पद पर नौकरी मिली।

रोशुराम ने बताया, “कोरवा जनजाति के लोग अब भी काफी पिछड़े हुए हैं। माता-पिता भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने में ज्यादा रूचि नहीं लेते। सात-आठ साल पहले पहाड़ से उतरकर नीचे बसना भी नहीं चाहते थे। खेती किसानी और दूसरा कार्य भी किसी को पसंद नहीं था ऐसे में नौकरी के प्रति तो किसी की कोई रूचि नहीं थी। मैंने जब नौकरी शुरू की तो इसका लाभ भी मिलने लगा।”

पहाड़ी कोरवा रोशुराम ने बताया कि नौकरी के कुछ वर्ष बाद सेकंड हैंड मोटरसाइकिल खरीदी। स्कूल परिसर में ही मोटरसाइकिल चलाना सीखा। उसने बताया कि अब तक वह और उसके परिवार कई किलोमीटर तक उबड़-खाबड़ पथरीले रास्तों में पैदल ही सफर करते आए थे।

पहले साइकिल खरीदी उसमें चलना भी अच्छा लगता था, लेकिन मोटर साकिल में चलने का आनंद तो सचमुच अलग ही था। मिनटों में लंबी दूरी तय हो जाती है। कुछ साल बाद उसने नई मोटर साइकिल खरीदी और कुछ लागों को देखकर स्मार्टफोन भी खरीद लिया। बलीपुर निवासी रोशुराम ने बताया कि पहले बहुत कम आमदनी में घर का गुजारा होता था।

वेतन की राशि तो बहुत ज्यादा थी इससे बच्चों के लिए साइकिल, अपने लिए मोटर साइकिल, मोबाइल, घर का सामान पलंग, कुर्सी, आलमारी, टीवी, डीटीएच आदि खरीदा है। रोशुराम के तीन बच्चे हैं वह अपने बच्चों को भी अच्छे से पढ़ाकर नौकरी कराना चाहता है।

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