नई दिल्ली, 20 मार्च (आईएएनएस/आईपीएन)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष प्रयास कर रहे हैं। संप्रग सरकार के दस वर्षीय कार्यकाल में अनेक क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। सेशल्स मॉरीशस, श्रीलंका आदि देशों के साथ भारत के गहरे सांस्कृतिक व ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। लेकिन पिछले दस वर्षों में यहां चीन का हस्तक्षेप बहुत बढ़ा। उसकी रणनीति द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं थी, वरन वह समूचे हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाने की नीति पर अमल कर रहा था।
नई दिल्ली, 20 मार्च (आईएएनएस/आईपीएन)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष प्रयास कर रहे हैं। संप्रग सरकार के दस वर्षीय कार्यकाल में अनेक क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। सेशल्स मॉरीशस, श्रीलंका आदि देशों के साथ भारत के गहरे सांस्कृतिक व ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। लेकिन पिछले दस वर्षों में यहां चीन का हस्तक्षेप बहुत बढ़ा। उसकी रणनीति द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं थी, वरन वह समूचे हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाने की नीति पर अमल कर रहा था।
सेशल्स, मॉरीशस और श्रीलंका में चीन अपने ठिकाने बना रहा था। इससे हिंद महासागर क्षेत्र में असंतुलन स्थापित हो रहा है। ऐसे में नरेंद्र मोदी की इन तीनों देशों की यात्रा को सीमित ²ष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता। ऊपरी तौर पर भारत ने तीनों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों में सुधार की पहल की है, लेकिन भविष्य में इसके दूरगामी प्रभाव होंगे।
हिंद महासागर में चीन के मंसूबों को लंबे समय तक नजरंदाज नहीं किया जा सकता। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए कोलंबो अवश्य गए थे, लेकिन द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की दिशा में प्रगति नहीं हुई थी। मोदी नए सिरे से संबंधों की इबारत लिख रहे हैं। तीनों देशों के साथ उनकी यात्रा में महत्वपूर्ण समझौते हुए। इन पर अमल से संबंधों में उल्लेखनीय सुधार होगा।
नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा खास अंदाज में होती है। वह संबंधित देश की सरकार के साथ समझौतों तक अपने को सीमित नहीं रखते। समझौतों के साथ-साथ वह उस देश के नागरिकों तथा वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोगों से भी संवाद स्थापित करते हैं। इसकी उत्साहजनक प्रतिक्रिया होती हैं भारतीय मूल के लोगों का इससे उस देश में महत्व बढ़ता है। वहां की सरकारें इन लोगों पर अधिक ध्यान देती हैं।
वहीं उस देश के नागरिक भी भारत के साथ संबंधों को अच्छा रखने का अघोषित दबाव बनाते हैं। विदेश नीति के आकलन में इन तथ्यों को अलग नहीं रखा जा सकता। तीनों देशों में नरेंद्र मोदी अपने चिर परिचित अंदाज में दिखाई दिए।
सबसे पहले वह सेशल्स पहुंचे थे। चौंतीस वर्ष बाद यहां आने वाले वह पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। यहां दोनों देशों के बीच चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। सुरक्षा के मामले में भी दोनों देश एक दूसरे का सहयोग करेंगे। यह आशा की जा सकती है कि यह देश अपनी जमीन का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने देगा। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के हित सुरक्षित रहेंगे।
मोदी ने तटवर्ती क्षेत्र निगरानी राडार परियोजना का उद्घाटन किया। भारत उसे दूसरा ड्रोनियर विमान देगा। बीजा देना भी सरल किया गया है। हिंद महासागर में व्यापक सहयोग के महत्व को रेखांकित किया गया है। अक्षय ऊर्जा, ढांचागत सुविधाओं के विकास, तटीय क्षेत्रों को बेचे जाने के लिए संयुक्त रूप से नौवहन चार्ट का विकास तथा इलेक्ट्रॉनिक नौसंचालन संबंधी चार्ट बनाने से जुड़े चार महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
खासतौर पर नौवहन सहयोग के क्षेत्र में नया आयाम जुड़ा है। मोदी की पहल से सेशल्स के लोगों में सुरक्षा का विश्वास बढ़ा है। चीन इन तीनों देशों मे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से पहुंच बढ़ा रहा था। इसको रोकने में अब इन देशों में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री का दूसरा पड़ाव मॉरीशस था। इसे दूसरा या लघु भारत कहा जाता है। यहां की आबादी में अड़सठ प्रतिशत भारतीय मूल के लोग हैं, जिन्हें ब्रिटिश शासक मजदूर बनाकर यहां लाए थे। उन्हीं मजदूरों के वंशज आज मजबूत स्थिति में हैं। वह मॉरीशस की दशा-दिशा तय करते हैं मोदी यहां के राष्ट्रीय दिवस समारोह में मुख्य अतिथि थे। मॉरीशस के साथ पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। भारत महत्वपूर्ण परियोजाओं के लिए मॉरीशस की पचास करोड़ डालर का लाइन ऑफ क्रेडिट देगा।
मोदी ने कहा कि भारत दोनों देशों के सुरक्षा सहयोग को सामरिक साझेदारी की आधारशिला मानता है। दोनों देशों के बीच हुए समझौतों से सामरिक साझेदारी तथा महासागरीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भी प्रगति होगी। कालेधन की रोकथाम में मॉरीशस सहयोग देगा।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ के साथ डबल टैक्सेशन अवाइडेंस संधि पर भी वार्ता हुई। दोनों देशों के बीच यह महत्वपूर्ण मसला है। भारत में अधिकांश कालाधन इसी रास्ते से आता है। भारत में सर्वाधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाला देश मॉरीशस है। अब तब उसने पचपन अरब डालर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया है।
यह भी दिलचस्प है कि 1975 के एक प्रस्ताव पर मोदी की यात्रा के दौरान ही अमल हो सका। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम ने विश्व हिंदी सचिवालय बनाने का प्रस्ताव रखा था। अब जाकर मोदी की तत्परता से यह सपना साकार होगा।
नरेंद्र मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान यहां विश्व हिंदी सचिवालय भवन के निर्माण की आधारशिला रखी। इसके अलावा गंगा तालाब की यात्रा तथा शिव मंदिर में पूजा करके मोदी ने दोनों देशों के भावनात्मक रिश्तों का भी संदेश दिया। यह क्षेत्र मारीशस का सर्वाधिक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।
सामरिक विश्वास बहाली के लिए भारत उसे नौसैनिक सामरिक पोत सौंपा। यह भारत में निर्मित है। इसकी क्षमता तेरह हजार टन है। यह मॉरीशस को पहली सामरिक बिक्री है। इससे चीन की गतिविधियों पर भी नजर रहेगी। मॉरीशस के तेईस लाख वर्ग किलोमीटर तक फैले विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र की सुरक्षा में सहायता भी मिलेगी, क्योंकि यह आपात स्थिति में नौसेना के लिए मददगार साबित होने वाला आधुनिक पोत है।
मोदी पिछले अट्ठाइस वर्षो में लंका की द्विपक्षीय यात्रा पर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। वह तमिल बहुल जाफना क्षेत्र में जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। यह भारत और श्रीलंका दोनों की तमिल आबादी के लिए खुशी की बात है। भारत वहां के पुननिर्माण में अपनी भूमिका का निर्वाह करेगा।
मोदी की यात्रा ने तमिल व सिंहली सभी को एक साथ मिलकर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली है। भारत के सहयोग से बने सत्ताइस हजार मकान मोदी ने तमिलों को सौंपे।
पैंतालिस हजार मकानों का निर्माण दूसरे चरण में होगा। महाबोधि वृक्ष की पूजा, बौद्धों से मुलाकात करके मोदी ने श्रीलंका के साथ भावनात्मक रिश्ते का संदेश दिया, जिसकी यहां बहुत सराहना हुई।
यहां तलाईमन्नार रेल को मोदी ने रवाना किया। यह भारत के सबसे निकट रेलवे स्टेशन है। दोनों देशों ने लंबित समग्र आर्थिक साझेदारी करार की दिशा में बढ़ने का फैसला लिया। कुल मिलाकर श्रीलंका के साथ भी चार समझौते हुए। रेलवे, पेट्रोलियम के मामले में भारत उसे सहायता देगा।
व्यापार सुगम बनाने के लिए सीमा शुल्क संबंधी समझौता भी बहुत महत्वपूर्ण है समुद्री सुरक्षा तथा आतंकवाद के खिलाफ सहयोग पर जोर दिया गया। श्रीलंका मंे प्रस्तावित भारत महोत्सव, रामायण ट्रेल, बुद्ध स्थल आदि से संबंधित योजनाएं सांस्कृतिक रिश्ते प्रगाढ़ बनाएंगी।
तीन देशों की यात्रा से जहां द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत हुए, वहीं हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सामरिक, आर्थिक मौजूदगी को पुख्ता बनाने मे सहायता मिली है।