राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई मुख्यत: एक सामाजिक कार्यकर्ता रहे। जीवन के शुरुआती 23 साल गांधीजी के आश्रमों में बिताने के बाद उन्होंने दक्षिण गुजरात के एक आदिवासी गांव में गुजरात के विख्यात गांधीवादी जुगतराम दवे द्वारा स्थापित प्राथमिक विद्यालय में सपत्नीक शिक्षक का काम शुरू किया।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई मुख्यत: एक सामाजिक कार्यकर्ता रहे। जीवन के शुरुआती 23 साल गांधीजी के आश्रमों में बिताने के बाद उन्होंने दक्षिण गुजरात के एक आदिवासी गांव में गुजरात के विख्यात गांधीवादी जुगतराम दवे द्वारा स्थापित प्राथमिक विद्यालय में सपत्नीक शिक्षक का काम शुरू किया।
यह हैरत की बात है कि नारायणभाई ने कभी किसी स्कूल या कॉलेज का मुंह नहीं देखा, लेकिन वह अंग्रेजी, बंगला, उड़िया, मराठी, गुजराती, संस्कृत और हिंदी भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे। इन सभी भाषाओं में वह धाराप्रवाह लिखते और बोलते थे।
भूदान आन्दोलन शुरू होने पर एक युवा सामाजिक कार्यकर्ता के नाते उन्होंने विनोबा भावे से कहा कि गांधी द्वारा बताई गई सत्याग्रही की पहली शर्त (ईश्वर में विश्वास) उनके गले नहीं उतरती। विनोबा ने उनसे पूछा, “क्या तुम इंसान की अच्छाई में यकीन रख कर चल सकते हो?’ युवा नारायण ने जवाब दिया, ‘यह कुछ गले उतरने वाली बात हुई।’ इस पर विनोबा ने कहा, ‘तब तुम सत्याग्रह की पहली शर्त पूरी करते हो।’
भूदान आंदोलन के दौर में नारायण देसाई ने गुजरात में सैकड़ों किलोमीटर की पदयात्रा कर सैकड़ों एकड़ भूमि प्राप्त की और उसे भूमिहीनों में वितरित की। गुजराती में भूदान आंदोलन के मुखपत्र भूमिपुत्र की स्थापना और 1959 तक उसका संपादन किया। भूमिपुत्र का प्रकाशन आपात काल में सेंसरशिप की परवाह किए बगैर और तालाबन्दी जैसी सरकारी दमन से जूझता हुआ जारी रहा। आज भी भूमिपुत्र का एक बड़ा पाठकवर्ग है।
सर्वोदय आंदोलन के काम के दौरान पत्रिकाओं (तरुण मन और बुनियादी यकीन) के सम्पादन के अलावा गीत, गीत-नाट्य, अनुवाद और किताबें वे लिखते रहे – गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी में। हिन्दी में उनकी लिखी किताबों में प्रमुख हैं – विश्व की तरुणाई (दुनिया के छात्र-युवा आन्दोलनों पर), टैंक बनाम लोक (चेकस्लोवाकिया में कम्युनिस्ट तानाशाही के खिलाफ दुबचेक के नेतृत्व में हुए जन-प्रतिकार की गाथा), यत्रविश्वंभत्येकनीडम (यात्रा वृत्तान्त), सोनार बांग्ला (बांग्लादेश की कहानी) (प्रकाशक : सर्व सेवा संघ प्रकाशन, राजघाट, वाराणसी।
नारायण देसाई दंगा-शमन जैसे कामों के लिए बनी शांति सेना से जुड़े रहे। सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण के निकट सहयोगी रहे। बिहार निकाला भी हुआ। युवाओं के प्रशिक्षण में उनकी गहरी दिलचस्पी और लगन प्रकट होती है। आपातकाल के प्रतिकार में उनकी लिखी ‘तानाशाही को कैसे समझें?’ तथा ‘अहिंसक प्रतिकार पद्धतियां’ जैसी किताबों को छापने के कारण छापेखाने को दमन का सामना करना पड़ा।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 15, अगस्त 1942 को अंग्रेजों की कैद में पुणे की आगा खां महल में महात्मा गांधी के साथ निरुद्ध उनके सचिव महादेव देसाई का निधन हुआ था।
महात्मा गांधी की वाणी, लेखनी और क्रिया-कलाप को 25 वर्षो तक उन्होंने अपनी डायरी में दर्ज किया था। गांधीजी की आत्मकथा का अंग्रेजी अनुवाद महादेव देसाई द्वारा किया गया है।
सम्पूर्ण गांधी वांग्मय में महादेव देसाई की डायरी एक मूल स्रोत है। गांधीजी के अंग्रेजी मुखपत्र ‘हरिजन’ के सम्पादक महादेव देसाई थे। यह उम्मीद की जाती थी कि वे गांधीजी की एक वृहत जीवनी भी लिखेंगे, जो 50 वर्ष की अवस्था में जेल में हुई मौत के कारण वे न लिख सके। गांधीजी की मातृभाषा में यद्यपि उनकी आत्मकथा तो है ही परन्तु गुजराती में उनकी जीवनी नहीं थी।
इस पृष्ठभूमि में नारायण देसाई ने ‘मारू जीवन एज मारी वाणी’ शीर्षक से चार वृहत खण्डों में गांधीजी की जीवनी लिखी। इस ग्रंथ के लिए ज्ञानपीठ द्वारा दिया जाने वाला मूर्तिदेवी पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया।
इस पुरस्कार पर भेजी गई एक बधाई का उत्तर देते हुए नारायण देसाई ने कहा, “मुझसे उम्दा अल्फाज में मैथिलीशरण गुप्त कह गए हैं, राम तुम्हारा जीवन स्वयं एक काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।”
नारायण देसाई द्वारा लिखी गई अपने पिता की जीवनी ‘अग्नि कुण्डमा उगेलू गुलाब’ पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था।
(अफलातून देसाई नारायण देसाई के सबसे छोटे पुत्र हैं। काशीविश्वविद्यालय डॉट वर्डप्रेस डॉट कॉम से साभार)