झांसी, 3 मार्च (आईएएनएस)। होली का रंग चढ़ने में भले ही अभी वक्त थोड़ा बाकी हो, मगर बुंदेलखंड तो उत्साह और उमंग से सराबोर हो चला है। फाग और चौकड़ियों की गूंज खेत खलिहानों से लेकर गांव की चौपालों पर सुनाई देने लगी है तो राई नृत्य ने उत्साह और उमंग को चार गुना कर दिया है।
झांसी, 3 मार्च (आईएएनएस)। होली का रंग चढ़ने में भले ही अभी वक्त थोड़ा बाकी हो, मगर बुंदेलखंड तो उत्साह और उमंग से सराबोर हो चला है। फाग और चौकड़ियों की गूंज खेत खलिहानों से लेकर गांव की चौपालों पर सुनाई देने लगी है तो राई नृत्य ने उत्साह और उमंग को चार गुना कर दिया है।
बुंदेलखंड में होली के करीब आते ही दलहन की फसलों की कटाई का दौर शुरू हो जाता है, और इस मौके पर किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं होता, क्योंकि यह उनकी मेहनत के नतीजे का वक्त जो हाता है। यही कारण है कि होली के चार-पांच दिन पहले से गीत-संगीत का दौर चल पड़ता है। यह सिलसिला होली के पंद्रह दिन बाद तक चलता है।
बुंदेलखंड के बारसी घराने से ताल्लुकात रखने वाले रमजान बारसी कहते हैं कि यह समय मसूर, मूंग आदि दालों की कटाई का वक्त है और किसान इस मौके पर पूरी तरह व्यस्त होता है। रात-दिन काम चलता है, किसान फसल की कटाई का काम पूरे मंनोरजन के साथ करता है। एक तरफ जहां फाग और चौकड़िया गाई जाती हैं, वहीं राई जलाकर लोग नाचते भी हैं। यही कारण है कि इस नाच को राई नृत्य कहा जाता है।
बरसी बताते हैं कि बुंदेलखंड के शहरी इलाकों मे भले ही फाग, चौकड़ियां गाने की परंपरा कम हो गई हो, मगर ग्रामीण इलाकों में अब भी यह परंपरा कायम है। यही कारण है कि इन दिनों इस क्षेत्र के खेतों और खलिहानों में फाग और चौकड़ियां गाई जा रही हैं।
इसी तरह लोक कलाकार जयकरण निर्मोही कहते हैं कि अब तो इस क्षेत्र में उत्सव का समय आ गया है। किसान को खुशी मनाने का समय है। होलिका दहन के पहले से यह सिलसिला शुरू होता है और होलिका दहन के बाद हर तरफ रंग-अबीर उड़ने लगते हैं। इस इलाके में होली का पर्व होलिका दहन के पहले से ही शुरू हो जाता है।
निर्मोही बताते हैं कि इन दिनों रात के समय खेतों का नजारा किसी उत्सव से कम नहीं है। यह बात अलग है कि बारिश ने कुछ हिस्सों के किसानों के उत्साह पर ब्रेक लगा दिया है, फिर भी किसान फाग और चौकड़ियां गाकर अपने उत्साह को बनाए हुए हैं। उन्हें उम्मीद है कि यह बारिश उनके लिए मुसीबत नहीं, बल्कि खुशियांे भरी साबित होगी।
फाग और चौकड़ियों के गायन में पूरी तरह देसी वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है। ढोलक, नगड़िया, मंजीरा, हारमोनियम और बांसुरी के स्वर के बीच छोड़ी गई तान माहौल को रोमांचकारी बना देती है। वहीं नगड़िया (नगाड़ा) की थाप पर राई नृत्य करती बेड़नी उत्साह को कई गुना कर देती है।
बुंदेलखंड में हर पर्व उत्साह व उमंग के साथ मनाया जाता है, मगर होली पर्व एक ऐसा त्योहार है, जिसका खुमार कई दिनों तक छाया रहता है। यही कारण है कि होलिका दहन के पहले से ही यहां की फिजा में होली की उमंग नजर आने लगी है।