चेन्नई/कोलकाता, 2 मार्च (आईएएनएस)। बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एवं बंगाल क्रिकेट संघ (सीएबी) के अध्यक्ष डालमिया सोमवार को निर्विरोध बीसीसीआई के अध्यक्ष चुन लिए गए। डालमिया का चयन बीसीसीआई की 85वीं वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में निर्विरोध हुआ।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन को लगातार चौथे कार्यकाल के लिए बोर्ड अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से रोकने में अहम भूमिका निभाने वाले बिहार क्रिकेट संघ के सचिव आदित्य वर्मा ने सोमवार को डालमिया के बीसीसीआई का अध्यक्ष चुने जाने पर खुशी व्यक्त की।
इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के छठे संस्करण में हुए कथित स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के खिलाफ याचिका दायर करने वाले बिहार क्रिकेट संघ के सचिव आदित्य वर्मा ने सोमवार को कहा कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष पद से एन. श्रीनिवासन को हटाने की उनकी मुहिम आखिरकार सफल हुई।
वर्मा ने आईएएनएस से कहा, “आखिरकार मेरा कार्य पूरा हो गया। मैंने पहले ही कहा थी कि अगर बीसीसीआई को बचाना है तो सबसे पहले श्रीनिवासन को इससे दूर करना होगा। यही हुआ और इससे मैं बेहद खुश हूं। मेरी लंबी लड़ाई का फल मिल गया।”
गौरतलब है कि आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी मामले में श्रीनिवासन को सर्वोच्च न्यायालय तक खिंच लाने में वर्मा ने बड़ी भूमिका निभाई।
डालमिया के अलावा हरियाणा क्रिकेट संघ के अध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी नए कोषाध्यक्ष और हिमाचल प्रदेश के अनुराग ठाकुर बोर्ड के नए सचिव चुने गए।
बीसीसीआई के नियमों के मुताबिक इस बार पूर्व क्षेत्र के संबद्ध सदस्यों द्वारा अध्यक्ष नामांकित करने की बारी थी और बंगाल क्रिकेट संघ (सीएबी) के अध्यक्ष तथा अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के पूर्व अध्यक्ष डालमिया को पूर्व क्षेत्र के सभी संबद्ध सदस्यों का समर्थन एवं अनुमोदन प्राप्त था।
डालमिया हालांकि बोर्ड के निर्वासित अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार के दो प्रमुख गुटों से निष्पक्ष प्रत्याशी थे। माना जा रहा है कि डालमिया को इन दोनों गुटों का समर्थन भी प्राप्त था।
इससे पहले डालमिया पूरे पांच वर्ष तक बीसीसीआई को अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवा दे चुके हैं तथा उनका कार्यकाल 2004 में समाप्त हुआ था। डालमिया ने 1983 में कोषाध्यक्ष के रूप में बीसीसीआई में प्रवेश किया। उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष भारतीय टीम विश्व कप जीती थी। बाद में वह इसके सचिव बने और 1997 में तीन वर्ष के लिए अध्यक्ष चुने गए।
डालमिया इसके बाद 2001 में एक बार फिर पूर्णकालिक अध्यक्ष चुने गए और 2004 तक कार्यकाल समाप्त होने तक पद पर बने रहे।
डालमिया ने इसके बाद भी अगले एक वर्ष तक बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे अपने विश्वासपात्र रणबीर सिंह महेंद्र के जरिए बीसीसीआई पर अपनी पकड़ बनाए रखी।
डालमिया और उनके गुट को हालांकि 2005 में पवार गुट के हाथों सारे पद गंवाने पड़े। न सिर्फ पवार बहुमत से अध्यक्ष चुने गए बल्कि बीसीसीआई के अन्य लगभग सभी पदों पर उनके विश्वासपात्र भी चुन लिए गए।
डालमिया के खिलाफ एक पुलिस जांच के कारण उन्हें दिसंबर 2006 में बीसीसीआई से बर्खास्त कर दिया गया, बल्कि सीएबी अध्यक्ष पद से भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। न्यायालय ने हालांकि 2007 के मध्य में डालमिया को दोषमुक्त कर दिया और 2008 में वह तत्कालीन अध्यक्ष प्रसून मुखर्जी को हराकर दोबारा सीएबी के अध्यक्ष बने।
सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में श्रीनिवासन को निर्वासित कर डालमिया को एक बार फिर बीसीसीआई का अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने के लिए कहा और श्रीनिवासन पर हितों के टकराव के कारण बोर्ड में किसी भी पद का चुनाव लड़ने से रोक लगाने के बाद डालमिया प्रबल दावेदार के रूप में उभरे।