नई दिल्ली, 27 फरवरी (आईएएनएस)। रवींद्र जैन एक ऐसी शख्सियत का नाम है जिसमें गीत, संगीत और गायन तीनों कलाएं एकसाथ मुखर होती हैं। उनकी रचनाएं भारतीय संगीत जगत की यादगार रचनाएं हैं। वह मानते हैं कि संगीत के लिए धैर्य और साधना की जरूरत होती है।
नई दिल्ली, 27 फरवरी (आईएएनएस)। रवींद्र जैन एक ऐसी शख्सियत का नाम है जिसमें गीत, संगीत और गायन तीनों कलाएं एकसाथ मुखर होती हैं। उनकी रचनाएं भारतीय संगीत जगत की यादगार रचनाएं हैं। वह मानते हैं कि संगीत के लिए धैर्य और साधना की जरूरत होती है।
रवींद्र जैन संगीत में शार्टकट तरीके इस्तेमाल करने के पक्षधर कभी नहीं रहे, उनका मानना है कि वास्तविक प्रसिद्धि धैर्य और साधना से ही मिल सकती है।
एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा भी था, “शार्टकट से सिर्फ कुछ समय के लिए प्रसिद्धि मिलती है। संगीत साधक को अपने आप पर भरोसा होना चाहिए और उसे धैर्य रखना चाहिए। पूरी लगन से की गई साधना कलाकार की आगे बढ़ने में मदद करती है।”
उनका जन्म 28 फरवरी, 1944 को अलीगढ़ में संस्कृत के प्रकांड पंडित और आयुर्वेद विज्ञानी इंद्रमणि जैन की संतान के रूप में हुआ था। उन्होंने 70 के दशक में बॉलीवुड संगीतकार के रूप में अपना करियर शुरू किया और ‘चोर मचाए शोर’ (1974), ‘गीत गाता चल’ (1975), ‘चितचोर’ (1976), ‘अखियों के झरोखों से’ (1978) जैसी हिंदी फिल्मों में संगीत दिया। उनका संगीत काफी लोकप्रिय हुआ।
हिंदी सिनेमा जगत को रवींद ने ‘अखियों के झरोखों से’, ‘कौन दिशा में लेके’, ‘सजना है मुझे सजना के लिए’, ‘घुंघरू की तरह’, ‘हुस्न पहाड़ों का’, ‘अनार दाना’, ‘देर न हो जाए’, ‘मैं हूं खुशरंग हिना’, ‘सुन साहिबा सुन’ जैसे अनगिनत मशहूर गाने दिए हैं, जो अपने दौर में काफी लोकप्रिय हुए।
चार साल की छोटी सी उम्र से ही अपनी संगीत यात्रा शुरू करने वाले रवींद्र के खाते में आज छोटे और बड़े परदे की कई उपलब्धियां हैं, लेकिन यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि रवींद्र जैन को देश के पांच रेडियो स्टेशनों में ऑडिशन के दौरान नकार दिया गया था। यह अलग बात है कि संगीत के क्षेत्र में पहचान मिलने के बाद इन्हीं रेडियो स्टेशनों से उन्हें प्रस्तुति के न्यौते आए थे।
रवींद्र को इस साल देश के चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्मश्री के लिए चुना गया है।
करियर की शुरुआत में ही 1976 में आई फिल्म ‘चितचोर’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। इसके बाद 1978 में फिल्म ‘अखियों के झरोखों से’ के लिए भी सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन और फिल्म के शीर्षक गीत ‘अखियों के झरोखों से’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
वर्ष 1985 में फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ में संगीत देने के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक और 1991 में फिल्म ‘हिना’ के गीत ‘मैं हूं खुशरंग हिना’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
अपनी दुनिया, अपनी धुन में मगन रहने वाले रवींद्र ने एक बार कहा था कि वह संगीत के सुरों को अलग-अलग लोगों को करीब लाने का जरिया मानते हैं और अपने गीतों, अपनी रचनाओं से पीढ़ियों, सरहदों और जुबानों के फासले कम करना चाहते हैं।
एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, “मैंने संगीत के क्षेत्र में जो ज्ञान कमाया है, उसे नई पीढ़ी को बांटना चाहता हूं। मैं ऐसा करके पीढ़ियों के फासले कम करना चाहता हूं।”