नई दिल्ली, 23 फरवरी (आईएएनएस)। हिंदी सिनेमा का एक दौर ऐसा था, जब फिल्मी गानों में धुन किसी भी संगीतकार की हो, पर बोल समीर के ही होते थे। नब्बे के दशक में आईं हिंदी फिल्मों के सुपरहिट गाने ज्यादातर समीर के ही लिखे हुए हैं। उनके गीत ऐसे हैं जो हर किसी का मन छू लेते हैं।
नई दिल्ली, 23 फरवरी (आईएएनएस)। हिंदी सिनेमा का एक दौर ऐसा था, जब फिल्मी गानों में धुन किसी भी संगीतकार की हो, पर बोल समीर के ही होते थे। नब्बे के दशक में आईं हिंदी फिल्मों के सुपरहिट गाने ज्यादातर समीर के ही लिखे हुए हैं। उनके गीत ऐसे हैं जो हर किसी का मन छू लेते हैं।
समीर ने ‘दिल’, ‘आशिकी’, ‘दीवाना’, ‘हम हैं राही प्यार के’, ‘बेटा’, ‘साजन’, ‘सड़क’, ‘जुर्म’, ‘बोल राधा बोल’, ‘दीवाना’, ‘आंखें’, ‘शोला और शबनम’, ‘कुली नंबर 1’, ‘हीरो नंबर 1’, ‘बीवी नंबर 1’, ‘दिल है कि मानता नहीं’ जैसी अनगिनत फिल्मों में अपने गीतों से लोगों को अपना दीवाना बना लिया था।
समीर हिंदी सिनेमा जगत के श्रेष्ठ और सक्रिय सृजनात्मक गीतकार माने जाते हैं। उनका जन्म प्रतिष्ठित गीतकार अनजान (लालजी पांडे) की संतान के रूप में 24 फरवरी 1958 को बनारस के निकट ओदार गांव में हुआ।
फिल्म ‘राजा हिन्दुस्तानी’, ‘फिजा’, ‘धड़कन’, ‘कुछ कुछ होता है’, ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘देवदास’, ‘तेरे नाम’, ‘धूम’, ‘सांवरिया’, ‘कृष’, ‘हाउसफुल 2′, राउडी राठौड़’, ‘दबंग-2’ के सुपरहिट गाने समीर ने ही लिखे हैं।
समीर अपने करियर में 5,500 से अधिक गाने लिख चुके हैं। वह अनु मलिक , नदीम-श्रवण से लेकर आनंद-मिलिंद, हिमेश रेशमिया और दिलीप सेन, समीर सेन जैसे संगीतकारों के चहेते गीतकार रहे हैं।
हाल ही में अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि उन्हें पुराने साथी बहुत याद आते हैं। जब वह कायमयाबी के शिखर पर थे, तब संगीतकार नदीम -श्रवण की जोड़ी ने ही उनके गीतों को अपने कर्णप्रिय धुनों से लोकप्रियता दिलाई थी। उन्हें जिन तीन गानों के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिले उनका संगीत भी नदीम-श्रवण ने दिया था।
समीर ने हिंदी के अलावा भोजपुरी और मराठी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे हैं। लेकिन एक कामयाब गीतकार के रूप में पहचान बनाने की राह बैंक अधिकारी के पेशे को छोड़कर बॉलीवुड में करियर बनाने आए समीर के लिए इतनी भी आसान नहीं थी।
शुरुआत में उन्हें ‘बेखबर’, ‘इंसाफ कौन करेगा’, ‘जवाब हम देंगे’, ‘दो कैदी’, ‘रखवाला’, ‘महासंग्राम’, ‘बाप नंबरी बेटा दस नंबरी’ जैसी कई बड़े बजट की फिल्मों के लिए गीत लिखने का मौका तो मिला, लेकिन इन गीतों को ज्यादा पहचान नहीं मिली।
लगातार संघर्ष करने के बाद आखिरकार 1990 में आई फिल्म ‘आशिकी’ में उनके गीतों ‘सांसों की जरूरत है जैसे’, ‘मैं दुनिया भूला दूंगा’ और ‘नजर के सामने जिगर के पास’ को लोकप्रियता और पहचान मिली। इसके बाद समीर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
समीर को 1991 में फिल्म ‘आशिकी’ के गाने ‘नजर के सामने’, 1993 में फिल्म ‘दीवाना’ के गाने ‘तेरी उम्मीद तेरा इंतजार’ और 1994 में फिल्म ‘हम राही प्यार के’ के गाने ‘घूंघट की आड़’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
समीर ने एक बार साक्षात्कार में कहा था कि वह अपने पिताजी को हमेशा अपने साथ महसूस करते हैं। आज वह जो भी हैं, उनकी ही बदौलत हैं।
समीर को आइफा और स्क्रीन अवार्ड भी दिए गए हैं। उत्तरप्रदेश सरकार ने उन्हें यश भारती सम्मान से विभूषित किया है।