दिल्ली में प्रांतीय चुनाव के नतीजे नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी पार्टी और दूसरी पार्टियों के लिए गंभीर चेतावनी है. वे दिखाते हैं कि लोग जीवन परिस्थितियों में बेहतरी चाहते हैं, आर्थिक विकास चाहते हैं, धार्मिक विभाजन नहीं.
दिल्ली के चुनाव में मतदाता तीन बातों से प्रभावित हुए हैं. उन्होंने इस बात को गंभीरता से लिया है कि मोदी सरकार ने अपने वादों को पूरा करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए हैं. न तो काला धन वापस लाने पर गंभीर कदम उठाए गए हैं और न ही देश के अंदर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए. महंगाई पर लगाम लगाने पर भी पिछले महीनों में कोई भी प्रगति नहीं हुई है. चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह से बीजेपी के कई नेताओं के अलावा खुद प्रधानमंत्री ने अरविंद केजरीवाल पर हमले किए वह लोकतांत्रिक मर्यादा को तोड़ती दिखी. बंगाल में शारदा कांड में जिस तरह से ममता बनर्जी के निकट सहयोगियों के निशाना बनाया जा रहा है उससे यह आभास पैदा हुआ कि बीजेपी दूसरी पार्टियों को तोड़कर आगे बढ़ना चाहती है. लोगों ने विकास और रोजगार के लिए बीजेपी को सत्ता दी थी लेकिन पिछले महीनों में जिस तरह से बीजेपी के सहयोगी संगठनों ने सांप्रादायिक सौहार्द को तोड़ने की कोशिश की है, उसने लोगों को निराश किया है.
केजरीवाल को भगोड़ा और अनार्किस्ट कहे जाने के बावजूद दिल्ली की जनता ने उनकी पार्टी को उम्मीदों के साथ समर्थन दिया है. इसमें कोई शक नहीं कि पूरे भारत में राजनीतिक परिवर्तन की उम्मीद लगाए हुए एक वर्ग केजरीवाल से निराश था. अब उन्हें भारत की आम राजनीति में बदलाव लाने का एक और मौका मिला है. उनकी और उनके सहयोगियों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि इस मौके को न गवाएं. दूसरी पार्टियों को भी दिल्ली के चुनाव से सबक लेने की जरूरत है. विकास की प्रक्रिया में लोग भागीदारी चाहते हैं. इसके लिए पार्टियों के अंदर लोकतंत्र और वित्तीय पारदर्शिता सबसे जरूरी है. साथ ही सभी पार्टियों को आर्थिक विकास और उसमें आम लोगों की हिस्सेदारी का माहौल विकसित करना होगा.
दिल्ली के चुनाव बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं. सबसे पहले उन्हें हिंदुत्ववादी संगठनों पर लगाम कसनी होगी. वे न सिर्फ भारत में लोगों को नर्वस कर रहे हैं बल्कि विदेशों में निवेशकों के मन में भी शंका पैदा कर रहे हैं. भारत यात्रा के अंत में और वापस लौट कर अमेरिका में राष्ट्रपति ओबामा का भारत में धार्मिक आजादी की बात करना यूं नहीं है. उनका हस्तक्षेप विदेशी निवेशकों की चिंता का प्रदर्शन है. दिल्ली के मतदाताओं ने बीजेपी और कांग्रेस का सफाया कर दिया है. लोकतंत्र के सही ढंग से चलने के लिए विपक्षी पार्टियां जरूरी होती हैं. बीजेपी को भी सत्ता के दंभ से बाहर निकल कर दूसरी पार्टियों का आदर करना सीखना होगा ताकि लोकतांत्रिक परंपराएं मजबूत हो सकें. और प्रधानमंत्री मोदी को दूसरी पार्टियों और राजनीतिक ताकतों के साथ मिलकर विकास की रणनीति विकसित करनी होगी जिस पर आम सहमति हो.
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