रायपुर, 8 फरवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के नवागढ़ विकासखंड में हाफ नदी के तट पर बसे छोटे से गांव बाघुल के सात किसान भाइयों ने गांव की पहचान ही बदल दी है। पहले छोटे से गांव के रूप में जाना जाने वाला बाघुल अब नवागढ़ सहित आसपास के क्षेत्र में मटर की फसल का ब्रांड बन गया है।
रायपुर, 8 फरवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के नवागढ़ विकासखंड में हाफ नदी के तट पर बसे छोटे से गांव बाघुल के सात किसान भाइयों ने गांव की पहचान ही बदल दी है। पहले छोटे से गांव के रूप में जाना जाने वाला बाघुल अब नवागढ़ सहित आसपास के क्षेत्र में मटर की फसल का ब्रांड बन गया है।
गांव के इस विकास यात्रा में न सरकार ने कोई सहयोग दिया और न ही विभाग ने कोई सलाह दी। अपनी मेहनत के दम पर इन किसानों ने बाघुल को मटर के बड़े बाजार के रूप में विकसित कर दिया। ये किसान उन लोगों के लिए आदर्श हैं जो खेती को घाटे का कारोबार मानते हैं। आज पूरे प्रदेश में इस कृषक परिवार की चर्चा हो रही है।
कृषक राजाराम ने बताया कि 15 साल पहले मात्र दो एकड़ खेत से किसानी की शुरुआत की थी और अब 15 एकड़ में खेती करके गांव की पहचान बना रहे हैं। कृषकों ने ब्लॉक के किसानों को नकदी फसल लेने की सलाह दी है।
बताया गया है कि ग्राम बाघुल के किसान राजाराम साहू, रज्जू साहू, नंदराम, अनुज, मनोज, कलीराम संतराम साहू के पास 15 एकड़ से भी कम खेत है। लेकिन इन्हें नकदी खेती बाजार का अच्छा ज्ञान है।
इस क्षेत्र में ज्यादातर किसान धान, सोयाबीन, अरहर चना की फसल लेते हैं। लेकिन इन किसानों को यह रास नहीं आया। ये किसान जून-जुलाई में कम बारिश में विपुल उत्पादन के लिए मूंगफली की खेती करते हैं। मूंगफली लेने के बाद इसके एक हिस्से में मटर तो दूसरे हिस्से में गांठगोभी (नवलगोल) अन्य सब्जी लगाते हैं। गर्मी के दिनों में वे इसमें टमाटर की खेती भी करते हैं।
सालभर नकदी फसलों की खेती करने वाले इन किसानों के पास अब बात तक करने का समय नहीं है। अक्सर देखा जाता है कि 20 एकड़ खेत वाले किसान ट्रैक्टर की किस्त नहीं चुका पाते, लेकिन इन किसानों के पास तीन-तीन ट्रैक्टर है और वे चौथा ट्रैक्टर इसलिए नहीं खरीद रहे हैं, क्योंकि उनके पास उसे रखने के लिए जगह नहीं है।
गांव में हो रही मटर की खेती के बारे में राजाराम साहू ने बताया कि प्रति एकड़ एक लाख से अधिक का कारोबार गांठगोभी से 50 हजार रुपये का कारोबार हो रहा है। गांठगोभी की उपज 50 से 60 क्विंटल प्रति एकड़ हो रही है।
उन्होंने कहा, “बाजार की शुरुआत में दोनों का भाव ठीक मिलता है। बाद में धूप तेज होने पर लोकल बाड़ियों का टमाटर आना जब बंद हो जाता है, तब हमारा टमाटर आता है।”
उन्होंने बताया कि मूंगफली में प्रति एकड़ 40 हजार रुपये का फायदा होता है। वहीं टमाटर से 80 हजार रुपये का लाभ मिल रहा है।
राजाराम ने बताया कि हाफ नदी के तट की मिट्टी खेती के लिए वरदान है। यहां के किसान हर फसल की भरपूर पैदावार लेते हैं। यहां लगभग 98 फीसदी किसान सीमांत हैं। पांच से सात एकड़ जमीन वाले किसान इतने संपन्न हैं कि वे जमीन खरीदने के लिए तैयार बैठे हैं, लेकिन यहां पर जमीन बिकती नहीं है। एक हजार की आबादी वाले गांव में 15 ट्रैक्टर हैं।
नवागढ़ प्रखंड में शिवनाथ नदी के किनारे बसे ग्राम केशला, तरपोंगी, मगरघटा में टमाटर की बंपर खेती हो रही है। यहां के टमाटरों की डिमांड भाटापारा, बिलासपुर में भी रहती है। ग्राम मोहतरा (खंडसरा) के लगभग सौ किसान टमाटर की ही खेती करते हैं। यहां से नवागढ़, बेमेतरा, मुंगेली, दाढ़ी सहित स्थानीय बाजारों में टमाटर की आपूर्ति की जाती है। टमाटर की खेती से यहां के किसान संपन्न हो गए हैं।
इस गांव में तीस से अधिक ट्रैक्टर हैं। दाढ़ी के पास ग्राम उमरिया, चिल्फी दमईडीह के किसान सेमी, गोभी, भाटा मिर्च की खेती कर क्षेत्रवासियों को सब्जी उपलब्ध करा रहे हैं।
एक समय था, जब यहां के किसानों के समक्ष हर समय आर्थिक परेशानी होती रही है, पर जब से इन गांवों के किसानों ने नगद फसल लेना शुरू किया है, तब से किसानों की आर्थिक स्थिति में लगातार सुधार होता जा रहा है। आज न सिर्फ जिले में, बल्कि सूबे में बाघुल गांव की अपनी एक अलग ही पहचान बन गई है।