नई दिल्ली: अपने करिअर के अंतिम कामकाजी दिन वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने को हिंदुओं को पूजा के लिए सौंपने के एक महीने से भी कम समय के बाद सेवानिवृत्त न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश को लखनऊ में एक सरकारी विश्वविद्यालय का लोकपाल नियुक्त किया गया है.
विश्वेश 31 जनवरी को वाराणसी जिला न्यायाधीश के रूप में सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे.
विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने द वायर को बताया कि 27 फरवरी को, डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय – सरकार द्वारा संचालित विश्वविद्यालय, जिसके अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं – ने विश्वेश को तीन साल के कार्यकाल के लिए अपना लोकपाल नियुक्त किया.
विश्वविद्यालय लोकपाल को छात्रों की शिकायतों का निपटारा करने का काम सौंपा जाता है.
विश्वविद्यालय के सहायक रजिस्ट्रार बृजेंद्र सिंह ने पुष्टि की कि विश्वेश को तीन साल के लिए लोकपाल नियुक्त किया गया है. सिंह ने कहा, लोकपाल का काम ‘छात्रों की बेहतरी के लिए उनके बीच संघर्ष को सुलझाना’ है.
विश्वविद्यालय के प्रवक्ता यशवंत विरोदयने कहा कि विश्वेश को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी हालिया दिशानिर्देशों के अनुसार नियुक्त किया गया है, जिनमें प्रत्येक विश्वविद्यालय द्वारा छात्रों की शिकायतों के निवारण के लिए एक लोकपाल नियुक्त करने के आदेश दिए गए हैं.
जब पूछा गया कि विश्वेश को किस आधार पर चुना गया, तो विरोदय ने कहा कि यूजीसी दिशानिर्देशों में कहा गया है कि लोकपाल एक सेवानिवृत्त कुलपति, सेवानिवृत्त प्रोफेसर या एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश होना चाहिए.
विरोदय ने यूजीसी दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए ‘पहली प्राथमिकता किसी न्यायिक व्यक्ति को दिए जाने’ की बात कही.
विरोदय ने आगे कहा कि शिकायतों और विवादों के रोजमर्रा के मामलों का निपटारा आमतौर पर प्रॉक्टर स्तर पर किया जाता है, लेकिन कुछ मामलों में ‘विशेषज्ञ’ की आवश्यकता होती है.
विश्वेश विश्वविद्यालय के पहले लोकपाल होंगे. हालांकि, वह उत्तर प्रदेश में विवादास्पद मंदिर-मस्जिद विवादों से जुड़े ऐसे पहले न्यायाधीश नहीं होंगे, जो सेवानिवृत्ति के बाद सरकार द्वारा वित्त पोषित पद ग्रहण करेंगे.
इससे पहले अप्रैल 2021 में सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव को योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में उप लोकायुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था. यह नियुक्ति उनके द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी करने के सात महीने से भी कम समय बाद हुई थी.
सेवानिवृत्ति से पहले अपने आखिरी कार्य दिवस पर यादव ने बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित एक अन्य मामले पर भी काम किया था.
विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश के तौर पर यादव ने 30 सितंबर 2020 को, 6 दिसंबर 1992 के आपराधिक मामले के लगभग 28 साल बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में वरिष्ठ भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और अन्य को विश्वसनीय साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था.
वहीं, जिला न्यायाधीश के रूप में विश्वेश ने 31 जनवरी को हिंदुओं को मुगलकालीन ज्ञानवापी मस्जिद के एक सीलबंद तहखाने के अंदर पूजा करने की अनुमति दी थी.
ज्ञानवापी मस्जिद के देखभालकर्ताओं (केयरटेकर) ने इस आदेश को अवैध और अनुचित बताया था. साथ ही उन्होंने वाराणसी प्रशासन द्वारा कुछ ही घंटों के भीतर इसके त्वरित अमल को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. हालांकि, हाईकोर्ट ने मस्जिद के तहखाने में हिंदू पूजा पर रोक नहीं लगाई और 26 फरवरी को स्थल पर पूजा जारी रखने के पक्ष में फैसला सुनाया.
अदालत ने मस्जिद प्रबंधन समिति की आपत्तियों और दलीलों को खारिज कर दिया.
हाईकोर्ट में मामले पर बहस करते समय मस्जिद के देखभालकर्ताओं ने विश्वेश द्वारा अपनी सेवा के अंतिम दिन ऐसा आदेश देने के औचित्य और वैधता पर सवाल उठाए थे.
प्रबंधन समिति अंजुमन इंतजामिया ने तर्क दिया कि विश्वेश के 17 जनवरी के आदेश, जिसमें उन्होंने डीएम को तहखाने के रिसीवर के रूप में नियुक्त किया था, को 31 जनवरी को उनके अंतिम कार्य दिवस पर संशोधित किया गया था, ताकि हिंदुओं को प्रार्थना के लिए तहखाने तक पहुंच प्रदान की जा सके.
मस्जिद समिति ने कहा कि उनके द्वारा अपने अंतिम कार्य दिवस पर ऐसा संशोधन नहीं किया जा सकता था. हालांकि, जस्टिस अग्रवाल ने फैसला सुनाया कि विश्वेश के आदेश में कोई अवैधता नहीं थी और यह उनकी छवि को खराब करने का प्रयास है.
सेवानिवृत्त होने के कुछ दिनों बाद एक समाचार चैनल से बात करते हुए विश्वेश ने कहा कि उन्होंने कानून के अनुसार और स्थापित कानूनी सिद्धांतों और नियमों का पालन करने के बाद आदेश जारी किया था.
जब टाइम्स नाउ नवभारत के रिपोर्टर ने विश्वेश से पूछा कि मस्जिद पक्ष ने इसे महज संयोग नहीं माना कि उन्होंने अपने आखिरी कार्य दिवस पर ऐसा आदेश दिया, तो विश्वेश ने कहा कि उनके जैसा न्यायाधीश केवल स्थापित न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार काम करता है.
विश्वेश ने कहा, ‘यह आदेश कानून के दायरे में और अदालत की प्रक्रिया के तहत था.’ बता दें कि उन्होंने ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण करने का भी आदेश दिया था.
हरिद्वार में जन्मे विश्वेश ने अगस्त 2021 में वाराणसी जिला न्यायाधीश का पद संभाला था.
लखनऊ के बाहरी इलाके में स्थित डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय की स्थापना राज्य सरकार के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग द्वारा 29 अगस्त 2008 के एक अध्यादेश के माध्यम से की गई थी. उस समय मायावती की बहुजन समाज पार्टी सत्ता में थी.
बाद में अध्यादेश को एक अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया था.
विश्वविद्यालय खुद को ‘अपनी तरह का ऐसा पहला विश्वविद्यालय बताता है, जो पूरी तरह से बाधा मुक्त वातावरण में विशेष तौर पर सक्षम छात्रों को सुलभ और गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्रदान करता है.’