नई दिल्ली-भारतीय पहलवान बजरंग पूनिया ने भारतीय कुश्ती संघ के नए प्रमुख संजय सिंह के विरोध में अपना पद्म श्री पुरस्कार लौटा दिया है। बजरंग पुनिया शुक्रवार शाम अवॉर्ड लौटाने प्रधानमंत्री आवास पर गए थे, लेकिन अंदर जाने की परमिशन नहीं मिली तो उन्होंने अवॉर्ड वहीं फुटपाथ पर रख दिया।
इससे थोड़ी देर पहले उन्होंने पीएम मोदी के नाम एक खुला पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने अवार्ड वापिस करने की बात कही थी। पत्र में बजरंग ने खुद को असम्मानित पहलवान बताते हुए कहा कि महिला पहलवानों के अपमान के बाद वे ऐसी सम्मानित जिंदगी नहीं जी पाएंगे, इसलिए अपना सम्मान लौटा रहे हैं। अब वह इस सम्मान के बोझ तले नहीं जी सकते। बजरंग पूनिया को 12 मार्च 2019 को पद्मश्री पुरस्कार मिला था।
बजरंग पूनिया ने प्रधानमंत्री को संबोधित पत्र में लिखा है कि आपकी देश सेवा की इस भारी व्यस्तता के बीच आपका ध्यान हमारी कुश्ती पर दिलवाना चाहता हूं। आपको पता होगा कि इसी साल जनवरी महीने में देश की महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ पर काबिज बृजभूषण सिंह पर सेक्शुअल हैरेसमेंट के गंभीर आरोप लगाए थे। जब उन महिला पहलवानों ने अपना आंदोलन शुरू किया तो मैं भी उसमें शामिल हो गया था। आंदोलित पहलवान जनवरी में अपने घर लौट गए, जब उन्हें सरकार ने ठोस कार्रवाई की बात कही।
बजरंग आगे लिखते हैं कि 3 महीने बीत जाने के बाद भी जब बृजभूषण पर एफआईआर तक नहीं की, तब हम पहलवानों ने अप्रैल महीने में दोबारा सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया, ताकि दिल्ली पुलिस कम से कम बृजभूषण पर एफआईआर दर्ज करे। लेकिन फिर भी बात नहीं बनी तो हमें कोर्ट में जाकर FIR दर्ज करवानी पड़ी।
पुनिया ने आगे लिखा कि जनवरी में शिकायतकर्ता महिला पहलवानों की गिनती 19 थी, जो अप्रैल तक आते-आते 7 रह गई थी। यानी इन 3 महीनों में अपनी ताकत के दम पर बृजभूषण ने 12 महिला पहलवानों को अपने न्याय की लड़ाई में पीछे हटा दिया था। आंदोलन 40 दिन चला। इन 40 दिनों में एक महिला पहलवान और पीछे हट गईं। हम सब पर बहुत दबाव आ रहा था। हमारे प्रदर्शन स्थल को तहस-नहस कर दिया गया और हमें दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया गया और हमारे प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी।
उन्होंने लिखा कि हमने अपने मेडल गंगा में बहाने की सोची। जब हम वहां गए तो हमारे कोच साहिबान और किसानों ने हमें ऐसा नहीं करने दिया। उसी समय आपके एक जिम्मेदार मंत्री का फोन आया और हमें कहा गया कि हम वापस आ जाएं, हमारे साथ न्याय होगा। इसी बीच हमारे गृहमंत्री जी से भी हमारी मुलाकात हुई। जिसमें उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वे महिला पहलवानों के लिए न्याय में उनका साथ देंगे और कुश्ती फेडरेशन से बृजभूषण, उसके परिवार और उसके गुर्गों को बाहर करेंगे। हमने उनकी बात मानकर सड़कों से अपना आंदोलन समाप्त कर दिया।उसने स्टेटमेंट दी कि दबदबा है और दबदबा रहेगा। महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोपी सरेआम दोबारा कुश्ती का प्रबंधन करने वाली इकाई पर अपना दबदबा होने का दावा कर रहा था।
पुनिया ने लिखा है कि इसी मानसिक दबाव में आकर ओलिंपिक पदक विजेता एकमात्र महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से संन्यास ले लिया। हम सभी की रात रोते हुए निकली। समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं, क्या करें और कैसे जियें। इतना मान-सम्मान दिया सरकार ने, लोगों ने, क्या इसी सम्मान के बोझ तले दबकर घुटता रहूं। साल 2019 में मुूझे पद्मश्री से नवाजा गया। खेल रत्न और अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। जब यह सम्मान मिले तो मैं बहुत खुश हुआ। लगा था कि जीवन सफल हो गया लेकिन आज उससे कहीं ज्यादा दुखी हूं और ये सम्मान मुझे कचोट रहे हैं। कारण सिर्फ एक ही है, जिस कुश्ती के लिए ये सम्मान मिले, उसमें हमारी साथी महिला पहलवानों को अपनी सुरक्षा के लिए कुश्ती तक छोड़नी पड़ रही है।
पुनिया आखिर में लिखते हैं कि हम सम्मानित पहलवान कुछ नहीं कर सके। महिला पहलवानों को अपमानित किए जाने के बाद मैं सम्मानित बनकर अपनी जिंदगी नहीं जी पाऊंगा। ऐसी जिंदगी कचोटेगी ताउम्र मुझे। इसलिए ये सम्मान मैं आपको लौटा रहा हूं। जब किसी कार्यक्रम में जाते थे तो मंच संचालक हमें पद्मश्री, खेल रत्न और अर्जुन अवॉर्डी पहलवान बताकर हमारा परिचय कराता था तो लोग बड़े चाव से तालियां पीटते थे। अब कोई ऐसे बुलाएगा तो मुझे घिन आएगी क्योंकि इतने सम्मान होने के बावजूद एक सम्मानित जीवन, जो हर महिला पहलवान जीना चाहती है, उससे उन्हें वंचित कर दिया गया। मुझे इश्वर में पूरा विश्वास है। उनके घर देर है अंधेर नहीं। अन्याय पर एक दिन न्याय की जरूर जीत होगी।