भोपाल:मप्र में भाजपा क्या कोई अनजान चेहरे हो मुख्यमंत्री बना सकती है ? यह सवाल अब राजनीति के जानकार उठाने लगे हैं,उनका कहना है ऐसा पहले भी हुआ है और अभी भी संभावना बढ़ रही है कि कोई नया मुख्यमंत्री आये.चाहे वो उत्तराखंड हो या फिर हरियाणा. ऐसे चेहरे को आख़िरी समय में आगे किया गया जिसके बारे में किसी को कोई अंदाज़ा ही नहीं था.
मध्य प्रदेश में वर्ष 2005 में जब बाबूलाल गौड़ को मुख्यमंत्री का पद छोड़ने को कहा गया था उस समय शिवराज सिंह चौहान का नाम रेस में कहीं भी नहीं था. वो विदिशा से सांसद थे. लेकिन आख़िरी समय में उनका नाम सामने आ गया.
सवाल उठता है कि मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री आख़िर कौन होगा ? इसको लेकर ‘सस्पेंस’ अब भी बरक़रार है. जबकि चुनावी नतीजे 3 दिसंबर को ही आ गए थे.लेकिंन मुख्यमंत्री का नाम अभी तक नहीं आया.
भाजपा ने आज ही तीनों जीते राज्यों में पर्यवेक्षकों की नियुक्तियां की हैं ,संभावना है रविवार तक नाम सामने आ जाएगा,बात करें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तो वे दिल्ली जा आलाकमान से बात करने का ना कह कर मप्र में ही अपने मिशन में लगे हुए हैं,इन चुनावों के पूर्व भी शिवराज सिंह को कई दफे हटाने के प्रयास हुए थे लेकिन केंद्र असफल रहा था.
बगैर मुख्यमंत्री के चेहरे के भाजपा ने यह चुनाव जीता वहीँ वह आरोपों के घेरे में भी आ गयी है,चुनाव के पूर्व सभी सर्वे में स्पष्ट था की भाजपा के विरोध में माहौल है लेकिन बम्पर जीत से जहाँ भाजपा प्रसन्न है वहीँ जनता उसकी जीत पर प्रश्चिन्ह भी लगा रही है.
पर्यवेक्षकों का दल विधायकों से भी चर्चा करेगा और फिर अपनी रिपोर्ट आला नेताओं को सौंपेगा.
कई नामों की चर्चा हो रही है. लेकिन पार्टी के आलाकमान ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. भोपाल से लेकर दिल्ली तक बैठकों का सिलसिला जारी है.
मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल नेता अपने स्तर से ख़ूब ‘लॉबिंग’ भी कर रहे हैं. लेकिन अभी तक पार्टी का शीर्ष नेतृत्व मध्य प्रदेश को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है.