नई दिल्ली: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) द्वारा हाल ही में जारी किए गए दिशानिर्देशों को स्थगित रखने का निर्देश देने का आग्रह किया, जो मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस छात्रों के वार्षिक प्रवेश को सीमित करता है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टालिन ने कहा कि यह राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है और तमिलनाडु जैसे राज्यों को दंडित करता है, जिन्होंने अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए दशकों तक निवेश किया है.
उन्होंने कहा, ‘सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों में हमारे कुशल चिकित्सा पेशेवर न केवल तमिलनाडु के लोगों बल्कि अन्य राज्यों के साथ-साथ अन्य देशों की भी सफलतापूर्वक सेवा करने में सक्षम हैं. इससे गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की भारी मांग पैदा हुई है और भविष्य में इसे पूरा करने के लिए नए संस्थान हमारे लिए नितांत आवश्यक हैं.’
एनएमसी के अनुसार, 2023-24 शैक्षणिक वर्ष के बाद नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की अनुमति केवल 50, 100 और 150 सीटों की विशिष्ट संख्या में वार्षिक प्रवेश क्षमता के लिए जारी की जाएगी. एनएमसी अधिसूचना में कहा गया था, ‘बशर्ते कि मेडिकल कॉलेज उस राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में 10 लाख की आबादी के लिए 100 एमबीबीएस सीटों के अनुपात का पालन करेगा.’
एनएमसी के अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड द्वारा 16 अगस्त को भारत के राजपत्र में दिशानिर्देश प्रकाशित किए गए थे, जिनका शीर्षक ‘नए मेडिकल संस्थानों की स्थापना के तहत स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए दिशानिर्देश, नए मेडिकल पाठ्यक्रमों की शुरुआत’.
स्टालिन ने तर्क दिया कि यह एक प्रतिगामी परिदृश्य है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘यह सभी राज्य सरकारों के अधिकारों पर सीधा अतिक्रमण है और उन राज्यों को दंडित किया गया है जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश किया है.’
उन्होंने कहा, ‘तमिलनाडु जैसे प्रगतिशील राज्य कई दशकों से अपने स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क को मजबूत कर रहे हैं. इससे डॉक्टरों और नर्सों की पर्याप्त उपलब्धता हुई है, जो विभिन्न स्वास्थ्य संकेतकों के संदर्भ में उनके बेहतर प्रदर्शन में प्रकट हुआ है. चेन्नई भारत की स्वास्थ्य सेवा राजधानी (हेल्थकेयर केपिटल) के रूप में उभरा है.’
उन्होंने कहा कि इस तरह की रोक के लिए प्रस्तावित मानदंड, नियमों की तुलना में राज्य स्तर पर उच्च डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात, भी उचित नहीं है. उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि जब राज्य स्तर पर डॉक्टरों की पर्याप्त उपलब्धता है, तब भी ऐसे जिले हैं जहां उनकी उपलब्धता लगातार एक मुद्दा बनी हुई है. ऐसे पिछड़े इलाकों में नए मेडिकल कॉलेज खोलकर ही इस समस्या से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है.’
स्टालिन ने यह भी बताया कि तमिलनाडु का उच्च डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात और डॉक्टरों की उच्च उपलब्धता मुख्य रूप से राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र द्वारा किए गए निवेश के कारण हासिल की गई है, न कि केंद्र सरकार द्वारा.
उन्होंने कहा, ‘हम लगातार आग्रह कर रहे हैं कि केंद्र सरकार को और अधिक योगदान देने की आवश्यकता है लेकिन एम्स मदुरै जैसी परियोजनाएं अभी तक शुरू नहीं हुई हैं. इस स्थिति को देखते हुए, नए संस्थानों पर रोक भविष्य में तमिलनाडु को स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्र सरकार से नए निवेश प्राप्त करने की किसी भी संभावना को पूरी तरह से खत्म कर देगी.’
स्टालिन ने 2002 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि कार्यकारी निर्देश संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के मौलिक अधिकार पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते हैं और इसलिए तर्क दिया कि एनएमसी अधिसूचना कानूनी रूप से असमर्थनीय हो सकती है.
उपरोक्त सभी मुद्दों पर विचार करते हुए, स्टालिन ने मोदी से अनुरोध किया कि वह ‘केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को इस अधिसूचना को स्थगित रखने और इस मुद्दे के समाधान के लिए कदम उठाने पर राज्य सरकारों के साथ परामर्श प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दें.’