पिछले 4 माह में अमित शाह ने पांचवी बार मध्य प्रदेश का दौरा किया है। अमित शाह प्रदेश के टिकट बंटवारे से लेकर, चुनाव प्रचार पर नजर और विपक्ष को जवाब देने की हर रणनीति खुद तय कर रहे हैं। अमित शाह के पूरे दखल के बाद मध्य प्रदेश के नेताओं में अजीब सी बैचेनी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश संगठन महामंत्री के साथ प्रदेश के प्रभारी और चुनाव प्रभारी को भी इस बात की भनक नहीं लग रही है कि अमित शाह क्या निर्णय लेंगे?
भाजपा पार्टी ने परिवारवाद, उम्रदराज नेताओं को घर बिठाने, दूसरे दल से आए नेताओं की तुलना में अपने कार्यकर्ताओं को महत्व देने, आरोपियों से परहेज करने जैसे अपने सिद्धांतों की और से फिलहाल नजर फेर ली है, मध्य प्रदेश में फिर से सरकार बनाने के लिए वह बड़े से बड़ा समझौता करने को तैयार है।39 सीटों की घोषणा के पहले पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक भी नहीं हुई,सीधे केंद्र से सीटें घोषित कर दी गयीं,यहाँ तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को भी नहीं पता था की सीटों की घोषणा कर दी गयी है,जब टेलीविजन पर ब्रेकिंग चलने लगी तब भाजपा अध्यक्ष ने पत्रकारों से पूछा क्या सीटों की घोषणा हो गयी क्या,उस वक्त वे किसी कार्य से मप्र भाजपा मुख्यालय आये हुए थे.
जिन 39 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए गए हैं, उनमें से 13 अनुसूचित जनजाति (एसटी), आठ अनुसूचित जाति (एससी) और 18 सामान्य सीटें हैं। ये सभी पूर्व में हारी हुई सीटें हैं जहां भाजपा जीत सुनिश्चित करना चाहती है। गौरतलब है कि बीजेपी को 2018 के चुनाव में आरक्षित सीटों पर ही सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। पार्टी एसटी वर्ग की 47 में से मात्र 16 सीटें ही जीत पाई थी, जबकि उससे पहले 2013 में पार्टी के पास एक निर्दलीय समर्थक के साथ 32 सीटें थी। एससी वर्ग की 35 में से भी भाजपा के पास 28 सीटें थी, लेकिन 2018 के चुनाव में मात्र 18 सीटें ही मिल पाई थीं।
मध्य प्रदेश भाजपा ने पिछले चुनाव में हारी हुई जिन 39 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, उसमें 12 नए चेहरे हैं। जबकि पिछले चुनावों में हारे हुए 50% चेहरों पर दांव लगाया हैं। 14 टिकट उन नेताओं को मिले हैं, जो पिछली बार हारे थे। 39 सीटों में 5 सामान्य और 13 पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को मिली है। पहली लिस्ट के 39 कैंडिडेट्स में केवल 4 महिलाएं हैं। चंदेरी से उम्र की तय सीमा को नजरअंदाज कर 75 साल के जगन्नाथ सिंह रघुवंशी को भी मौका मिला है। चाचौड़ा से राजस्थान में पली बढ़ी और दिल्ली में इनकम टैक्स कमिश्नर की पत्नी प्रियंका मीणा को टिकट दिया है। प्रियंका मीणा के खिलाफ पूर्व विधायक ममता मीणा ने मैदान में उतरने के संकेत दिए है। जिला जज का पद छोड़ कर राजनीति के मैदान में उतरे प्रकाश उईके को पांढुर्णा से टिकट दिया गया है। आदिवासियों के बीच काम करने वाले प्रकाश उईके संघ से भी जुड़े हैं। इसी तरह जबलपुर मेडिकल कॉलेज में सहायक अधीक्षक रहे और संघ में भी सक्रिय डॉ. विजय आनंद मरावी ने सुबह नौकरी छोड़ी और शाम को बिछिया से टिकट मिल गया। टिकट पहले मिला और पार्टी की सदस्यता बाद में ग्रहण की। जिला पंचायत सदस्य सुशीला सिंह के बेटे और 2015 में जिला पंचायत सदस्य चुने गए धीरेन्द्र सिह को भाजपा ने बड़वारा से टिकट दिया है। वीरेंद्र सिंह लम्बरदार को बंडा सीट से मैदान में उतारा है। सागर के बंडा विधानसभा से प्रत्याशी बनाए गए वीरेंद्र सिंह लम्बरदार के पिता शिवराज सिंह लोधी 1977 में बंडा और 1985 में बड़ा मलहरा से विधायक और 2009 में दमोह से सांसद रह चुके हैं। इसी तरह लांजी से टिकट पाने वाले राजकुमार कर्राहे पिछले दो विधानसभा चुनाव से दावेदार थे। पार्टी ने नजरअंदाज किया तो आप पार्टी में चले गए। पार्टी ने घर वापसी कराकर टिकट दिया है। अर्थात इस बार मध्य प्रदेश में भाजपा नेतृत्व टिकट देते समय न उम्र की सीमा देख रहा है और न परिवारवाद या विद्रोही नेता की बात कर रही है। उसे जहां जो ताकतवर लग रहा है उसे टिकट दे रही है।
रविवार को मध्यप्रदेश कार्यसमिति की बैठक में हिस्सा लेने ग्वालियर पहुंचे अमित शाह ने पार्टी के कोर ग्रुप के नेताओं के साथ बैठक की। इस बैठक में केजरीवाल की बढ़ती लोकप्रियता को सस्ता नशा बताकर उससे बचने की सलाह दी तो मोदी सरकार की योजनाओं का प्रचार करने के लिए भी कहा। अमित शाह ने प्रदेश के नेताओं से कहा है कि इस बार सभी उम्मीदवार पहले घोषित कर दिए जाएंगे। साथ में शाह ने संकेत दिए कि कई दिग्गज नेताओं के टिकट कट भी सकते हैं। ऐसे में कोई भी टिकट की गारंटी मानकर न चलें। शाह ने साफ कहा कि हर सीट पर 10 से ज्यादा दावेदार हैं लेकिन टिकट किसी एक को ही मिलेगा। शाह ने कहा कि बारात में दूल्हा कैसा भी हो उसकी बुराई नहीं करते उसी तरह टिकट जिसे मिला है उसकी बुराई न करके, उसको जिताने के लिए जुटना है। शाह ने ग्वालियर चंबल संभाग पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा है क्योंकि पिछले चुनाव में ग्वालियर चंबल संभाग में भाजपा के बुरे प्रदर्शन के कारण भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी। इसलिए इस बार मध्य प्रदेश में अपनी जीत फिर से सुनिश्चित करने और जमीनी हकीकत पता करने के लिए चार राज्यों उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र से चुने हुए 230 विधायकों को 230 विधानसभा सीटों की जमीनी हकीकत पता करने की जिम्मेदारी दी गयी है। पर्यवेक्षक बनाए गए दूसरे राज्यों के विधायक पता लगाएंगे कि जिस विधानसभा की जिम्मेदारी उन्हें मिली है, वहां के बीजेपी विधायक को लेकर वोटर, पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं का फीडबैक क्या है? इसके अलावा जिन सीटों पर विधायक नहीं हैं वहां कौन सा उम्मीदवार उतारा जा सकता है। यह सलाह भी दूसरे राज्यों से भेजे गए विधायक देंगे।
पिछले 4 माह में अमित शाह ने पांचवी बार मध्य प्रदेश का दौरा किया है। अमित शाह प्रदेश के टिकट बंटवारे से लेकर, चुनाव प्रचार पर नजर और विपक्ष को जवाब देने की हर रणनीति खुद तय कर रहे हैं। अमित शाह के पूरे दखल के बाद मध्य प्रदेश के नेताओं में अजीब सी बैचेनी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश संगठन महामंत्री के साथ प्रदेश के प्रभारी और चुनाव प्रभारी को भी इस बात की भनक नहीं लग रही है कि अमित शाह क्या निर्णय लेंगे?