ओडिशा के बालासोर में हुए तीन ट्रेनों के हादसे से सरकार अपनी जिम्मेवारी से बच रही है,इतने भीषण हादसे के बाद रेलमंत्री का इस्तीफ़ा तय था लेकिन सरकार अपने आप को कमजोर नहीं बताना चाहती इसके चलते वह चुन रही है और सीबीआई के मत्थे जांच सौंप दी है,जानिये क्या लिखा विभिन्न अखबारों ने अपने सम्पादकीय में …
अंग्रेजी के प्रमुख दैनिक अख़बार, ‘द हिन्दू’ ने अपने संपादकीय में लिखा, ‘तीन ट्रेनों का टकराव उन चुनौतियों का दुखद स्मरण है जिनका कि भारत रेल सेवाओं के आधुनिकीकरण और विस्तार में सामना कर रहा है.संपादकीय में आगे लिखा गया कि इस तरह की दुर्घटना हाल ही में मैसूर में देखी गई थी, तब भी कुछ ऐसे ही ट्रेनों का टकराव हुआ था.
अंग्रेजी के एक और प्रमुख अख़बार, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने भी करीब-करीब इसी तर्ज पर अपना संपादकीय लिखा. एक्सप्रेस ने सवाल उठाया है कि जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाए? क्या यह हादसा बड़े बदलाव का संकेत है और सबसे महत्वपूर्ण इस हादसे से सीख क्या होगी?.
‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने 5 जून के संपादकीय में सवाल उठाया है कि सीएजी और संसदीय स्थायी समिति की ढेरों चेतावनियों के बावजूद भी रेलवे ने सुरक्षा को संज्ञान में क्यों नहीं लिया? अगर रेलवे के अंदरूनी मानकों और प्रोटोकॉल को देखा जाए तो इन दोनों ने ही बार-बार समस्याओं को उजागर किया है कि रेलवे के सुरक्षा मानकों में कमी है.
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने भी अपने संपादकीय में सीएजी रिपोर्ट का जिक्र किया है. टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा, “2016-17 और 2020-21 के बीच 75 फीसदी हादसों का कारण ट्रेन का पटरी उतरना था. वहीं, पांंच फीसदी हादसों की वजह गाड़ियों का आपस में टकराव था.”
‘द टेलीग्राफ’ में भी रेलवे के हादसे पर संपादकीय प्रकाशित हुआ है. संपादकीय की शुरुआती पंक्तियां कहती हैं, “भारत की रेल पटरियों पर खून है.” अख़बार लिखता है कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार, दो जून को हुई इस त्रासदी के जिम्मेदार लोगों को चिन्हित कर लिया गया है, अगर ऐसा है तो फिर क्यों रेलवे बोर्ड ने इस हादसे की सीबाई जांच के आदेश दिए हैं?