नई दिल्ली, 30 जनवरी (आईएएनएस)। कांग्रेस में चौथी पीढ़ी की कार्यकर्ता जयंती नटराजन ने शुक्रवार को पार्टी से नाता तोड़ लिया। पूर्व की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में वह पर्यावरण मंत्री थीं और लंबे समय तक पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता रह चुकी हैं।
नई दिल्ली, 30 जनवरी (आईएएनएस)। कांग्रेस में चौथी पीढ़ी की कार्यकर्ता जयंती नटराजन ने शुक्रवार को पार्टी से नाता तोड़ लिया। पूर्व की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में वह पर्यावरण मंत्री थीं और लंबे समय तक पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता रह चुकी हैं।
सोनिया की निजी मंडली का हिस्सा के तौर पर देखी जाने वाली नटराजन पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं द्वारा लिए जाने वाले कई महत्वपूर्ण फैसलों को सार्वजनिक किए जाने से पूर्व परिचित रहती थीं।
तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. बक्तवत्सलम की पोती नटराजन कांग्रेस से गहरे रूप से जुड़े रहने वाले कद्दावर नेताओं के परिवार से आती हैं। नटराजन के परिवार के लोग 1885 में शुरुआत के समय से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए थे।
उनके पड़दादा संविधानसभा के सदस्य रहे।
1954 में पैदा हुई नटराजन की स्कूली शिक्षा चेन्नई में सैक्रेड हार्ट मैट्रिकुलेशन हाइयर सेकेंड्री स्कूल में हुई और आजीविका के लिए उन्होंने कानून की पढ़ाई की।
चेन्नई में वकालत करने वाली नटराजन ने 1980 में युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में कदम रखा। बाद में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी का उनपर ध्यान गया और उन्होंने 1986 में उन्हें पहली बार राज्यसभा में लाया।
30 वर्षो की विस्तृत समयावधि में उच्च सदन के लिए वे तीन बार 1992, 1997 और 2008 में पुनर्निवाचित हुई।
पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव से मतभेद रहने के कारण नटराजन 1996 में थोड़े समय के लिए कांग्रेस से दूर हुई थी। उस समय उन्होंने कांग्रेस में कद्दावर नेता रह चुके जी. के. मूपनार द्वारा खड़ी की गई तमिल मनीला कांग्रेस से नाता जोड़ा था।
तमिल मनीला कांग्रेस के द्रविड़ मुनेत्र कझगम के साथ गठबंधन करने और केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार में शामिल होने पर उन्होंने 1997 में आई. के. गुजराल के मंत्रिपरिषद में कोयला, नागरिक उड्डयन और संसदीय कार्यमंत्रालय के राज्यमंत्री की हैसियत से प्रभार संभाला था।
2002 में मूपनार के निधन के बाद तमिल मनीला कांग्रेस का कांग्रेस में विलय हो गया और नटराजन को पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया।
संप्रग-दो में उन्होंने जयराम रमेश की जगह ली और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पद संभाला। दिसंबर 2013 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।