नई दिल्ली- दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि गैर-भारतीय नागरिकों को सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों से सूचना मांगने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है और यह मानना स्वाभाविक रूप से विरोधाभासी होगा कि यह अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए उपलब्ध है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने कहा कि गैर-भारतीय नागरिकों को सूचना के प्रकटीकरण पर एक पूर्ण रोक लगाना अपने आप में आरटीआई अधिनियम के उद्देश्य के विपरीत होगा, और यह कानून में नहीं हो सकता है.
अदालत ने पाया कि आरटीआई अधिनियम सूचना, जो किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित हो सकती है, तक पहुंच पर जोर देता है.
अदालत ने आगे कहा कि गैर-भारतीय नागरिकों, जिन्हें भारतीय संविधान सीमित अधिकार देता है, तक सूचना की पहुंच को रोकना भी संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत होगा.
जस्टिस प्रतिभा सिंह ने एक हालिया आदेश में कहा, ‘यह देखते हुए कि आरटीआई अधिनियम जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित जानकारी को भी एक महत्वपूर्ण और विशिष्ट स्थिति प्रदान करता है, इसलिए यह मानना स्वाभाविक रूप से विरोधाभासी होगा कि केवल नागरिक ही सूचना के अधिकार के हकदार हैं. जीवन या स्वतंत्रता विदेशियों, अप्रवासी भारतीयों, ओसीआई कार्डधारकों और ऐसे अन्य व्यक्तियों समेत गैर-नागरिकों से भी संबंधित हो सकती है.’
जस्टिस सिंह ने जोर देकर कहा, ‘गैर-भारतीय नागरिकों से संबंधित मुद्दों से निपटने वाले ऐसे सार्वजनिक प्राधिकरणों के मामले में, यदि उनके व्यवहार में कोई निष्क्रियता या पारदर्शिता की कमी है, तो यह नहीं माना जा सकता है कि ऐसे गैर-नागरिक को आरटीआई अधिनियम के तहत उक्त जानकारी मांगने से अक्षम कर दिया जाएगा.’
वर्तमान मामले में एक तिब्बती नागरिक ने केंद्रीय तिब्बती स्कूल प्रशासन से कुछ जानकारी मांगी थी. उन्होंने यह भी दावा किया था कि वे नागरिकता अधिनियम के तहत एक भारतीय नागरिक के रूप में व्यवहार के हकदार हैं.
मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) ने आरटीआई आवेदक के पक्ष में फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाया था. याचिकाकर्ता संस्था के जनसूचना अधिकारी (पीआईओ) थे, जिन्होंने इस आधार पर सूचना देने से इनकार कर दिया था कि वह एक तिब्बती नागरिक हैं और इस प्रकार आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों के तहत जानकारी पाने के हकदार नहीं हैं.
अदालत ने आदेश में कहा कि आरटीआई अधिनियम में ‘नागरिक’ और ‘व्यक्ति’ शब्दों का इस्तेमाल किया गया है और सीआईसी का यह मानना सही था कि अगर प्राधिकरण सूचना का खुलासा करने के लिए उपयुक्त समझे तो कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है.
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘इस अदालत की राय है कि सूचना का अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों के लिए उपलब्ध होना चाहिए, जो मांगी गई जानकारी के प्रकार और भारत के संविधान के तहत ऐसे वर्ग के व्यक्तियों को गारंटीकृत अधिकारों की मान्यता पर निर्भर करता है.’
आदेश में कहा गया है कि पीआईओ का यह मानने का तरीका कि एक गैर-नागरिक आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना का हकदार नहीं होगा, को दुर्भावनापूर्ण नहीं ठहराया जा सकता और सीआईसी द्वारा लगाए गए 25,000 रुपये के जुर्माने को खारिज किया जाता है.