हम सभी जानते हैं कि किसी भी यज्ञ अथवा हवन के दौरान मंत्र के बाद हवन सामग्री को अग्नि में समर्पित करते समय स्वाहा शब्द का उच्चारण किया जाता है। आचार्य कहते हैं कि ‘स्वाहा’ शब्द कभी मन में नहीं बोलना चाहिए बल्कि इसकी ध्वनि होनी चाहिए। सवाल यह है कि स्वाहा शब्द का क्या अर्थ होता है और यज्ञ अथवा हवन के दौरान स्वाहा शब्द का उच्चारण अनिवार्य क्यों है।
स्वाहा शब्द का अर्थ
संस्कृत भाषा के शब्द ‘स्वाहा’ का कोई सटीक और निर्विवाद अर्थ नहीं मिलता। कुछ लोगों का मानना है कि स्वाहा शब्द का अर्थ होता है सही रीति से पहुंचाना परंतु इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि दक्ष प्रजापति की एक पुत्री का नाम स्वाहा था। उनका विवाह अग्निदेव से हुआ था। अर्थात स्वाहा शब्द का कोई अर्थ नहीं है बल्कि स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री का नाम है।
यज्ञ-हवन के दौरान स्वाहा शब्द का उच्चारण अनिवार्य क्यों है
यज्ञ अथवा हवन के दौरान हवन सामग्री अग्नि में अर्पित करते समय स्वाहा शब्द का उच्चारण अनिवार्य होता है। आचार्य का कहना है कि यदि स्वाहा शब्द का उच्चारण नहीं किया तो आहुति व्यर्थ चली जाएगी। दरअसल, यज्ञ के दौरान प्रत्येक आहुति किसी विशेष देवता के लिए समर्पित होती है। आचार्य मंत्र के द्वारा देवता का आवाहन करते हैं। यजमान, स्वाहा उच्चारण करते हुए सामग्री हवन कुंड में अग्नि को समर्पित करते हैं। इसी प्रक्रिया को आहुति कहते हैं।
शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि, इस प्रकार यजमान हवन सामग्री, अग्नि देव की पत्नी स्वाहा को सौंप देते हैं और स्वाहा द्वारा उनके देवता तक वह सामग्री पहुंचा दी जाती है। यदि स्वाहा का आह्वान नहीं करेंगे तो आहुति अग्नि में जलकर नष्ट हो जाएगी, देवता तक नहीं जाएगी।