नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बुधवार को सरकार से आग्रह किया कि सोशल मीडिया कंपनियों को पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) द्वारा फर्जी माने जाने वाले समाचारों को हटाने के लिए निर्देश देने वाले आईटी नियमों में संशोधन के मसौदे को हटाया जाए.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘गिल्ड मंत्रालय से इस नए संशोधन को हटाने और डिजिटल मीडिया के लिए नियामक ढांचे पर प्रेस निकायों, मीडिया संगठनों और अन्य हितधारकों के साथ सार्थक परामर्श शुरू करने का आग्रह करता है ताकि प्रेस की स्वतंत्रता को कोई नुकसान न हो.’
गिल्ड ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियम के मसौदा संशोधन पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए एक बयान में कहा, ‘फर्जी समाचारों के निर्धारण का जिम्मा केवल सरकार के हाथों में नहीं हो सकता है… गिल्ड को लगता है कि यह प्रेस की सेंसरशिप के समान है.’
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने मंगलवार को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के मसौदे में संशोधन जारी किया, जिसे पहले सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया गया था.
इसमें कहा गया है कि प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट-चेकिंग इकाई द्वारा ‘फर्जी (फेक)’ मानी गई किसी भी खबर को सोशल मीडिया मंचों समेत सभी मंचों से हटाना पड़ेगा.
ऐसी सामग्री जिसे ‘फैक्ट-चेकिंग के लिए सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य एजेंसी’ या ‘केंद्र के किसी भी कार्य के संबंध में’ भ्रामक के रूप में चिह्नित किया गया है, उसे ऑनलाइन मंचों (Intermediaries) पर अनुमति नहीं दी जाएगी.
गिल्ड ने इसका विरोध करते हुए अपने बयान में कहा है कि तथ्यात्मक रूप से गलत पाए जाने वाली सामग्री से निपटने के लिए पहले से ही कई कानून मौजूद हैं.
गिल्ड ने कहा, ‘यह नई प्रक्रिया मूल रूप से स्वतंत्र प्रेस को दबाने में इस्तेमाल हो सकती है और पीआईबी या ‘तथ्यों की जांच के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य एजेंसी’ को उन ऑनलाइन मध्यस्थों को सामग्री को हटाने के लिए मजबूर कर सकती है जिससे सरकार को समस्या हो सकती है.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, गिल्ड ने कहा कि यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि गिल्ड ने मार्च 2021 में पहली बार पेश किए गए आईटी नियमों को लेकर भी गहरी चिंता जताई थी, जिसमें दावा किया गया था कि वे केंद्र सरकार को बिना किसी न्यायिक निरीक्षण के देश में कहीं भी प्रकाशित समाचारों को ब्लॉक करने, हटाने या संशोधित करने का अधिकार देते हैं.
गिल्ड ने कहा, ‘इन नियमों के विभिन्न प्रावधानों के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर डिजिटल समाचार मीडिया और मीडिया पर अनुचित प्रतिबंध लगाने की क्षमता है.’
गौरतलब है कि 2019 में स्थापित पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई, जो सरकार और इसकी योजनाओं से संबंधित खबरों को सत्यापित करती है, पर वास्तविक तथ्यों पर ध्यान दिए बिना सरकारी मुखपत्र के रूप में कार्य करने का आरोप लगता रहा है.
मई 2020 में न्यूज़लॉन्ड्री ने ऐसे कई उदाहरण बताए थे, जहां पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई वास्तव में तथ्यों के पक्ष में नहीं थी, बल्कि सरकारी लाइन पर चल रही थी.
फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा का भी कहना है कि समस्या यह भी है कि पीआईबी किन खबरों का फैक्ट-चेक करने का फैसला करता है और किनको नजरअंदाज करता है.
उन्होंने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, ‘मुद्दा यह है कि पीआईबी फैक्ट चेक इकाई क्या सत्यापित करने का फैसला करती है. यदि आप पीआईबी द्वारा किए गए फैक्ट-चेक देखते हैं तो कुछ अपवादों को छोड़कर वे सरकार की छवि को नुकसान पहुंचने से बचाने की कोशिश करते हैं. वे उन चुनिंदा खबरों का फैक्ट-चेक करते हैं जो स्वभाव से राजनीतिक हैं और सत्तारूढ़ पार्टी के लिए आलोचनात्मक हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यह कहना कि केवल पीआईबी फैक्ट-चेकिंग इकाई ही यह तय करेगी कि क्या सच है और क्या झूठ है, बताता है कि केवल सरकार के खिलाफ गलत सूचना को हटाया जाएगा. अन्य सभी गलत सूचनाओं को ऑनलाइन बने रहने की अनुमति होगी.’