जर्मन सरकार ने देश में बेरोजगारों को मिलने वाले लाभ को पूरी तरह से बदलने की कवायद शुरू कर दी है. करीब दो दशक पहले शुरू हुई इस व्यवस्था का सिर्फ नाम ही नहीं और भी बहुत कुछ बदलने जा रहा है.
‘हार्त्स फोर’ नाम की यह व्यवस्था 18 साल पहले एसपीडी पार्टी के नेता और जर्मनी के चांसलर रहे गेरहार्ड श्रोएडर के शासनकाल में शुरू हुई थी. इसे आज भी श्रोएडर की विरासत के रूप में देखा जाता है. इसके तहत उन लोगों को सरकार से पैसे मिलते हैं जिनके पास नौकरी नहीं होती. हालांकि इस पैसे के साथ जो शर्तें जुड़ी हैं उन्हें लेकर इस योजना की काफी आलोचना भी होती रही है.
नयी व्यवस्था को ‘बुर्गरगेल्ड’ नाम दिया गया है जिसका मतलब है नागरिकों का पैसा. अगर संसद से इसे मंजूरी मिल जाती है, जिसकी काफी संभावना है तो अगले साल से यह नयी व्यवस्था लागू हो जायेगी.
जर्मनी में बेरोजगारों को मिलने वाली सुविधा दो श्रेणियों में बंटी हुई है. पहली श्रेणी में वो लोग आते हैं जो नौकरी ढूंढ रहे हैं. नौकरी करने वालों की नौकरी छूट जाने के बाद लोग इसके हकदार बनते हैं. आमतौर पर कर्मचारियों की तनख्वाह से एक हिस्सा काट कर इसके लिये जमा किया जाता है और उसी आधार पर कर्मचारी नौकरी छूटने पर इसका लाभ हासिल करते हैं. इसमें अधिकतम दो साल तक पैसा मिलता है जो नौकरी के दौरान हासिल होने वाले वेतन का करीब 60 फीसदी होता है. अगर दो साल के भीतर नौकरी ना मिले तो फिर दूसरी श्रेणी के तहत लाभ मिलता है जो वास्तव में बेरोजगारी भत्ता है.
नयी व्यवस्था पूरी तरह से आर्थिक आधार पर बनायी गई है जिसका मतलब है कि बुनियादी स्तर पर मिलने वाली रकम में इजाफा होगा. अकेले रहने वालों को इसके तहत अब 502 यूरो प्रति माह मिलेंगे जो अब तक 449 यूरो मिलते थे. युवाओं के लिये यह रकम 420 यूरो प्रति माह होगी जो पहले 360 यूरो प्रतिमाह थी. 17 से 24 साल की उम्र के व्यक्ति को युवा माना जाता है. गर्भवती महिलाओं, बच्चों और परिवार वालों के लिए यह रकम अलग है और आमतौर पर उनकी ज्यादातर जरूरतों का ध्यान रखा जाता है. हालांकि फिर भी इस रकम पर गुजारा करना जर्मनी जैसे देश में बहुत आसान नहीं होती.
नयी व्यवस्था में जॉब सेंटर से सुझायी गई नौकरी नहीं स्वीकार करने पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है. हालांकि सरकार का कहना है कि नौकरी ढूंढने के लिये जॉब सेंटर में दबाव कम होगा क्योंकि अगर आप उनकी सुझायी नौकरियों को स्वीकार नहीं करते तो आप पर प्रतिबंध तुरंत नहीं लगेगा. उदाहरण के लिये अगर कोई बेरोजगार आदमी जॉब सेंटर से सुझायी गई नौकरी लेने से इनकार कर दे तो पहले छह महीने तक उस पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होगा.
आमतौर पर लोग जिस रोजगार में होते हैं वही करते रहना चाहते हैं लेकिन जॉब सेंटर अकसर उन्हें उन नौकरियों का विकल्प सुझाता है जिनकी देश और अर्थवयवस्था को जरूरत होती है. ऐसे में लोग उन नौकरियों को स्वीकार नहीं करते. मसलन कोई इंजीनियर का काम करता हो और अगर नौकरी छूटने के बाद उसे क्लर्क, सेल्समैन या मजदूर की नौकरी दी जाये तो जाहिर है कि इसमें उसकी दिलचस्पी नहीं होगी.
सरकार का कहना है कि प्रतिबंधों के इस्तेमाल के लिये नया रुख अपनाया जायेगा जिसमें ज्यादा जोर आगे की पढ़ाई और ट्रेनिंग पर हो. हालांकि सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के नेता और श्रम मंत्री हुबर्टस हाइल का कहना है, “जॉब सेंटर के साथ सहयोग दिखाने की प्रतिबद्धता जारी रहेगी. जो लोग लंबे समय तक लगातार अपॉइंटमेंट पर नहीं पहुंचेंगे उन्हें नये सिस्टम में कानूनी नतीजा झेलना पड़ेगा. हालांकि नये तंत्र की भावनाएं अविश्वास पर नहीं बल्कि बढ़ावे और सशक्तिकरण पर टिकी होगीं.”
नयी व्यवस्था में बेरोजगारों के लिये आवास का खर्च पहले दो साल के लिये पूरी तरह सरकार उठायेगी. इसके अलावा बेरोजगारी भत्ते का लाभ लेने वाले लोग 60 हजार यूरो तक की बचत अपने पास रख सकेंगे. जर्मन सरकार की कैबिनेट ने इन प्रस्तावों को संसद में चर्चा के लिये मंजूरी दे दी है. रुढ़िवादी विपक्षी दल कैबिनेट के प्रस्तावों का विरोध कर रहे हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी आलोचना में कहा कि यह, “लाभ हासिल करने की प्रवृत्ति बनायेंगे और नये रोजगार की बजाय निराशा की ओर ले जायेंगे”
सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी की इन सुधारों के लिये कई तरफ से आलोचना हो रही है. इसके खिलाफ लोगों ने सड़कों पर उतर कर भी प्रदर्शन किया है. विरोध करने वालों की दलील है कि यह बेरोजगार लोगों पर जॉब सेंटर से सुझायी गई नौकरी पाने के लिये ज्यादा दबाव बनायेगी क्योंकि प्रतिबंधों का प्रावधान लागू किया जा रहा है.