कोलंबो– श्रीलंका में हजारों प्रदर्शनकारियों की भीड़ राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग करते हुए शनिवार को मध्य कोलंबो के अति सुरक्षा वाले फोर्ट इलाके में अवरोधकों (बैरिकेड) को हटाकर उनके (राष्ट्रपति के) आधिकारिक आवास में घुस गई.
वहीं, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अपने पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया है. बीते मई महीने में महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद उन्होंने यह पद संभाला था.
ट्विटर पर इस्तीफे की घोषणा करते हुए विक्रमसिंघे ने लिखा, ‘सभी नागरिकों की सुरक्षा समेत सरकार की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए मैं पार्टी नेताओं की सर्वदलीय सरकार के लिए रास्ता बनाने की सिफारिश को स्वीकार करता हूं. इसे सुगम बनाने के लिए मैं प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दूंगा.’
इससे पहले उन्होंने इस्तीफे की पेशकश की थी. श्रीलंका के प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक बयान में इसकी जानकारी देते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अपने पद से इस्तीफे की पेशकश की है और सर्वदलीय सरकार के लिए मार्ग प्रशस्त करने को तैयार हैं.
प्रदर्शनकारी देश में गंभीर आर्थिक संकट को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.
राजपक्षे पर मार्च से ही इस्तीफा देने का दबाव बढ़ रहा है. वह अप्रैल में प्रदर्शनकारियों द्वारा उनके कार्यालय के प्रवेश द्वार पर कब्जा करने के बाद से ही राष्ट्रपति आवास को अपने आवास तथा कार्यालय के तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे.
राष्ट्रपति आवास में काम करने वाले लोगों ने बताया कि शनिवार के प्रदर्शन के मद्देनजर राष्ट्रपति राजपक्षे ने शुक्रवार को ही आवास खाली कर दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस ने समाचार एजेंसी एएफपी के हवाले से लिखा है कि राष्ट्रपति आवास में प्रदर्शनकारियों के घुसने की घटना राष्ट्रपति के अपने घर से भागने की खबरों के सामने आने के बाद हुई.
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े और पानी की बौछारें कीं तथा गोलियां चलाईं, लेकिन फिर भी प्रदर्शनकारी अवरोधकों को हटाकर राष्ट्रपति आवास में घुस गए.
इस बीच, प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने जनता के प्रदर्शन से देश में पैदा हुए संकट पर चर्चा करने के लिए शनिवार को राजनीतिक दल के नेताओं की तत्काल बैठक बुलाई.
विक्रमसिंघे के कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया है कि उन्होंने पार्टी की तत्काल बैठक बुलाई है और स्पीकर से तत्काल संसद का सत्र बुलाने का अनुरोध किया है.
प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति आवास की दीवारों पर चढ़ गए और वे अंदर ही हैं. हालांकि, उन्होंने किसी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया और न ही किसी तरह की हिंसा की है.
राष्ट्रपति आवास के अंदर की एक तस्वीर. (फोटो: रॉयटर्स)
इस बीच, प्रदर्शनों के दौरान दो पुलिस अधिकारियों समेत कम से कम 30 लोग घायल हो गए और उन्हें कोलंबो में नेशनल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है.
प्रदर्शनकारियों की गाले, कैंडी और मतारा शहरों में रेलवे प्राधिकारियों से भी झड़प हुई और उन्होंने प्राधिकारियों को कोलंबो के लिए ट्रेन चलाने पर विवश कर दिया.
इलाके में पुलिस, विशेष कार्य बल और सेना की बड़ी टुकड़ियों को तैनात किया गया है.
‘होल कंट्री टू कोलंबो’ आंदोलन के आयोजकों ने कहा कि लोग कोलंबो फोर्ट में प्रदर्शनकारियों के साथ शामिल होने के लिए उपनगरों से पैदल निकल रहे हैं.
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वे तब तक पीछे नहीं हटेंगे, जब तक गोटबाया राजपक्षे इस्तीफा नहीं दे देते हैं.
इससे पहले श्रीलंका पुलिस ने शीर्ष वकीलों के संघ, मानवाधिकार समूहों और राजनीतिक दलों के लगातार बढ़ते दबाव के बाद शनिवार को सात संभागों से कर्फ्यू हटा लिया गया था.
पुलिस के मुताबिक, पश्चिमी प्रांत में सात पुलिस संभागों में कर्फ्यू लगाया गया था, जिसमें नेगोंबो, केलानिया, नुगेगोडा, माउंट लाविनिया, उत्तरी कोलंबो, दक्षिण कोलंबो और कोलंबो सेंट्रल शामिल हैं. सयह कर्फ्यू शुक्रवार रात नौ बजे से अगली सूचना तक लागू किया गया था.
श्रीलंका के बार एसोसिएशन ने कर्फ्यू का विरोध करते हुए इसे अवैध और मौलिक अधिकारों का हनन करार दिया था.
बार एसोसिएशन ने एक बयान में कहा, ‘इस तरह का कर्फ्यू स्पष्ट रूप से अवैध है और हमारे देश के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो अपने मूल अधिकारों की रक्षा करने में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनकी सरकार की विफलता को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.’
श्रीलंका के मानवाधिकार आयोग ने कर्फ्यू को मानवाधिकारों का घोर हनन बताया है.
वहीं, कुमार संगकारा और सनथ जयसूर्या जैसे पूर्व श्रीलंकाई क्रिकेटर खुलकर प्रदर्शनकारियों के समर्थन में उतर आए हैं. संगकारा ने प्रदर्शन के दौरान का एक वीडियो ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा, ‘यह हमारे भविष्य के लिए है.’
वहीं, जयसूर्या ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, ‘मैं प्रदर्शन का हिस्सा हूं और लोगों की मांग के साथ खड़ा हूं. यह प्रदर्शन तीन महीने से चल रहा है.’
गौरतलब है कि श्रीलंका मौजूदा समय में गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के साथ राष्ट्रपति राजपक्षे के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, क्योंकि दोनों आर्थिक संकट से निपटने में असमर्थ साबित हुए हैं.
मालूम हो कि पिछले कुछ महीनों 2.2 करोड़ की आबादी वाले देश श्रीलंका में कर्ज में डूबी अर्थव्यवस्था को संभालने में नाकाम सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. 2.2 करोड़ की आबादी वाला देश 1948 में ब्रिटेन से आजादी के बाद से अभूतपूर्व आर्थिक उथल-पुथल से जूझ रहा है.
बीते मई महीने में महिंद्रा राजपक्षे को देश के बिगड़ते आर्थिक हालात के मद्देनजर हुईं हिंसक झड़पों के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
उनके इस्तीफा देने से कुछ घंटे पहले महिंदा राजपक्षे के समर्थकों द्वारा राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के कार्यालय के बाहर प्रदर्शनकारियों पर हमला करने के बाद राजधानी कोलंबो में सेना के जवानों को तैनात किया गया था. इस हमले में कम से कम 138 लोग घायल हो गए थे.
उसके बाद 73 वर्षीय रानिल विक्रमसिंघे को देश में सबसे खराब आर्थिक संकट के बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका का 26वां प्रधानमंत्री नियुक्त किया था.
इस बीच नागरिकों के विरोध प्रदर्शनों का दौर जारी रहा था और 6 मई को एक विशेष कैबिनेट बैठक में राष्ट्रपति राजपक्षे ने मध्य रात्रि से आपातकाल की घोषणा कर दी थी. यह दूसरी बार है जब श्रीलंका में लगभग एक महीने की अवधि में आपातकाल घोषित किया गया. फिलहाल आपातकाल वापस ले लिया गया है.