नई दिल्ली- हेलीकॉप्टर सेवा देने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी पवन हंस लिमिटेड की हिस्सेदारी के विनिवेश के तीन असफल प्रयासों के बाद केंद्र सरकार ने शुक्रवार को पवन हंस की बिक्री को मंजूरी दे दी.
सरकार ने स्टार9 मोबिलिटी प्रा. लिमिटेड को यह हिस्सेदारी बेच दी है.
स्टार9 मोबिलिटी एक निजी कंसोर्टियम (समूह) है, जिसमें बिग चार्टर लिमिटेड, महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और अल्मास ग्लोबल ऑपरच्युनिटी फंड एसपीसी शामिल हैं.
यह विनिवेश बीते 12 महीनों में सरकार की दूसरी बड़ी बिक्री है. इससे पहले इस साल जनवरी में सरकार ने एयर इंडियन की हिस्सेदारी टाटा ग्रुप को बेची थी.
मौजूदा समय में पवन हंस के पास 42 हेलीकॉप्टर हैं. पवन हंस में केंद्र और ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) का संयुक्त उपक्रम (जेवी) है. इसमें सरकार की 51 फीसदी और ओएनजीसी के पास 49 फीसदी हिस्सेदारी थी.
ओएनजीसी ने इससे पहले कहा था कि सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए जिसे चुनेगी, ओएनसीजी उसी बोलीकर्ता को समान कीमत और समान शर्तों पर अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए तैयार है.
बीते साल दिसंबर में सरकार को कंपनी (पवन हंस) के लिए तीन कंपनियों से सफल बोलियां मिली थीं.
वित्त मंत्रालय ने जारी बयान में कहा, ‘स्टार9 मोबिलिटी कंपनी के कंसोर्टियम 211.14 करोड़ रुपये के साथ सबसे बड़े बिडर के रूप में सामने आया. यह राशि रिजर्व कीमत से भी अधिक थी.’
बयान में कहा गया, ‘दो अन्य बोलियां क्रमशः 181.05 करोड़ रुपये और 153.15 करोड़ रुपये थे. उचित विचार-विमर्श के बाद स्टार9 मोबिलिटी की बोली को सरकार ने स्वीकार कर लिया.’
मुंबई स्थित बिग चार्टर कंपनी फ्लाईबिग एयरलाइन का संचालन करती हैं, जो उड़ान मार्गों पर संचालित है जबकि महाराजा एविएशन हेलीकॉप्टर चार्टर कंपनी है.
पवन हंस के विनिवेश के लिए इस कंसोर्टियम की बोली को वैकल्पिक तंत्र द्वारा भी मंजूरी दे दी गई है.
बता दें कि वैकल्पिक तंत्र [Alternative Mechanism] में सड़क मंत्री नितिन गडकरी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हैं.
आधिकारिक बयान में कहा गया, ‘रणनीतिक विनिवेश लेनदेन को एक खुले, प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के जरिये पूरा किया गया.’
अब केंद्र सरकार शेयर लेटर ऑफ अवॉर्ड जारी करेगी, जिसके बाद खरीद समझौते पर हस्ताक्षर कर इस लेनदेन को पूरा कर लिया जाएगा.
अक्टूबर 2016 में आर्थिक मामलों पर कैबिनेट की समिति ने पवन हंस में सरकार की पूरी हिस्सेदारी के रणनीतिक विनिवेश को मंजूरी दी थी और उसके बाद सरकार ने तीन बाद विनिवेश के प्रयास किए थे, जो सफल नहीं हो सके थे.