नई दिल्लीः मेलबर्न विश्वविद्यालय के ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टिट्यूट (एआईआई) के 13 शिक्षाविदों ने ऑस्ट्रेलिया में भारतीय उच्चायोग के हस्तक्षेप और उसके फलस्वरूप शैक्षणिक दायरे के सीमित होने का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया है.
ऑस्ट्रेलिया के दैनिक एज के मुताबिक, 29 मार्च को इन शिक्षाविदों ने एक पत्र पर हस्ताक्षर कर इसे मेलबर्न यूनिवर्सिटी के कुलपति डंकन मास्केल को भेजा था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उच्चायोग लगातार संस्थान के कामकाज और शोध में हस्तक्षेप कर रहा है.
पत्र में आरोप लगाया गया कि जो विचार भारत सरकार की छवि के अनुरूप नहीं हैं, उन्हें प्रोपेगैंडा के तहत लगातार खारिज किया जा रहा है.
बता दें कि जिन 13 शिक्षाविदों ने इस्तीफा दिया है, उन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों में काम किया है और वे अवैतनिक पदों पर रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, इसी तरह का एक पत्र यूनिवर्सिटी के उपकुलपति (अंतरराष्ट्रीय) माइकल वेस्ले को 2020 में भी भेजा गया था, जिसमें शिक्षाविदों ने चिंता जताई थी कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के द्विपक्षीय संबंधों पर एआईआई का ध्यान शिक्षाविदों के ऐसे विषयों पर था, जिनसे मोदी सरकार नाराज हो सकती है.
ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमलों की घटनाएं बढ़ने के बीच दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए 2009 में एआईआई का गठन किया गया था. ऑस्ट्रेलियाई के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रुड की सरकार ने इस संस्थान के गठन के लिए मेलबर्न यूनिवर्सिटी को 80 लाख डॉलर की ग्रांट भी दी थी.
2020 के पत्र में कहा गया कि शिक्षाविदों को उम्मीद थी कि अकादमिक स्वतंत्रता, विद्वानों की असहमति, निष्पक्षता और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को एआईआई के भविष्य में जगह मिलेगी.
पत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राजद्रोह कानून का उपयोग करना और बिना साक्ष्यों और उचित प्रक्रिया एवं जमानत के शिक्षाविदों, पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में रखने का हवाला दिया.
मोदी सरकार द्वारा कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ यूएपीए का लगातार इस्तेमाल करने की वजह से देश के भीतर और बाहर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.
2020 के पत्र में यह भी कहा गया कि संस्थान में आधिकारिक कार्यक्रमों में भारत सरकार के प्रोपेगैंडा का इस्तेमाल किया जाता और जिन कार्यक्रमों के विवादित होने की संभावना होती उनके आयोजन में अड़चनें पैदा की जाती.
इसके अलावा पत्र में संस्थान के लिए नए निदेशक की नियुक्ति का भी आह्वान किया गया, जो उन ताकतों के खिलाफ अपनी स्वंतत्रता के लिए खड़ा हो सके, जो इसकी गतिविधियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. इसके साथ ही भारत पर शोध को बढ़ावा देने का पर्याप्त ज्ञान रखते हैं.
रिपोर्ट में इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले एक शिक्षाविद (पहचान उजागर न करने की शर्त पर) के हवाले से बताया गया कि इस तरह का एक विवादित कार्यक्रम ‘कीवर्ड्स फॉर इंडियाः वॉयलेंस’ था, जिसमें भारत में मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंदू राष्ट्रवादी समूहों की कथित हिंसा पर चर्चा की गई.
इस कार्यक्रम को को शुरुआत में सार्वजनिक कार्यक्रम बताया गया लेकिन बाद में इसे निजी कार्यक्रम बताया गया.
बता दें कि बीते कुछ हफ्तों में दिल्ली के बुराड़ी में हिंदुत्व भीड़ द्वारा मुस्लिम पत्रकारों पर हमले की खबरें देशभर से सामने आईं. मुस्लिम विक्रेताओं के हिंदू मंदिरों के आसपास सामान बेचने पर रोक लगा दी गई, हलाल मीट का बहिष्कार करने का आह्वान किया गया और इस तरह की कई अन्य सांप्रदायिक घटनाएं हुईं.
मार्च में लिखे गए पत्र में अकादमिक स्वतंत्रता का गला घोंटे जाने का एक और उदाहरण दिया गया. मेलबर्न में महात्मा गांधी की प्रतिमा को खंडित करने के प्रयासों के बाद एआईआई के दो सहयोगियों ने गांधी पर हमले पर चर्चा करते हुए एक लेख तैयार किया.
हालांकि, संस्थान ने इस पर्चे को प्रकाशित करने से इनकार कर दिया जबकि इसे एक अन्य कॉलेज की पत्रिका में प्रकाशित किया गया. इन्हीं दो शोधार्थियों के पॉडकास्ट को संस्थान की वेबसाइट पर पोस्ट नहीं किया गया.