सत अष्टावत वर्ष महुँ,दस दुई उभय मिलाय।
विवेकसार विरच्यों तवै,समुझी बुध जन राय।।
नग्र उजेन अवंतिका,विष्णु चरण थल जानि।
सफराक्षत अंग सर तेहि तट कह्यों बखानि।।
महि सुत बासर लग्न तिथि,अभिजित मंगल मूल।
आत्म प्रकाश रामजस,लहे हरण त्रैशूल।।
साधु प्रसाद को फल यह अनुभव है आहि।
कहै समुझि दृढ़ कै ,गहै राम मिलेंगे ताहि।।
अघोराचार्य बाबा कीनाराम ने “विवेकसार” अघोर-अवस्था के मूल ग्रन्थ के रूप में निज अनुभूतियों आधार पर गुरु-शिष्य संवाद के रूप में लिखा है। विवेकसार के ही साक्ष्य के आधार पर यह ग्रन्थ संवत 1812 में लिखा गया है। इसका लेखन कार्य उज्जैन नगर के विष्णु-पादुका (विष्णु-चतुष्टिका) के निकट शिप्रा नदी के तट पर हुआ है। उस दिन द्वादशी तिथि,दिन मंगलवार और अभिजित नक्षत्र था। बाबा के शब्दों में यह लेखन साधु का प्रसाद है और अनुभव का फल है। जो इसको समझकर दृढ-विश्वास के साथ ग्रहण करेंगे ,उन्हें राम अवश्य मिलेंगे।
गढ़कालिका क्षेत्र में स्थित प्राचीन श्रीकृष्ण बलभद्र अब श्री विष्णु चतुष्टिका मंदिर उन लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र है, जिनके परिवार में क्लेश चल रहा हो। लोग यहां परिवार में सुख और शांति की कामना लेकर आते हैं। मान्यता है विष्णु चतुष्टिका के दर्शन से परिवार के क्लेश समाप्त होते हैं, क्योंकि इस एक प्रतिमा में परिवार के अनेक सदस्यों को समाहित किया गया है।
इस प्रतिमा की खूबी यह है कि बलुआ पत्थर पर गढ़ी चित्ताकर्षक प्रतिमा के हर अंग से अलग स्वर ध्वनि निकलती है। इसलिए यह प्रतिमा न केवल पुरातत्व विभाग में पंजीकृत है बल्कि इसकी सुरक्षा के लिए इसे तालों में जकड़े मंदिर में बंद रखा जाता है। यहां पहरेदार भी नियुक्त है। संरक्षित प्रतिमा के दर्शन बाहर से ही होते हैं। पूजन में भी प्रतिमा पर केवल फूल चढ़ाने की ही अनुमति है। कुमकुम आदि वर्जित हैं।
इस प्रतिमा के चार मुख हैं। एक में श्रीकृष्ण पद्म, चक्र लिए हैं, दूसरे में सिंह मुखाकृति में बलराम हल लिए हैं, तीसरे में प्रद्युम्न चक्र और गदा लिए हैं और चौथी में अनिरुद्ध धनुष-बाण लिए हैं। पुजारी गौरव उपाध्याय के अनुसार एक ही प्रतिमा में परिवार के सदस्य विद्यमान हैं। पारिवारिक एकता का संदेश प्रतिमा से मिलता है। यही कारण है कि लोग इसके दर्शन कर परिवार में एकजुटता और स्नेह की कामना करने आते हैं। पर्यटकों के लिए यह प्रतिमा आकर्षण का केंद्र रहती है।भगवान विष्णु के चार स्वरूपों वाली एक दुर्लभ मूर्ति 11 तालों में कैद रहती है। शिल्पशास्त्र की दृष्टि से यह अत्यंत दुर्लभ और महत्वपूर्ण है। इसे सुरक्षित रखने के लिए मंदिर के चार द्वारों पर हमेशा 11 ताले लगे रहते हैं। पुरातत्व विभाग की अनुमति के बाद ही इसके द्वार दर्शनार्थियों के लिए खोले जाते हैं।
यह मूर्ति उज्जैन के विष्णु चतुष्टिका मंदिर में है। पुरातन महत्व की मूर्ति की सुरक्षा के लिहाज से दर्शनार्थियों को जाली वाले दरवाजे से ही इसके दर्शन करना पड़ते हैं। मंदिर में प्रवेश के लिए चार द्वार हैं। तीन द्वारों में तीन-तीन और एक द्वार में दो ताले हमेशा लगे रहते हैं। मंदिर की सुरक्षा के लिए चौकीदार और रात को सुरक्षा गार्ड भी तैनात रहते हैं, ताकि मूर्ति को कोई क्षति न पहुंचा सके। विशेष अनुमति पर ही मंदिर के ताले खोले जाते हैं।मूर्ति की सबसे खास बात यह है कि प्रस्तर (पाषाण) से अलग–अलग मधुर आवाजें आती हैं। मूर्ति के हाथों और शंख आदि को धीरे से ठोकने पर इससे आवाजें निकलती हैं। मध्य प्रदेश प्राचीन स्मारक और पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1964 के अंतर्गत इसे राजकीय महत्व का घोषित किया गया है।भगवान विष्णु की 9वीं शताब्दी की यह मूर्ति पद्मासन में है। इसमें विष्णु के चार स्वरूप- वासुदेव, संकर्षण, अनिरद्घ और प्रद्युम्न हैं, इसलिए इसे विष्णु चतुष्टिका कहते हैं।
सम्पादन एवं स्थल भ्रमण : अनिल कुमार सिंह mob.no.(9425300683)
सन्दर्भ ग्रन्थ:विवेकसार, द्वारा,श्री सर्वेश्वरी समूह,अवधूत भगवान् राम कुष्ठ सेवा आश्रम,पड़ाव,वाराणसी(उप्र)