नई दिल्ली-
‘बैड बैंक’ का गठन बैंकों के बैड लोन या फंसे हुए कर्ज को अलग करने के लिए किया जा रहा है. ऐसा करने पर बैड लोन को संबंधित बैंक की बैलेंस शीट से हटा दिया जाता है और बैड बैंक उस फंसे हुए कर्ज को अपने पास ले लेता है.
दूसरे शब्दों में कहें तो बैंक सस्ते में बैंकों के बैड लोन खरीदेगा और उसे बेहतर मूल्य में बेचेगा. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी बैंक के पास 100 रुपये का बैड लोन पड़ा हुआ है, तो बैड बैंक उसे 70 रुपये में खरीदेगा और इसी चीज को किसी अन्य कंपनी को 75 रुपये में बेच देगा.
पिछले कई सालों से भारत की बैंकिंग व्यवस्था पर बैड लोन के काले बादल मंडरा रहे हैं, जिसके चलते अर्थव्यवस्था में सुस्ती छायी रहती है.
अप्रैल 2013 से मार्च 2021 के बीच आठ साल की अवधि में 10.83 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को बट्टे खाते में डाला गया है, यानी राइट ऑफ किया गया है.
बैड बैंक की उत्पत्ति 1980 के दशक में हुई थी, जब अमेरिका और स्वीडन ने शुरुआत में इसे अपनाया था. बाद में अन्य देशों की सरकारों ने भी इसे अपने यहां लागू किया, जिसके परिणाम अलग-अलग रहे हैं.
लेकिन प्रश्न यह है की बैड बैंक को पैसा कौन देगा जाहिर है वह सरकार ही देगी या जनता का पैसा लगेगा इसलिए यह भी जनता के लिए को भ्रमित करने एवं डूबे पैसे की सरकार की नाकामियों को छुपाने का महज एक प्रयास है.