हैदराबाद- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 13 कंपनियों के ऋण बकाया के कारण लगभग 2.85 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जबकि बैंक, यस बैंक और आईएल एंड एफएस जैसे संकटग्रस्त संस्थानों को उबारने का काम करते रहे हैं.
बैंकों के संघ यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) ने सोमवार को यह आरोप लगाया है.
बैंक यूनियंस के संयोजक बी. रामबाबू ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि संगठन ने बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक 2021 के विरोध में और सरकारी बैंकों के निजीकरण के केंद्र के कथित कदम का विरोध करते हुए 16 और 17 दिसंबर को पूरे देश में बैंकों की दो दिन की हड़ताल का आह्वान किया है.
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 13 निजी कंपनियों का बकाया 4,86,800 करोड़ रुपये था और इसे 1,61,820 करोड़ रुपये में निपटाया गया, जिसके परिणामस्वरूप 2,84,980 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
उन्होंने कहा, ‘यह भी एक सच्चाई कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का इस्तेमाल निजी क्षेत्र के संकटग्रस्त बैंकों जैसे ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक, बैंक ऑफ कराड आदि को राहत देने के लिए किया गया है. हाल के दिनों में, यस बैंक को सरकारी बैंक एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) ने संकट से निकाला. इसी तरह निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्त कंपनी), आईएल एंड एफएस, को सार्वजनिक क्षेत्र के एसबीआई और एलआईसी ने संकट से निकाला.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जन धन, बेरोजगार युवाओं के लिए मुद्रा, रेहड़ी-पटरी वालों के लिए स्वधन, प्रधानमंत्री आवास योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना जैसे अधिकांश सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं में भाग लेते हैं.
उन्होंने कहा कि इसलिए यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस का मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से आम लोगों और देश के पिछड़े क्षेत्रों के हितों को खतरा होगा.
बैंक यूनियंस ने कहा कि यदि सरकार संसद में बैंकों के निजीकरण के विधेयक को आगे बढ़ाती है तो बैंक कर्मचारी और अधिकारी इसके खिलाफ अनिश्चितकालीन हड़ताल सहित किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं, क्योंकि यह देश और उसके हितों के लिए हानिकारक है.
संगठन ने कहा कि हालांकि पीएसबी का परिचालन लाभ की स्थिति में है, लेकिन बैंकों के सामने एकमात्र मुद्दा विशाल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) का था, जिसमें बड़ी हिस्सेदारी बड़े कॉरपोरेट का था.
मालूम हो कि बीते एक दिसंबर से बैंक अधिकारियों के एक संघ ने सरकारी बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू किया था.
शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में पेश किए जाने वाले बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 से पीएसबी में न्यूनतम सरकारी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से घटाकर 26 प्रतिशत करने की उम्मीद है.
पिछले सत्र में संसद ने राज्य द्वारा संचालित सामान्य बीमा कंपनियों के निजीकरण की अनुमति देने के लिए एक विधेयक पारित किया था.
सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 ने एक निर्दिष्ट बीमाकर्ता में कम से कम 51 प्रतिशत इक्विटी पूंजी रखने के लिए केंद्र सरकार की आवश्यकता को हटा दिया था.
अधिनियम, जो 1972 में लागू हुआ, सामान्य बीमा व्यवसाय के विकास को सुरक्षित करके अर्थव्यवस्था की बेहतर जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय बीमा कंपनियों और अन्य मौजूदा बीमा कंपनियों के उपक्रमों के शेयरों के अधिग्रहण और हस्तांतरण के लिए प्रदान किया गया.
सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग ने निजीकरण के लिए विनिवेश पर सचिवों के कोर ग्रुप को पहले ही दो बैंकों और एक बीमा कंपनी का सुझाव दिया है.
गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल की शुरुआत में वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करते हुए 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने के लिए विनिवेश अभियान के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी.
उन्होंने कहा था, ‘वर्ष 2021-22 में आईडीबीआई बैंक के अलावा हम दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण करने का प्रस्ताव करते हैं.’
सरकार इससे पहले आईडीबीआई बैंक का निजीकरण कर चुकी है. आईडीबीआई बैंक की बहुलांश हिस्सेदारी बीमा क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम को बेच दी गई. इसके अलावा सरकार पिछले चार साल के दौरान 14 बैंकों का आपस में विलय भी कर चुकी है.
उसके बाद बीते 25 फरवरी को वित्त मंत्रालय ने निजी क्षेत्र के सभी बैंकों को कर संग्रह, पेंशन भुगतान और लघु बचत योजनाओं जैसे सरकार से जुड़े कामकाज में शामिल होने की अनुमति दे दी थी.
एक आधिकारिक बयान में कहा था कि इस कदम से ग्राहकों के लिए सुविधा बढ़ेगी, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा और ग्राहकों को मिलने वाली सेवाओं के मानकों में दक्षता बढ़ेगी.
वहीं, बैंक अधिकारियों के संगठनों ने निजी बैंकों को सरकारी कामकाज करने की अनुमति देने का विरोध किया था.