नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 मृतकों के लिए मुआवजे के वितरण को लेकर एक जांच समिति का गठन करने के लिए गुजरात सरकार को फटकार लगाई.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार ने मुआवजे के लिए मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने के लिए एक जांच समिति का गठन करने हेतु अधिसूचना जारी की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा था कि आरटी-पीसीआर टेस्ट रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाणपत्र से पता चलता है कि मुआवजा प्राप्त करने के लिए 30 दिनों के भीतर मृत्यु होना एकमात्र आवश्यकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 पीड़ितों के परिवारों को 50,000 रुपये के मुआवजे के वितरण के लिए चार अक्टूबर को दिशानिर्देशों को जारी किया था. इन दिशानिर्देशों की सिफारिश राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने की थी.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने 18 नवंबर को कहा था कि जांच समिति का गठन करना मामले में दिए गए निर्देशों को दरकिनार करने का प्रयास लग रहा है.
जस्टिस शाह ने पूछा, ‘हमने आपसे कभी भी जांच समिति का गठन करने को नहीं कहा. हम संशोधन भी स्वीकार नहीं कर सकते. जांच समिति से प्रमाणपत्र हासिल करने में एक साल का समय लगेगा. अस्पताल से जारी किए गए प्रमाणपत्र दिखाना होगा. कौन सा अस्पताल प्रमाणपत्र दे रहा है?’
अदालत ने समिति को पीड़ितों के परिवार को मुआवजा देने में देरी करने का नौकरशाही प्रयास बताया.
जस्टिस शाह ने कहा, ‘कम से कम 10,000 लोगों को यह मिलना चाहिए. क्या किसी को अभी तक यह मिला है? हम अगली बार लोकपाल के रूप में लीगल सर्विस अथॉरिटी को नियुक्त करेंगे जैसा कि हमने मुआवजे वितरण के लिए 2002 के गुजरात भूकंप के दौरान किया था.’
पीठ ने केंद्र सरकार से कोविड-19 मौतों के लिए पीड़ित परिवार को अनुग्रह राशि देने के संबंध में राज्यों से डेटा इकट्ठा करने और शिकायत निवारण समितियों का गठन करने को कहा था.
राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस अधिसूचना को मूर्खतापूर्ण तरीके से दर्ज किया गया था और इस संबंध में संशोधित प्रस्ताव पारित किया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पीड़ितों को मुआवजे के वितरण के लिए प्रक्रिया को सरल बनाने को कहा.