नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने पिछले साल दंगों के दौरान एक व्यक्ति की कथित तौर पर हत्या को सुनियोजित हमला बताते हुए वारदात के चार आरोपियों के खिलाफ हत्या, दंगा और आपराधिक साजिश के आरोप तय किए हैं.
अनवर हुसैन, कासिम, शाहरुख और खालिद अंसारी पर 25 फरवरी, 2020 को आंबेडकर कॉलेज के पास दीपक नाम के एक व्यक्ति की कथित तौर पर बेरहमी से पिटाई कर हत्या करने का आरोप है.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रक्तस्रावी आघात के कारण उनकी मौत हुई.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आवश्यक धाराओं के तहत आरोप तय किए और उन्हें उनके वकीलों की उपस्थिति में स्थानीय भाषा में समझाया, जिस पर उन्होंने (आरोपियों ने) दोषी नहीं होने का अनुरोध किया और मामले में मुकदमे का दावा किया.
न्यायाधीश ने कहा, ‘उनके लामबंदी और इरादे के तरीके से जैसा कि उनके आचरण से लगता है, उक्त गैरकानूनी जमावड़ा दंगों और मृतक दीपक की हत्या जैसे अन्य अपराधों जैसे दीपक की हत्या को अंजाम देने के उद्देश्य से किया गया था.’
उन्होंने 9 नवंबर को एक आदेश में कहा, ‘गैरकानूनी तरीके से जमा होने से पीड़ित पर सुनियोजित हमले की साजिश भी व्यापक रूप से प्रतीत होती है.’
लाइव लॉ के अनुसार, जांच के दौरान जिन सरकारी गवाहों से पूछताछ की गई, उन्होंने कहा था कि पत्थर, कुदाल, लाठी, चाकू और लोहे की छड़ें लिए लगभग 100 या 200 लोगों ने दूसरी सड़क से आने वाली भीड़ पर हमला किया.
उन्होंने यह भी कहा कि दंगों के दौरान एक व्यक्ति को भीड़ ने आरोपी व्यक्तियों सहित पकड़ा, बेरहमी से पीटा और अंत में चाकू मार दिया.
न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण गवाह सुनील कुमार थे, जो पूरी घटना के चश्मदीद गवाह थे और उन्होंने एक पूरी तस्वीर दी थी कि कैसे मृतक दीपक को आरोपी व्यक्तियों समेत हथियारबंद मुसलमानों की भीड़ द्वारा मार दिया गया था.
अदालत के आदेश के अनुसार, सुनील ने कहा था, ’25 फरवरी को कर्दमपुरी पुलिया से गैरकानूनी रूप से मुसलमानों की एक भीड़ आ रही थी और अल्लाह हो अकबर का नारा लगाते हुए पुलिया गोकुलपुर को पार करने की कोशिश कर रही थी. उक्त सशस्त्र गैरकानूनी भीड़ ने दीपक को पकड़ लिया जिसे बेरहमी से पीटा गया था.’
चश्मदीद ने बताया कि वह नाले के पीछे एक दीवार की आड़ में छिप गया और दीवार की दरार से पूरी हत्या देखी. उसने चारों आरोपी व्यक्तियों की शिनाख्त उनके नाम से की है.
अदालत ने कहा, ‘इस प्रकार आरोप के उद्देश्य के लिए अभियोजन पक्ष अदालत को संतुष्ट करने में सक्षम है कि अभियुक्त व्यक्तियों सहित उनके सामान्य उद्देश्य के अभियोजन में एक गैरकानूनी भीड़ ने दंगे किए और मृतक दीपक को घातक हथियार से मारा, जिससे उसकी मृत्यु हो गई.’
अदालत ने कहा कि एक चश्मदीद गवाह के बयान ने पूरी तस्वीर दी थी कि कैसे आरोपी व्यक्तियों की सशस्त्र मुस्लिम भीड़ ने मृतक की हत्या की थी.
अदालत ने रिपोर्ट के अनुसार, ‘उनके बयान दर्ज करने में देरी को इस तथ्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है कि वह सदमे में थे और कोविड -19 स्थिति के कारण अपने गांव गए थे. बाद में वे लौट आए और अपना बयान दिया था… ऐसा नहीं है कि जून के महीने में अचानक सुनील कुमार का बयान सामने आया है.’
अदालत ने कहा कि यह मानने के आधार हैं कि चारों आरोपियों ने भादंवि की धारा 147 (दंगा), 148 (दंगा, घातक हथियार के साथ) और धारा 302 (हत्या) के साथ ही धारा 149 (गैरकानूनी सभा का सदस्य जिसने समान उद्देश्य से अपराध करने किया हो) के तहत अपराध किया.
इसके साथ ही धारा 302 (हत्या) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत भी आरोप तय किए गए हैं.
गौरतलब है कि फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक झड़पें हुईं, संशोधित नागरिकता अधिनियम के समर्थकों और उसका विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के बाद कम से कम 53 लोग मारे गए थे जबकि 700 से अधिक घायल हो गए थे.