नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा गुजरात में विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों को फंड देने की राशि में साल 2015 से 350 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट से जानकारी सामने आई है.
कैग की 31 मार्च, 2020 को समाप्त वित्त वर्ष के लिए राज्य वित्त आडिट रिपोर्ट को मंगलवार को गुजरात विधानसभा में रखा गया. यह दो दिन के मानसून सत्र का आखिरी दिन भी था.
कैग ने कहा कि केंद्र ने ये फंड सीधे एजेंसियों को भेजे हैं और यह गुजरात सरकार के बही-खाते में दिखाई नहीं देता है. उन्होंने कहा कि यह साल 2014 के केंद्र सरकार के उस फैसले का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया था कि भारत सरकार अपनी योजनाओं के लिए राशि सीधे राज्य सरकार के खाते में भेजेगी.
केंद्र के इस फंड को राज्य सरकार के बजट के जरिये नहीं भेजा गया. कैग ने कहा कि गुजरात की एजेंसियों को सीधे पैसे भेजने की प्रक्रिया वित्त वर्ष 2019-20 तक जारी रही और इसमें करीब 350 फीसदी का उछाल आया.
जहां वित्त वर्ष 2015-16 में 2,542 करोड़ रुपये भेजे गए थे, वहीं 2019-20 तक ये राशि बढ़कर 11,659 करोड़ रुपये हो गई.
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा 2019-20 में निजी क्षेत्र की कंपनियों को सीधे 837 करोड़ रुपये का फंड दिया गया. इसी अवधि में निजी शैक्षणिक संस्थानों को 17 करोड़ रुपये और ट्रस्टों को 79 करोड़ रुपये दिए गए.
इसी तरह पंजीकृत समितियों और गैर सरकारी संगठनों को 18.35 करोड़ रुपये और कुछ व्यक्तियों को 1.56 करोड़ रुपये केंद्र सरकार द्वारा दिए गए थे.
साल 2019-20 में सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लिए 3,133 करोड़ रुपये इस तरह से ट्रांसफर किए गए थे.
वहीं, गांधीनगर और अहमदाबाद के लिए मेट्रो-लिंक एक्सप्रेस के तहत 1,667 करोड़ रुपये, मनरेगा के लिए 593 करोड़ रुपये, सांसद निधि के तहत 182 करोड़ रुपये और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत 97 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए थे.
साल 2019-20 के दौरान गुजरात में केंद्र सरकार से सीधे फंड प्राप्त करने वाली कार्यान्वयन एजेंसियों में राज्य सरकार के संस्थान (3,406 करोड़ रुपये), राज्य सरकार के सार्वजनिक उपक्रम (3,389 करोड़ रुपये), केंद्र सरकार के संस्थान (1,826 करोड़ रुपये) और सरकारी एवं स्वायत्त पंजीकृत सोसायटी (1,069 करोड़ रुपये) शामिल हैं.
इसके अलावा भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने गुजरात सरकार के वित्तीय व्यवहार में कई खामियां उजागर की हैं. कैग ने राज्य को सुझाव दिया है कि वह जरूरत के विश्वसनीय अनुमानों के आधार पर सही बजट बनाए.
कैग ने कहा, ‘गुजरात के बजट नियमावली-1983 के अनुसार, कोई भी खर्च बिना बजट प्रावधान या बिना अनुपूरक मांग के अनुमान के आधार पर किसी मद में भी नहीं किया जा सकता. इन दो मामलों में 2019-20 में एक करोड़ रुपये से अधिक का खर्च (कुल 11.07 करोड़ रुपये) बिना बजट प्रावधान के किया गया.’
कैग ने कहा कि बिना बजट प्रावधान के खर्च वित्तीय नियमनों का उल्लंघन और यह वित्तीय अनुशासन की कमी को दर्शाता है.
कैग ने अपने ऑडिट में यह भी पाया कि सरकारी खातों में 14,273 ग्राम पंचायतों को कोष के प्रवाह को नहीं दर्शाया गया है. इसका मतलब है कि इन ग्राम पंचायतों के खाते अनुसूचित बैंकों (सरकारी खाते से बाहर) से बाहर हैं.
सरकारी ऑडिटर ने कहा कि सरकार के पास पंचायतों के खातों में पड़े बिना इस्तेमाल के कोष का पता लगाने को कोई तंत्र नहीं है.
रिपोर्ट के अनुसार, ये पहला मौका नहीं है जब केंद्र और गुजरात सरकार के बीच सांठ-गांठ का पर्दाफाश हुआ है. लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश को दिखाया गया ‘गुजरात मॉडल’ का सपना कॉरपोरेट जगत को दी गई रियायतों और छूट पर आधारित था.
अब केंद्र सरकार द्वारा सीधे कंपनियों को भेजा गया ये फंड कैग की नजरों में आया है.